नमस्कार दोस्तों एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है आप सभी का हमारे ब्लॉग शिक्षा परिदर्शन पर
आज हम आपको हमारी इस कविता के माध्यम से वर्तमान में भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया की हालत के बारे में बयां करने जा रहे हैं
सुनियोजित कोलाहल को वाद विवाद का नाम जो देते
स्टूडियो में नेताजी को लड़ने का यह काम जो देते
अमीरों के कुत्ते भी मर जाए तो बीस मिनट दिखाते हैं
गरीब की हत्या भी हो जाए तो रेत में सिर छुपाते हैं
सत्ता की अन्याय पर तो होता कोई बवाल नहीं
शोषित का सिर पचाते हैं और शोषक से कोई सवाल नहीं
वस्तुनिष्ठता त्यागकर दलाल बने बैठे हैं ये
रक्षक की भूमिका थी और काल बने बैठे हैं ये
बाड़ खेत को खा रही, लोकतंत्र है मझधार में
पत्रकार,प्रवक्ता बन गए, सत्ता के गलियारों के प्यार में
युवाओं के हाथ कट गए और अर्थव्यवस्था बीमार
जिनको आलोचक होना था वे अब शासन के यार है
पुलवामा की जांच का सवाल अब तक उठा न पाए
सत्ता में बैठे तथाकथित हरिश्चंद्रों के बयान अभी तक झूठा न पाए
शिक्षा से लेना देना नहीं, सांप्रदायिकता का माहौल है
जनता के मुद्दों पर भी ये करते टाल मटोल हैं
धर्म और वर्ण के तिल का ये ताड़ बनाकर देते हैं
भाईचारे के स्थलों को उजाड़ बनाकर देते हैं
जनता पर गर्म तेल छिड़ककर नेताजी से घी पायेगा
यही चिंता सता रही तिपहिया लोकतंत्र कैसे जी पाएगा
धन्यवाद
जय हिंद,जय भारत