Sunday, 13 December 2020

भारत में मीडिया की वर्तमान माली हालत

 नमस्कार दोस्तों एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है आप सभी का हमारे ब्लॉग शिक्षा परिदर्शन पर

आज हम आपको हमारी इस कविता के माध्यम से वर्तमान में भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया की हालत के बारे में बयां करने जा रहे हैं

सुनियोजित कोलाहल को वाद विवाद का नाम जो देते 

स्टूडियो में नेताजी को लड़ने का यह काम जो देते 

अमीरों के कुत्ते भी मर जाए तो बीस मिनट दिखाते हैं 

गरीब की हत्या भी हो जाए तो रेत में सिर छुपाते हैं 

सत्ता की अन्याय पर तो होता कोई बवाल नहीं 

शोषित का सिर पचाते हैं और शोषक से कोई सवाल नहीं

वस्तुनिष्ठता त्यागकर दलाल बने बैठे हैं ये 

रक्षक की भूमिका थी और काल बने बैठे हैं ये 

बाड़ खेत को खा रही, लोकतंत्र है मझधार में

पत्रकार,प्रवक्ता बन गए, सत्ता के गलियारों के प्यार में 

युवाओं के हाथ कट गए और अर्थव्यवस्था बीमार 

जिनको आलोचक होना था वे अब शासन के यार है 

पुलवामा की जांच का सवाल अब तक उठा न पाए 

सत्ता में बैठे तथाकथित हरिश्चंद्रों के बयान अभी तक झूठा न पाए 

शिक्षा से लेना देना नहीं, सांप्रदायिकता का माहौल है

जनता के मुद्दों पर भी ये करते टाल मटोल हैं 

धर्म और वर्ण के तिल का ये ताड़ बनाकर देते हैं 

भाईचारे के स्थलों को उजाड़ बनाकर देते हैं

जनता पर गर्म तेल छिड़ककर नेताजी से घी पायेगा

यही चिंता सता रही तिपहिया लोकतंत्र कैसे जी पाएगा 


धन्यवाद

जय हिंद,जय भारत







 













Monday, 30 November 2020

विश्व एड्स दिवस पर एड्स के बारे में कविता(World Aids Day)

  नमस्कार दोस्तों

 स्वागत है आप सभी का आपके अपने ब्लॉग शिक्षा परिदर्शन पर,  दोस्तों आज हम सभी जानलेवा एवं  उपचार ना होने योग्य बीमारी एड्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, जैसा कि आप सभी को पता है कि 1 दिसंबर को प्रतिवर्ष एड्स दिवस मनाया जाता है , इसके अलावा एचआईवी एड्स को कंट्रोल करने के लिए हर एक राज्य में स्टेट ऐड्स कंट्रोल सोसायटी तथा राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल ऐड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की गई है। एड्स के बारे में संपूर्ण जानकारी टोल फ्री नंबर 1097 पर प्राप्त की जा सकती है। एचआईवी एड्स पॉजिटिव व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति दिखाने के लिए सन् 1988 से विश्व एड्स दिवस मनाने का कार्यक्रम शुरू किया गया, इसके अलावा एचआईवी एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए महाविद्यालयों में रेड रिबन क्लब की स्थापना भी की गई है

इसके संबंध में एक कविता प्रस्तुत है-

Monday, 19 October 2020

Psychology QUIZ

 नमस्कार दोस्तों

एक बार फिर से आप सभी का हार्दिक स्वागत है शिक्षा को समर्पित ब्लॉग शिक्षा परिदर्शन पर

आज हम यहां मनोविज्ञान से संबंधित कुछ चुनिंदा प्रश्न पेश कर रहे हैं आशा है कि ये आप की तैयारी में सहायक होंगे।

आप सभी कमेंट के माध्यम से अपना उत्तर हम तक साझा करें, और अपना स्कोर बताना ना भूले।


 धन्यवाद

CORRECT ANSWERS ARE

 C, A, B,C, A

जय हिंद जय भारत 

प्रस्तुत है - RAJENDRA INDIAN 


Friday, 4 September 2020

शिक्षक दिवस स्पेशल

 नमस्कार दोस्तों

 एक बार फिर से शिक्षा परिदर्शन में आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है।

आज यहां शिक्षक दिवस 5 सितंबर 2020 के अवसर पर सभी आदरणीय शिक्षकों के लिए एक कविता प्रस्तुत है-

परहित कार्य करने का उनका नायाब तरीका है

स्वार्थ से मुक्ति कैसे हो, यह तो उन से ही सीखा है

 गुरु-गाथा से उपजा है यह देश के प्रति प्यार भी 

गुरु के आंगन (विद्यालय) में ही सीखा सामाजिक व्यवहार भी 

अज्ञान के प्रतिषेध में तो वे हमारे नायक हैं 

 शिक्षा के उज्ज्वल गायन में फिर वे ही सबसे बेहतर गायक हैं

 विद्या के विद्युत परिपथ में, गुरु शक्तिप्रदायक है 

 गलतियों से दूर करके बनाते वे ही लायक हैं

 हो पीठ पर हाथ गुरु का, सारा जहाँ जीत जाएं

 गुरु की महिमा वर्णन में लगता है शब्द बीत जाएं

भवसागर की बाधाओं से कैसे पार निकलना है

गुरु के निर्देशों से सीखा गिरना और संभलना है

राष्ट्र निर्माण का कार्यभार भी गुरु के हाथों में रहता है

 गुरु से बढ़कर कोई नहीं है जनजीवन यह कहता है

 डूबती नौका मझधार से सदा गुरुजी खींचते 

बालक रूपी पौधे को वे ज्ञान के जल से सींचते 

तकनीकी के इस युग में भी गुरु का कोई सानी नहीं 

एक नजर से देखते सबको, करते कोई मनमानी नहीं 

मेरा तो यह कहना है कि जीवनभर शीश झुकाऊंगा 

कर्ज़ नहीं चुका सकता पर फर्ज जरूर निभाऊंगा

Rajendra Indian 

जय हिंद जय भारत 





Friday, 14 August 2020

भारतीय सेना और सैनिक परिवारों के प्रति हमारे कर्तव्य

यह पंक्तियां भारतीय सैनिक के दर्शन को बताती हैं

भारत की सेवा का अपना यह मजबूत इरादा है

शीश नहीं झुकने दूंगा यह मेरा पक्का वादा है 

सेना के प्रति मेरे मन में इज्जत खुद से ज्यादा है

 मातृभूमि की रक्षा करना ही मेरी मर्यादा है


यह पंक्तियां घर से जाते समय सैनिक द्वारा अपने परिवार के साथ किए गए संवाद को व्यक्त करती हैं

देश को जरूरत है मेरी मैं रणभूमि में जाता हूँ 

कायरता से दूर रहूंगा कसम आपकी खाता हूँ 

देश के प्यार के आगे हम यह भौतिक प्यार गिरा देंगे 

मौत राह में आ गई तो मौत को मार गिरा देंगे


यह पंक्तियां सैनिक के शहीद होने पर उसके संबंधियों की स्थिति के बारे में वर्णन करती हैं

देश का बेटा चला गया तब ही तो मातम छाया है 

आया तो परसों ही है पर संग में तिरंगा लाया है

देशभक्तों के मन में अब जोरदार दी दस्तक है

कर्तव्यपरायणता से देवलोक नतमस्तक हैं

 कहीं-कहीं बूढ़ी मां का इकलौता सहारा चला गया

सुनकर बेहोश हुई बहनें कि भाई हमारा चला गया 

हर नैन को नीर से युक्त किया,बने हुए इस हाल ने

बोले पिताजी गर्व का काम किया है मेरे लाल ने

 मेहंदी हाथों से ना छूटी और सुहाग किसी का चला गया

शादी से पहले ही जीवन का भाग किसी का चला गया


यह पंक्तियाँ भारत के सैनिक की महानता के बारे में बताती हैं 

इतने पर जिसका खून ना खोले वह इंसान नहीं होगा

बड़े से बड़ा अरबपति भी सेना से महान नहीं होगा

हार्मोन बदले उसके भी उसमें भी जवानी थी

इन सब भटकाओं से ऊपर वतन की सेवा ठानी थी


 यह पंक्तियां भारतीय सैनिकों के परिवारों के प्रति हमारे कर्तव्यों के बारे में बताती हैं

जिनका कोई नहीं रहा कभी कुशलक्षेम तो जाना करो

शहीद हुआ बेटा जिसका उस मां को तो पहचाना करो

रक्षक की संतानों को रक्षा का कंबल दिया करो

जब कोई विपत्ति आए तो तुम जाकर संभल दिया करो

रक्षाबंधन पर कलाई उस बहन को भी दिया करो

जो देश की रक्षा कर गए उनके परिवारों की तो रक्षा किया करो

सीमा से फौजी आए तो हाथ जोड़ अभिनंदन हो

ईश्वर की स्तुति संग अब शहीदों का भी वंदन हो

मनोरंजन की छोड़ किताबें शौर्य गाथा पढ़ा करो 

जो राजनीति शहादत पर करते आज दुकानें बंद हो

आज सुरक्षित देश है तो कल का भी प्रबंध हो


जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना







Tuesday, 11 August 2020

स्वतंत्रता दिवस स्पेशल

 यह कविता पूर्णतया मेरे द्वारा लिखित है इसमें भारत की गुलामी से लेकर आजादी तक के  कांटो से भरे मार्ग का साधारण शैली में वर्णन किया गया है तथा आजादी के बाद देश की मुख्य समस्याओं का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है 


                        भाग-1

शीर्षक: गुलामी से आजादी तक 


सोने की चिड़िया को उन व्यापारियों ने लूटा था

घर में भेदी बैठे थे भारत का कुनबा टूटा था 

अपनों के कर कमलों से ही अपनों को मरवाया था

आपस के ही बैर भाव से घमासान करवाया था

मेरठ से लेकर झांसी तक

दिल्ली से लेकर काशी तक

सन् सत्तावन में बिगुल बजा

भारत मां की आजादी का तब ही स्वर्णिम स्वप्न सजा 

स्वाभिमान था लाजवाब वे भारत मां की सेवी थी

झांसी वाली रानी जी तो साक्षात् ही देवी थी

कुछ अंगुलियां विकलांग थी बैठी कैसे जंग जीती जाती

सब ने साथ दिया होता यह धरती थपेड़े ना

खाती

मार्ले मिंटो अधिनियम ने धर्म नाम पर बांटा था

भारत की राहों में अब तक सबसे तीखा कांटा था

मानगढ़ से करुणामयी चित्कारें अब भी सता रही 

वनवासी को मारा था पहाड़ी रो रो कर बता रही

वंदन की उपजाऊ भूमि कैसे बंजर हो गई

सुसज्जित भारत माता एक अस्थिपंजर हो गई

जालिम जनरल डायर ने जलियांवाला में घाव किए

सोए शेरों के सिर फोड़े, खूनों से लथपथ पावं किए

व्याकुल मन तब रो उठे ह्रदय में गहरे तीर हुए

डायर से बदला चुकता किया यहां ऊधम सिंह से वीर हुए

वतन की खातिर फांसी खायी यह भगत सिंह का देश है

राजगुरु, सुखदेव जी भी हद से ज्यादा विशेष हैं

कथनी करनी में समानता से जगत में ऊंचा नाम किया 

देश की सेवा में बापू ने अपना पूरा काम किया 

सारी रस्में पूर्ण हुई अब नवजीवन की तैयारी थी 

थक गए अंग्रेज भी अब भारत छोड़ो की बारी थी

नाम न जिनका हुआ उजागर असंख्य बलिदान थे

कोने कोने में लड़ने वाले मेरे देश के वीर जवान थे

सांप्रदायिक विभाजन की कुरीति यहां छोड़ गए

चले गए फिर गोरे तो फिर भारत टुकड़ों में तोड़  गए

14 अगस्त की मध्य रात्रि हर आंख में आंसू थे

एक बार फिर से लड़ाया इतने रक्त पिपासु थे

वे (स्वतंत्रता सेनानी) कितने दिनों ना सोए थे

वे खून के आंसू रोए थे

उन वीरों ने धरती मां की जंजीरों को तोड़ा था 

टुकड़े-टुकड़े भारत को सरदार जी ने जोड़ा था

                         भाग-2


       शीर्षक:- व्यथा नवीन भारत की

नवयुवकों को काम नहीं

अन्नदाता को दाम नहीं

जादू शीतल सा लगता है युवा भारत के खून का

गला घोंट दिया जाता है गरीब के जुनून का

हत्या की कोई जांच न होती महीनों तक  और वर्ष तक

यौन शोषण पीड़ा देता हृदय के स्पर्श तक

देश को खोखला करने के कितने मजबूत इरादे हैं

आपस में कीच उछाल कर नेताजी करते वादे हैं

व्हाट्सएप के वीर लड़ाई स्टेटस पर लड़ते हैं

शौर्य गाथा कौन पढ़े मजाक वतन का पढ़ते हैं

फेसबुक पर नकली चेहरे समय गुजारने का जरिया

विपदाओं के बीच भारत कैसे पार करें दरिया



 74 वें स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित

 




 



Tuesday, 4 August 2020

क्या प्रशासन का हिस्सा बनने से पूर्व अंग्रेज बनना अनिवार्य है?

जैसा की सर्वविदित है कि संघ लोक सेवा आयोग भारत में प्रशासनिक अधिकारियों के चयन हेतु त्रिस्तरीय परीक्षा को संपन्न करवाता है। इसी क्रम में वर्ष 2019 की सिविल सर्विसेज भर्ती परीक्षा का अंतिम परिणाम 4 अगस्त 2020 को जारी किया गया जिसमें हिंदी माध्यम से चयनित विद्यार्थियों की संख्या गूलर के फूल के समान थी।
जैसा कि हम जानते हैं अधिकांश गरीब व मध्यम वर्गीय भारतीय बच्चे हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षित होते हैं तो फिर क्या गरीब का बच्चा जो हिंदी में शिक्षित हुआ है उसे जिले की कमान संभालने से वंचित सिर्फ इसलिए किया जाता रहेगा कि उसने तथाकथित सभ्य लोगों की भाषा अर्थात अंग्रेजी की तालीम नहीं ली है?
यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि यूपीएससी के इतिहास में आज तक किसी भी हिंदी माध्यम के विद्यार्थी को प्रथम स्थान हासिल नहीं हुआ।
प्रश्न 1: क्या यूपीएससी परीक्षा के दौरान प्रश्न पत्र का हिंदी अनुवाद करते समय तथा मूल्यांकन करते समय भाषाई आधार पर वस्तुनिष्ठता हेतु किए गए प्रबंध पर्याप्त हैं?
यदि हां तो फिर हर वर्ष प्रश्नपत्रों के हिंदी अनुवाद में ऐसी शब्दावली प्रयुक्त क्यों की जाती है जिसका अस्तित्व किताबों में कहीं भी नहीं मिलता?
क्या लाखों विद्यार्थी जो हिंदी माध्यम से तैयारी कर रहे हैं वे शैक्षिक रूप से इतने पिछड़े हैं कि कुल रिक्तियों पर  10% चयन भी उनमें से नहीं हो रहा है?
क्या भाषा होशियार होने का कोई प्रमाण है? यदि हां तो इसकी पुष्टि की जाए यदि नहीं तो फिर हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के चयन में विषमताओं को स्पष्ट करें
महात्मा गांधी कहते थे" अंग्रेजी बालकों में मानसिक दासता पैदा करती है" 
दुर्भाग्य की बात तो यह है कि भारत को आजादी तो 1947 में ही मिल चुकी है लेकिन आज भी भारत की अपनी भाषा हिंदी और हिंदी भाषी लोग अंग्रेजी के उपनिवेश बने हुए हैं आज देश के बड़े दफ्तरों में जाकर हिंदी में बात करना अशिक्षित होने का पर्याय सा लगता है। 
लॉर्ड मैकाले ने कहा था कि भारत को हम सदा सदा के लिए मानसिक गुलाम बनाकर रखेंगे यह बात शत प्रतिशत चरितार्थ लग रही है। 

क्या आप सहमत हैं कि हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों की प्रतिभा को वास्तव में दबाया जा रहा है? 

धन्यवाद
जय हिंद जय भारत


Sunday, 26 July 2020

कॉलेज छात्रों को प्रमोट करने की प्रक्रिया में मुख्य सीमाएं

नमस्कार दोस्तों
जैसा की आप सभी को पता है इस समय ना केवल भारतवर्ष अपितु संपूर्ण विश्व कोरोना के कहर की चपेट में है तथा जीवन थम सा गया है इसी क्रम में मार्च में भारत में चल रही सभी परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया था जिसके बाद मई से लेकर अब तक निरंतर सरकारें विश्विद्यााल के छात्रों की परीक्षाएं करवाने के संबंध में दुविधा में है।  एक और जहां विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए परीक्षाओं का आयोजन करना अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण है वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के अगली कक्षा में उत्तीर्ण करना विभिन्न सीमाओं को धारण किए हुए हैं। निश्चित रूप से हम यह चाहते हैं की विद्यार्थियों की सुरक्षा के हित में उन्हें प्रमोट किया जाए लेकिन निम्न सीमाओं पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है-
1) राजस्थान जैसे राज्य में जहां कक्षा 10 में अध्ययनरत 14 से 15 वर्षीय औसतन आयु वर्ग के बच्चों की परीक्षाएं संपन्न करवाई गई उस समय परीक्षाओं को लेकर इतना विरोध नहीं हुआ क्योंकि बच्चे अभी छोटे हैं और उनके साथ कोई राजनीति करने वाला ग्रुप नहीं था, कॉलेज में आकर बात कुछ अलग है एक और जहां छात्र नेताओं को अपना वोट बैंक तैयार करना है तो दूसरी और सरकारें भी विद्यार्थियों को प्रमोट ना करके आगामी चुनाव में अपने बोरी बिस्तर बांधना नहीं चाहती।
फिर सवाल ये उठता है कि उन नौनिहालों के भविष्य के बारे में क्या किसी भी मानवता के शुभचिंतक को चिंता नहीं थी ?हालांकि इस संबंध में कुछ विरोध हुआ था लेकिन इतने यत्न किसी ने नहीं किया।
2) यूजीसी के दिशा निर्देशानुसार प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के अंक शत प्रतिशत आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर निर्धारित किए जाएंगे साथ ही द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों के अंक 50% आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर तथा 50% गत वर्ष के परीक्षा परिणाम के आधार पर निर्धारित किए जाएंगे तब दो महत्वपूर्ण प्रश्न चिह्न है-
A) क्या शत प्रतिशत आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर निर्धारण करना शिक्षकों की आत्मनिष्ठता के प्रकोप से बचा हुआ रह सकता है और क्या यह विश्वविद्यालय की मेरिट की सूची में शीर्ष पर आने वाले विद्यार्थियों के लिए बेमानी नहीं होगी जिनको प्रत्येक महाविद्यालय अपने-अपने रिजल्ट के लिए उच्चतम अंक देने की कोशिश करेगा? 
B) आमतौर पर विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के परिणामों से बहुत से विद्यार्थी असंतुष्ट नजर आते हैं तथा कई बार पुनर्मूल्यांकन में भी लापरवाही के चलते उनके अंको में सुधार नहीं होता फिर ऐसे में जिस द्वितीय वर्ष के होनहार विद्यार्थी जिसके अंक प्रथम वर्ष में मूल्यांकन संबंधी अनियमितताओं या निजी कारणों से कम रह गए थे उसको द्वितीय वर्ष के 50% अंक प्रथम वर्ष की मार्कशीट के आधार पर निर्धारित किए जाएंगे जो भारतीय संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जा सकता तो फिर यहां सिर्फ और सिर्फ विद्यार्थी से एक बार छोड़े गए प्रश्नों के अंक 2 बार कैसे छीने जा सकते हैं
  3) एक सर्वे के मुताबिक भारत में लगभग 10-15% विद्यार्थी यह चाहते हैं कि परीक्षाओं का आयोजन किया जाए हालांकि यह प्रतिशत शेष विद्यार्थियों की तुलना में काफी कम है लेकिन वर्ष पर्यंत मेहनत करने वाले विद्यार्थियों को निराशा तो नहीं प्रदान की जा सकती है। 
कुछ शिक्षक पात्रता परीक्षाओं में  स्नातक  की प्रतिशत का महत्व वर्तमान में है और भविष्य में भी किसी राज्य की सरकार ऐसे प्रावधान ला सकती है क्योंकि अगर ऐसे प्रावधान हटाए जाएंगे तो हो सकता है कि विद्यार्थी शिक्षक अपने प्रशिक्षण के प्रति लापरवाह हो जाए तो फिर क्या जिन विद्यार्थियों को आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर खुशी खुशी से अच्छे अंक प्रदान किए जाएंगे की तुलना में भी विद्यार्थी जिन्होंने मेहनत करके भी अपेक्षाकृत कम अंक अर्जित किए थे के साथ यह अन्याय नहीं होगा? 
5) अक्सर अपनी जिंदगी के महत्व की दुआ देने वाले महाविद्यालय ी छात्रों को प्रमोट करने से पहले यह शर्त रखी जानी चाहिए कि जब तक देश में लॉकडाउन रहता है तब तक यदि उनमें से कोई भी कोरोना की गाइडलाइंस की अवहेलना करते हुए पुलिस के हाथ लगता है तो वह जुर्माना भरने को तैयार रहे क्योंकि आज वह अपने स्वास्थ्य एवं भविष्य को लेकर बहुत सतर्क हैं और ऐसी ही अपेक्षा  उनसे भविष्य में भी की जाती है। 

Friday, 19 June 2020

भारतीय जनता में आक्रोश: चीनी सामानों का बहिष्कार (#Boycott China)


नमस्कार दोस्तों
भारतीय जनता में आक्रोश: चीनी वस्तुओं का बहिष्कार


दुष्टों से हाथ मिलाना क्यों
सांपों को दूध पिलाना क्यों
जो फूलों से ईर्ष्यालु हैं,उनके संग कमल खिलाना क्यों
लेना-देना बन्द करें अब सेना के हत्यारों से
देशप्रेम का महत्व जानें,भारत माँ के प्यारों से
रक्षाबंधन पर राखी भी जो चीन बनाकर देता क्यों
मृदुता के त्योहार को नमकीन बनाकर देता क्यों
भारत की आंखों पर सुई की नोक चलाते फिरते हैं
मानसिक गुलाम लोग टिक-टॅाक चलाते फिरते हैं
दुनिया से जंग जीतनी है तो आपस में मत हारो तुम
अंधानुकरण छोड़ो और यह चीनी चोला उतारो तुम
अमर रहे यह वतन हमारा,सबको शान से गाना है
तड़क-भड़क की होली जलाकर स्वदेशी अपनाना है
पत्थरबाजी आगे की तो हम भी समर जोड़ देंगे
दो टूक सुन ले तेरी आर्थिक कमर तोड़ देंगे
चीनी सामानों का अब करना है हमको बहिष्करण
मन से कचरा निकालकर करना है हमको परिष्करण
कफ़न रूप में पसन्द है हमको जाना तिरंगा वेश में
स्वदेशी से रह जाएगा देश का पैसा देश में
आस्तीन के सांप
को अब अच्छा सबक सिखाना है
रक्षा के प्रयोजन से एकीकृत होकर दिखाना है

Thursday, 18 June 2020

मौलिक अधिकारों को याद करने की ट्रिक (A trick to learn fundamental rights with related articles)

नमस्कार मित्रों
आज मैं भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को याद करने के लिए एक मौलिक कविता लेकर प्रस्तुत हूँ,गौरतलब है कि राजनीतिक विज्ञान के इस खण्ड से हमेशा प्रश्न पूछे जाते रहें हैं
[ {संविधान भाग-3, अनुच्छेद 12-35}-अमेरिकी संविधान से लिए गए हैं ]
हमने सुना है विधि के समक्ष ,होते हैं समान सब  (Art. 14)
इसलिए महत्व नहीं रखते धर्म,लिंग,स्थान सब (Art. 15)
समान अवसर मिलेंगे सबको अब तो लोक नियोजन में (Art. 16)
अस्पृश्यता नहीं करेंगे किसी के घर पर भोजन में (Art. 17)
इन गुणों को मान लिया तो वह भारतीय संत है
इसी नाम पर उस मानव की उपाधियों का अंत है (Art. 18)
स्वतंत्रता के मामले में सबको काफी छूट है(Art. 19)
दोषसिद्धि से संरक्षण का 20-20 कूट है (Art. 20)
स्वतंत्रता मिल चुकी है सबको प्राण और देह की (Art. 21)
नि:शुल्क शिक्षा इसमें मिलेगी लद्दाख और लेह की (Art. 21A)
बिना कारण बताए तो फिर करता कोई बन्द नहीं
विदेशियों हेतु इसमें ऐसा कोई प्रबंध नहीं (Art. 22)
सन् 23 तक यह लक्ष्य है ना किसी का शोषण हो (Art. 23)
24 तक बच्चों का ना उद्योगों में कुपोषण हो (Art. 24)
कोई नहीं पाबंदी तुम तो किसी धर्म को मान लो (Art. 25)
धार्मिक प्रबंध के सारे सूत्र तुम जान लो (Art 26)
धर्म के प्रचार पर जो किसी तरह का कर नहीं (Art. 27)
राजकीय शिक्षण में फिर जो कोई धार्मिक (+उपदेश) सर नहीं (Art. 28)
अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का सदा संरक्षण हो  (Art. 29)
रुचि की वे(अल्पसंख्यक) शिक्षा देंगे जो मूल्यों का ना भक्षण हो (Art. 30)
भारत ऐसी धरती हमारी,हमको इससे प्यार है
अधिकार छीने तो कोई संवैधानिक उपचार है (Art. 32)

लगता है खिसियानी बिल्ली पिटने को अभिलाषी है @India-China war hindi poems

नमस्कार दोस्तों
15-16 जून को सीमा पर  चीन के पीठ पीछे वार से वीरगति को प्राप्त हुए माँ भारती के सपूतों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि के साथ हमारे पड़ोसी की गद्दारी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है -


शेरों के साहस आगे चमगादड़ चाल रुकेगी नहीं
यह भारत माँ की सेना है सुन लें हर हाल झुकेगी नहीं
वीरता के क्षेत्र में हम दुनिया से विशेष हैं
मरना भी मंजूर है यह भगत सिंह का देश है
मेरा अंतर्मन रोता है जब यूँ वह सैनिक मरता है
रणभूमि में लड़े पड़ोसी गद्दारी क्यों करता है
पाक को उकसाने में ये अब तक शकुनि बना रहा
वीरों की शहादत पर ये अब भी दीवाली मना रहा
तेरी बर्बरता भारत से आगे वहन नहीं होगी
बदला पत्थर से लेंगे तेरी ईंटें सहन नहीं होंगी
चोर चोर मौसेरे भाई,घाटी में शोर मचाते हैं
सोए शेरों पर वार करके मन में मोर नचाते है
परमाणु धमकी से सुन ना डरते भारतवासी है
यूँ  लगता खिसियानी बिल्ली पिटने को अभिलाषी है
कोरोना पर खूब फ़ज़ीहत अमेरिका ने की तेरी
भारत ने सोचा शांति नामसमझी ही निकलीं मेरी
विकास का यह अहं तेरा चूर-चूर हो जाएगा
दुनिया के डंडों से कोरिया कोसों दूर हो जाएगा
खूब तरक्की कर ली तेरा विनाशकाल अब चालू है
कोरोना से बता दिया तू जीवन का ईर्ष्यालु है

Monday, 15 June 2020

आत्महत्या (suicide)......

नमस्कार ब्लॉगर परिवार 

भोग विलासी दुनिया में मानव,मानव से दूर हुआ
वो बेबस दिल जो मरने को इतना भी क्यों मजबूर हुआ
आभासी दुनिया में ये सब झूठ परोसा जाता है
आत्महत्या करने पर जीवन को कोसा जाता है
घर के भेदी लंका ढ़हाते तब अंतर्मन रोता है
सोचो उस परिवार की,चिराग जो अपना खोता है
कहने को तो उसके परित: जनमानस का मेला था
दुनिया के संग रहकर भी,वह हुआ क्यों अकेला था 
आकर्षण को प्यार जो कहना धोखे का ही खेल है
ज़हर से डसने वालों का दुनिया में कैसा मेल है 
फेसबुक मित्र हैं लाखों जीवन में कोई एक नहीं
किस को बात बताता खुद की इरादे किसी के नेक नहीं
आवश्यकता महत्ती है अब कसरत की और ध्यान की
सबसे ज़्यादा जग को अब जरूरत है मनोविज्ञान की 
खिलता हुआ फूल था मानों एकदम गर्दन पटक गया
दुष्टों में विषाणु इतना वह फंदे से लटक गया
बाद में मतलब भी क्या जो साजिश का बर्तन फूट गया
काल्पनिक मुस्कान रह गई भाईचारा टूट गया
मानव का जीवन लेकर भी मानवता सब भूल गए
जीवन ऐसी बाधा क्या जो वो फांसी से झूल गए 

Monday, 8 June 2020

पश्चिम का अंधानुकरण : भारत पर संकट


नमस्कार मित्रों
आज विश्व की श्रेष्ठतम मान-मर्यादा युक्त संस्कृति वाला भारत देश पाश्चात्य का अंधानुकरण करके नैतिक रूप से आगे नहीं बढ़ रहा है इस पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -


संस्कृति और सभ्यता को कितना जल्दी भुला दिया
पाश्चात्य के चमचों ने भारत को नींद में सुला दिया
भारत के मूल्यों को तो वह अंधविश्वास बताती रही
पश्चिम की ये दीमक जो भारत दिन-दिन खाती रही
पश्चिम में दिखावट की जो संक्रामक खांसी है
मानों या ना मानों उनका जीवन भोग-विलासी है
खूब हुआ ये खेल तमाशा,अब भारत से बन्द करो
'काम'की कहानी पढ़ने वालों याद विवेकानन्द करो
अंग्रेजों ने मारा था जो कितना गहरा घाव था
भारत के आदिमानव में कितना कुछ सद्भाव था
मानसिक गुलामों तुमने पहना कैसा भेष है
यहां देशप्रेमी बनना होगा यह भगत सिंह का देश है
घर की मुर्गी दाल बराबर समझकर तुमने छोड़ दिया
मिली ज़रा सी आजादी अपनों से नाता तोड़ दिया
पढ़े लिखे गंवारों से तो बेहतर ही अशिक्षा थी
भूखे को भोजन मिलता था,भिक्षुक को मिलती भिक्षा थी
औरों को उपदेश दिया चलते ना अपने पैरों पर
अपनों से नफरत कितनी,विश्वास किया है गैरों पर
पाश्चात्य का भूत ये तो पूरी तरह से छाया है
भारत के मस्तक पर ये घोर संकट आया है
क्रिकेट के मैदान में फुटबॅाल की रीति कैसे चले
भारत शिक्षा में फिर पश्चिम की नीति कैसे चले


स्वदेशी अपनाइये


जय हिंद जय भारत

Saturday, 6 June 2020

माफ करो नेताजी,उज्ज्वल वस्त्र भी शर्मिंदा हैं .....


नमस्कार मित्रों
आप सभी के कुशल होने की उम्मीद के साथ आज चुनावों से पहले के समय चलने वाली आरोप-प्रत्यारोप की श्रृंखला पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -

पांच साल अब बीत गए जो हुआ ये प्रत्यावर्तन है
एक दूसरे की बातों का जुबान से ये कर्तन है
कहते हैं हम हरीशचन्द्र,हम ही तो सत्यवान हुए
सत्ता के गलियारों के अब सक्रिय जो कान हुए
शासक और शोषक सब गिरगिट से रंग बदलने लगे
नेताजी के चमचे भी अब घर से निकलकर चलने लगे
यूँ करते हैं याचना कि देश बचाना चाहते हैं
हम सेवक,जनता ईश्वर,बैकुंठ में जाना चाहते हैं
समझदार तो समझ गया कि मिथ्याभाषी जिंदा है
माफ करो नेताजी,उज्ज्वल वस्त्र भी शर्मिंदा हैं
कोयल सी कोमलता से ये ज़हर के जैसा बोलते
सदगुण की प्रशंसा नहीं और पोल हमेशा खोलते
मोल मतों का करके सबने पल्लू झाड़ लिया है अब
पांच साल अपना घर भर लिया,छप्पर फाड़ दिया है अब
फेसबुक के योद्धा भी अब उतर समर में आये हैं
मुफ्त की ठंडी चाय (शराब) ने वाणी के तीर चलाए हैं
गरीब बाप के पैसों का बेटा-बेटी ही काल बने
शिक्षा-दीक्षा को भूलकर नेताजी के दलाल बने
जनता को भड़काकर फिर आपस में उड़ाते खिल्ली  हैं
यूँ लड़ते हैं बार-बार जैसे लड़ते कुत्ते बिल्ली हैं
सच तो यह है लूटपाट के अलग-अलग इरादे हैं
कर्णधार इस देश के क्यों करते झूठे वादे हैं ?

आत्महत्या :एक अनसुलझी पहेली

 इस सदी में जिस प्रकार इस शब्द में अपना विशाल रूप धारण किया है वह दुनिया को सकते में डाल सकता हैं।
आत्महत्या के बढ़ते मामलों ने  सबकों  सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर आत्महत्या  के मामलों में क्यों बढ़ोतरी हो रही हैं.
आत्महत्या एक मनचाही मौत नहीं है बल्कि अनचाही मौत है फिर भी ना जाने क्यों संपूर्ण विश्व में 8 से 1000000 लोग हर साल आत्महत्या करते हैं ,एनसीआरबी के आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो देश में हर 55 मिनट में पांच व्यक्ति आत्महत्या करते हैं यानी हर 11 मिनट में एक व्यक्ति फंदे से लटककर ,जहर पीकर या फिर कूदकर अपनी जीवन लीला हमेशा के लिए समाप्त कर देता है ,भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले युवा होते हैं जो 15 से 29 वर्ष की आयु सीमा में होते हैं इनमें शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े युवा ज्यादा देखने को मिलते हैं ,जो कैरियर संबंधि  विषय से संबंधित बातों से चिंतित होते हैं, मानते हैं कि विद्यार्थी जीवन में हम सबने इन परिस्थितियों का सामना किया है पर आत्महत्या ही इस समस्या का निदान है यह कहां तक सही है .
  • विद्यार्थी जीवन के अलावा अब किसान भी  आत्महत्या करने लगे हैं जो सरकार और समाज की चिंता को गंभीर स्तर तक ले जाने का कार्य करती है, इन दोनों के अलावा वर्तमान में सरकारी अधिकारी भी इस समस्या से त्रस्त हैं इस कारण सरकारी तंत्र में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं इसके पीछे राजनीतिक दबाव को अधिक  माना गया है,राजनीतिक दबाव ने आत्महत्या बढ़ाने का जो कार्य किया है इससे जनता के मन में राजनेताओं की छवि ओर ज्यादा खराब हुई है,आत्महत्या इतना आसान काम भी नहीं होता जितना हम समाचार पत्रों में पढ़ने के बाद सोच कर भूल जाते हैं इससे पूर्व व्यक्ति कई बार टूटता है फिर भी निखरने का प्रयास करने के बाद भी सही रूप में निखर नहीं पाता है वह अवसाद से भर जाता है,अपनों की याद में उसका गला सूख जाता है उसकी कलम कांपते हाथों का साथ धीरे -धीरे छोड़ती जाती है, परिवार के प्यार को वह शब्दों में उकेर देता है खुद के जाने के बाद परिवार का क्या होगा इस प्रकार के विचार भी उसे कुछ समय के लिए आत्महत्या करने से रोक जरूर देते हैं पर अपने काम पर लगे कंलको को वह जब अपनी बेदाग छवि से जोड़ता है तो उसके हाथ रस्सी के साथ पंखों की ओर बढ़ जाते हैं, सफेद वस्त्र धारी राजनेताओं के काले दिल को वही समझ पाता है फांसी के फंदे और उसके गले के मध्य  की दूरी लगभग समाप्त होने पर होती हैं फिर वो ना चाहते हुए  भी फांसी  को अपना बना लेता है, कुछ देर बाद उसके गले की नस टूट जाती है गालों पर आंसुओं की कुछ बूंदें उसे सच्ची श्रद्धांजलि देती है गले की रस्सी उसकी मौत के टूट  जाती है जिन नेताओं की वजह से उन्होंने प्राण गवाहे  वही नेता उनके मृत शरीर को सुख की श्रदाँजलि  देते हैं, हमें समय के साथ -साथ सोच बदलकर भ्रष्ट राजनीति से अपना विश्वास हटाना होगा नहीं तो जनसेवा के अधिकारियों का बलिदान व्यर्थ जाऊँगा.

           रामजीवन विश्नोई 

Thursday, 4 June 2020

दहेज़ प्रथा:समाज के मस्तक पर कलंक (The dowry system: A stigma on the head of society)

प्यारे दोस्तों
आज समाज में एक बेटी के पिता की समस्याएं दहेज़ रूपी दैत्य ने बहुत बड़ा दी हैं,इस पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -


इंसान नहीं हो सकता पति जो पत्नी का हत्यारा है
जिन्दा होती तो हक मांगती,इसलिए तो मारा है
बेटा बन गया चपरासी जो माँ-बाप भी फूल गए
पाणिग्रहण के वचन दुल्हा जी छ: महीने में भूल गए
आज फिर गरीब बेचारा पकड़ कनपटी रोया है
मुश्किल समझें उस बाप की जिसने एक बेटी खोया है
सोच रहा वह मन ही मन मैं भी अमीर ज़रा होता
तो इस ह्रदय का टूकड़ा ना लाचार मरा होता
पाप के सागर भर आए,पुण्य के स्थल सूखे हैं
बच्चों की परवाह कौन करें अब कितने दिन से भूखे हैं
सास-ससुर ने मिलकर ये तैयार किया मसौदा  था
समझ नहीं आया अब तक यह रिश्ता था या सौदा था
दुष्टों की मौसी कौन हुई,इनका तो कोई खास नहीं
धन के लोलुप लोगों को अब मूल्यों का आभास नहीं
आलस्य में रहने वालों,नमक-मिर्ची भी कैसे दे
तुम्हारा फ़रमान तो यह है ताउम्र ही पैसे दे
इज्जत तो नहीं लुट जाती,थोड़ा सा शीश झुकाने में
जमीन बिकी उस बाप की,शादी का कर्ज़ चुकाने में
सुनकर ऐसी घटनाएं,यह जीवन लगता फीका है
जल्दी से मिटाओ यह मस्तक पर काला टीका है।


जागो युवा जागो
जय हिंद,जय भारत,जय हिंद की सेना

सेना पर राजनीति क्यों (why the politics on our military) ?


नमस्कार ब्लॉगर परिवार
हमारी सेना हमारा गौरव है,लेकिन हमारे देश के कुछ (सभी कदापि नहीं) राजनेताओं के मन में वीरों के शौर्य पर भी तुच्छ स्तरीय राजनीति करने की महत्ती इच्छा हिलोरें मारती है। इंसानों की स्वार्थवादिता की इस पराकाष्ठा पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है-

धर्म नहीं है उसका कोई,ना ही कोई जाति है
रक्षा के प्रयोजन से वह सदा ही आगे आती है
अखण्ड है भारत की ज्योति,जग को यही बताती है
भारत की सेना ने जो सदा ही तानी छाती है
कश्मीरी घाटी में अब ये गद्दारी का कहर क्यों
वीरों की शहादत पर भी ये राजनीति का ज़हर क्यों
ना बोलना आए तो इस जिव्हा को सहेजे फिर
राजनीति करने वाले भी अपने बेटों को भेजें फिर
चिराग किसी का चला जाए तो अपनी रोटी सेंकते
राजनीतिक स्वार्थ हेतु पत्थर बनकर देखते
सेना की शक्ति पर प्रश्न चिह्न लगाना सही नहीं
राजनीति का ऐसा स्तर देखा हमने कहीं नहीं
कोयले की दलाली में जो हाथ इनके काले हैं
सेना से सबूत मांगते खुद ने किये घोटाले हैं
पाकिस्तान की होती पिटाई,इनके दिल क्यों घबराते
जनता को बेवकूफ बनाकर झूठ बोलने का खाते
पत्थरबाजों की साजिश पर अब तक गुंगे बने हुए
औरों क्या शिक्षा देंगे,खुद कीचड़ में सने हुए
तीन सौ सत्तर चली गई तो इनको इतना कष्ट हुआ
आंखों में धूल झोंकने का वो तंत्र कितना नष्ट हुआ


जय हिंद,जय भारत

Wednesday, 3 June 2020

संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता



संस्कृत भाषा भारत में वैदिक काल  से ही अपनी जड़ें रखती है और यह सबसे पुरानी भाषा है। अरबों के आक्रमण से पहले, संस्कृत भारतीय उपमहाद्वीप की राष्ट्रीय भाषा थी। इसे सभी भाषाओं में सबसे व्यवस्थित और तकनीकी भाषा भी माना जाता है। इसे सभी भाषाओं की जननी के रूप में जाना जाता है। संस्कृत भाषा में किताबें सैकड़ों साल पहले भारत के उच्च शिक्षित व्यक्तियों द्वारा लिखी गई हैं और अब उन पर पढ़ा और शोध किया जा रहा है।

यहाँ संस्कृत से जुड़े कुछ तथ्य आपके समक्ष रखे जा रहें है जो संस्कृत भाषा की प्राचीनता और वैज्ञानिकता को आपके प्रदर्शित करते है-











धन्यवाद 🙏

Sunday, 31 May 2020

वो जलते रहें,हम चलते रहें @सफलता की बातें

वो जलते रहें,हम चलते रहें
इस मन से मोती निकलते रहें
ऐसा ही मजा चखाना है
आ गए मैदान में,ये युद्ध जीतकर लाना है
अटल इरादा है हमारा,अब तो नाम बनाना है
दुनिया की हरकतों क्या,अब अपना काम बनाना है
बात-बात पर तानों से शर्मिंदा करने वालों की
राय बदल जाएगी फिर तो निंदा करने वालों की
उगल ले दुनिया जल्दी से यह ज़हर जो तेरे अन्दर है
बाद में पता है सबको जो जीता वही सिकन्दर है
लगातार मेहनत करेंगे जीत का यही कायदा है
आधी राहों से जाने का होता न कोई फायदा है
सपना जो देखा आसमान सा,मुश्किलों को आने दो
वक्त है प्यारे गुजर जायेगा,दुनिया को बात बनाने दो
पद की कीमत सब करते हैं और व्यक्ति का सम्मान नहीं
जो शेष है उसको पा लेंगे,जो पाया उसका अभिमान नहीं
पद पाते ही व्यक्ति की इज्जत ऊपर चढ़ जाती है
कांटों पर चलने से मेरी चाल ज़रा बढ़ जाती है
चेहरे सबके याद हैं और मन में किसी से बैर नहीं
दौर हमारा आने दो फिर घमण्डियों की खैर नहीं

Friday, 29 May 2020

कलयुग के इस कालखण्ड में दुर्लभ श्रवण कुमार हुए ...


कलयुग के इस कालखण्ड में ना अब श्रवण कुमार रहे
कहाँ है ऐसे बेटे अब जो सेवा में शुमार रहे
यूँ तो देते हैं समर्थन दुनिया भर के नारों का
फिर घर में पालन क्यों करते हैं पत्नी के इशारों का
सारी उम्र उस बाप ने जो खून-पसीना एक किया
अपने मन से बेटे का जो पालन पोषण नेक किया
तन,मन,धन अर्पित कर दिया लाल की पढ़ाई पर
बेटे का कल बनाने को वह उतरा रहा लड़ाई पर
दो पैसे कमाने को मां ने भी उठाई टोकरी
सारे प्रयासों के चलते मिली आखिर में नौकरी
तत्पश्चात पिता ने की जो धूमधाम से शादी थी
क्या पता उस भोले मन को घर की यह बर्बादी थी
सास-ससुर को परायी कन्या दे ना पायी इतना प्यार
वर्ष एक भी बीता नहीं कि बना लिया एकल परिवार
बेटा बोला नहीं चलेगी,अपनी बाटी सेंक लो
यहाँ पर क्या है लेना देना,वृद्धाश्रम देख लो
बेबस आंखें क्या करती अब अलग से छप्पर डाल लिया
कहने को कुछ शेष नहीं,आंखों से आंसू निकाल लिया
सफल होना भी बेटे का दु:ख का ही पर्याय बना
बेसहारा प्राणियों संग यह भी कैसा न्याय बना
गाड़ी में नहीं बिठाते जो कंधों पर कौन बिठाये अब
जान भले ही चली जाए,गोद में कौन लिटाये अब
जवानी ढ़ल जाएगी और फिर बुढ़ापा आएगा
गर्व ना कर कल को तेरा बेटा भी यही फ़रमाएगा

Thursday, 28 May 2020

यार बदल देता है यह और प्यार बदल देता है यह....

अपनों को दूर करा देता है,पता नहीं यह कैसा है
इसका नाम बता देता हूँ,यह ही रूपया-पैसा है
इसमें क्षमता कितनी मारक
गरीब,अमीर का यह निर्धारक
न्यायालय में जाकर भी यह बदलाव वचन में कर देता
मन के मन्दिर में भी यह विष की धारा को भर देता
इसके बदले दुनिया ने तो हर वस्तु का तोल किया
कैसी शक्ति है ये जिसने मानव का भी मोल किया
आहार बदल देता है यह,व्यवहार बदल देता है यह
यार बदल देता है यह और प्यार बदल देता है यह
पैसा ही तो है यह जिसने मकान,झोंपड़े छांटे हैं
दु:खद रहा यह सुनना कि औरों के पतंग भी काटें हैं
घर में पैसा चलता है,दफ्तर में पैसा चलता है
रिश्तों में पैसा चलता है,किस्तों में पैसा चलता है
ज्ञान भी मिलता पैसें से,विज्ञान भी मिलता पैसें से
अब ध्यान भी मिलता पैसें से,म्यान भी मिलता पैसे से
सर्वेसर्वा पैसा बन गया,मूल्यों की बर्बादी हुई
दुनिया सारी बदल गई,क्योंकि वो इसकी आदि हुई
पैसों से ही पहुँच गए जो घर से निकल विदेशों में
हत्या आपस में करवा देते हैं माँ-बेटे भी पैसों में
 

Wednesday, 27 May 2020

अंग्रेजों से उपहार में सहर्ष मिली ना आजादी....(The freedom was not gifted by English men)


अंग्रेजों से उपहार में सहर्ष मिली ना आजादी
एक,दो की बात नहीं कई वर्ष मिली ना आजादी
रक्त पिपासु गोरों ने जो भीषण युद्ध करवाया था
फूट डालकर भारतीयों को आपस में मरवाया था
मंगल पांडे से वीर सिपाही,इस देश के भक्त हुए
क्रांति की जब उठी ज्वाला गोरे भी तब सक्त हुए
वीरता की अमिट कहानी अब भी झाँसी बता रही
मेरे मन को सबसे ज्यादा ,तीनों की फांसी सता रही
सत्तावन में चूक हुई तो एक सदी तक मार किया
जालिम अंग्रेजी हुकूमत ने कितना कुछ प्रहार किया
भीमराव बाबा ने फिर हरिजनों का उद्धार किया
शिक्षा दिलवाने हेतु खुद से भी ज्यादा प्यार किया
चले गए लाला जी,उन्होंने खूब लाठियां खाई थी
कील कफ़न में होंगी ये चोटें,इतनी बात बताई थी
निर्दोष भारतीय यूँ कभी ना अब सुलाए जायेंगे
हो अटकलें कितनी भी,ना बापू भुलाए जायेंगे
अंत समय एक साथ जो हिन्दुस्तान ये सारा आया
सब कुछ चला गया हाथों से,करो या मरो का नारा आया
गैरों में दम कहाँ थी यहाँ तो अपनों का अंदेशा था
भारत वीरों की धरती है,साफ़ ये सन्देशा था
इतना सब कुछ होने पर कश्मीर का मुद्दा छोड़ गए
गोरे तो फिर चले गए ,भारत टुकड़ों में तोड़ गए

Monday, 25 May 2020

शांति:एक अत्यावश्यक मानवीय मूल्य के रूप में (Peace as a most needed human ethic)


गांव,गली और शहरों में जो अब कोलाहल भारी है
ध्वनि प्रदूषण से जनता परेशान अब सारी है
आस्तिकता ना खोते,आपस में बैर कहाँ होता
मानव को मानव का डर यह जो खैर कहाँ होता
जीवन के हर पहलू में तुम लाना चाहते हो क्रांति
फिर मन्दिर,मस्जिद क्यों भटकते पाने को तुम शांति
साम्प्रदायिकता के ज़हर को तुम क्यों बच्चों को पिलाते हो
जातिवाद की बाटी तुम क्यों बच्चों को खिलाते हो
गर्भ में हम नहीं सीखते सबकुछ सिखाया जाता है
उज्ज्वलता पर पर्दा करके दाग दिखाया जाता है
सफल हो या असफल,प्रयास हमारे भरसक हों
शांतिप्रिय मूल्य ही जीवन के मार्गदर्शक हों
परमाणु हथियार ना हों,हिरोशिमा से घाव ना हों
बांटें आपसी भाईचारा,सीमा पर तनाव ना हों
मन से कचरे निकलेंगे,तभी शांति आएगी
इन मुरझाये चेहरों पर लगता है कांति आएगी
वैमनस्य के तूफान से अब धरती की रक्षा हो
पुस्तकों के साथ में अब जरूरी शांति शिक्षा हो
विश्व में अस्तित्व में ना आतंकवाद से दानव हो
स्वार्थों की होली जला हम अंतर्राष्ट्रीय मानव हों
सबके साझा यत्नों से स्थापित हो अब शांति
किसी के मन में ना रहे,अब कोई भी भ्रांति

Sunday, 24 May 2020

कहानी गुदड़ी के लाल की....

ईंटों का वजन बढ़ाता गया,दुनिया का बोझ चढ़ाता गया
सुखद सवेरे की आशा में,मजदूर बाप बेटे को पढ़ाता गया
बेटे के खातिर पिताजी,जग की ठोकरें खाते रहे
अपना भी दिन आएगा ,ये खुद से खुद को बताते रहे
आस्था के बीज उन्होंने जन्मदिवस से बोयें थे
आसमान छूने वाले,स्वप्न उन्होंने संजोयें थे
हुई मानसिक वृद्धि संग में अक्षर का भी ज्ञान हुआ
अब यूँ लगने लगा पिता का सपना ज़रा नादान हुआ
जमीन बेचने सी शिद्दत थी,चाहत पूरी करने को
अरमानों में रंग भरने को,तैयार पिता थे मरने को
जोरदार मेहनत से बेटा आया अव्वल शिक्षा में
घर में था जो खा लिया,बाहर गया नहीं भिक्षा को
तब से आगे बढ़ता गया
वह सफल सीढ़ियां चढ़ता गया
इरादा अपना नेक किया
दिन रात फिर एक किया
बाधाओं से रूका नहीं
वह तूफानों से झुका नहीं
कुछ दिन बीते ही थे ,फिर तो खबर छपी अखबारों में
बाढ़ खुशी की आ गई रिश्तों में,परिवारों में
कोई बात नहीं करता है अब उस पारिस्थितिक बेहाल की
इति श्री ये हुई कहानी,गुदड़ी के लाल की

Saturday, 23 May 2020

स्वच्छ भारत,निर्मल भारत: हमारी भूमिका व कर्तव्य


स्वच्छता के सैनिकों की स्वेच्छ भर्ती आई है
साफ़-सफाई का संदेशा,भारतीय धरती लायी है
दूध-सी धारा नदियों की अब कितनी मैली हो गई
जगह-जगह ही प्लास्टिक कचरा और थैली हो गई
धरती माँ की आंखों से आंसू की धारा निकल रही
गंगा मैया कचरे से जो,अब तक होती विकल रही
समझ नहीं आया अब तक कचरे से कैसी यारी है
मच्छर तरह तरह के काटें,फैलती बीमारी है
मन से कचरा निकाल लीजिए ,तब ही आगे की बात करें
भैंस के आगे बीन बजाकर वरना क्यों काली रात करें
कम सामान खरीदिए और कम ही तो उपभोग करें
पुनः चक्रण करने के संग बार-बार प्रयोग करें
लोटा लेकर जाने की अब छोड़ो रीति पुरानी है
निर्मल भारत के सृजन की हमने मन में ठानी है
घर के कचरे का निष्कासन,सड़कों पर करना छोड़ो अब
गंदे पानी को शुद्धिकरण से अवश्य नाता जोड़ो अब
कचरापात्र के महत्व से जन-जन को जागरूक करना है
नगर निगम के वाहनों में अब रोजाना कचरा भरना है
सरकारों के आदेशों का हम सब पालन करते हों
गंदगी समर्थकों पर जुर्माने की शर्तें हों

Wednesday, 20 May 2020

सत्य का सूर्य ढ़ल आया ....

जीवन रूपी आसमान में झूठ के जलधि आए हैं
अपने संग में वैमनस्य की आंधियां भी लाए हैं
उचित - अनुचित कार्य अपने जोर से करा रही
ईमान के बालक को अब घनघोर घटा ये डरा रही
बाधाओं के चलते अब भाई - भाई में भेद हुआ
धर्मनिरपेक्ष ओजोन परत में,इस प्रदूषण से छेद हुआ
मांगी थी संजीवनी पर दुनिया ने तो भांग दिया
जनजीवन ने मूल्यों को अब क्यों खूंटी पर टांग दिया
भ्रष्टाचार का अंधेरा अब भी यहाँ पैर जमाये है निर्दोषों का शोषण हैं,दुष्टों ने नाम कमाया है
सब कर्तव्य भूल गए बच्चे,बूढ़े,नर-नारियां
पाश्चात्य की अम्लीय वर्षा,पैदा कर दी बीमारियां
घर में गद्दारी के सुर,अब दिल से कलई खोल रहे
इस बरसाती पानी में अब आतंक के मेंढक बोल रहे
महलों की मीनारों से अब तक पाखण्ड परोसा है
स्वार्थ के पेड़ लगाने को,गरीब का छप्पर कोसा है
एक बगल में कुआं रहा और दूसरी में खाई है
कावं कावं कौए करते,कोयल की मुश्किल आई है
सोशल मीडिया सी नागिनी रोद्र रूप में दिखने लगी
पवित्र संबंधों में भी कामुकता क्यों बिकने लगी
इस वर्षा की बाढ़ से अब जान,माल की हानि है
ऐसी विपदा आई है जो विनाश की निशानी है
ऊहापोह में है जीवन,ये भी कैसा पल आया
मेरे दिल को लगता है,सत्य का सूर्य ढ़ल आया

पैर पराये मांगकर फिर कितनी दूर चलोगे तुम

पैर पराये मांगकर फिर कितनी दूर चलोगे तुम
आत्मनिर्भर ना बने तो खुद से भी जलोगे तुम
अच्छा भोजन करना है,गेहूँ के दाने भुनने क्यों
मानव जीवन पाकर भी दुनिया के ताने सुनने क्यों
हाथ फैलाने से नौका सागर पार करेगी क्या
हर मौके पर आंखें आंसू बारम्बार भरेगी क्या
अमरबेल बनने से क्या जो दूसरों का सहारा ले
ऐसी करनी कीजिए जो दुनिया पता तुम्हारा ले
चमत्कार को मनुज सदा देता आया सलामी है
जल्दी से क्यों जान ना लेते,कहाँ तुम्हारी खामी है
बाहर से मीठी दिखती दुनिया,मन से बिल्कुल खारी है
कलयुग में जनसंख्या सारी,पैसों की पुजारी है
अपने ही दे जाते धोखा,गैरों पर भरोसा क्यों
आलस्य के अंधभक्त,दु:ख में प्रभु को कोसा क्यों
शीतल होकर भी चन्द्रमा,सूरज से तो महान नहीं
प्रकाश पराया देने से क्या,खुद की तो कोई शान नहीं
स्वर्ण पथ नहीं है जीवन,ये कांटों की सेज है
वही जीता है दुनिया से जिसमें अपना तेज़ है
सुनने में विश्वास ना करते,करके तुम्हें दिखाना है
बनता वही सिकन्दर,जिसके पास ना कोई बहाना है

Tuesday, 19 May 2020

भारत की खुशहाली को तो पिज्जा,बर्गर ने मारा


दुनिया बेबस बैठी है,कोई बचा नहीं अब चारा
भारत की खुशहाली को तो पिज्जा,बर्गर ने मारा
हष्ट-पुष्ट शरीर अब क्यों धक्के खाकर गिरता है ?
स्वास्थ्य की खोज में क्यों बाजारों में फिरता है ?
गौ माता के दूध-दही की रही न भारत पर ममता
तभी तो नदी किनारे बैठी,प्रतिरक्षा की क्षमता
चटपटे स्वाद के मानव की जीभ अधीन हुई
मृदुल जीवनशैली भी भारत की,लगता है नमकीन हुई
खुशहाली की घड़ी अब मानों भारत से चली गई
पाचन तंत्र की हत्या करती,ये सारी चीजें तली गई
खानपान के संबंध में जो नियमितता का ज्ञान नहीं
मन की इच्छा पूरी करते,गुणवत्ता का ध्यान नहीं
निरोगी काया का सूत्र लगता है अब भूल गए
आसमान और धरती के मध्य क्षेत्र में झूल गए
आरोग्यता की प्रतिज्ञा, अब मन-मन्दिर हठ गई
आधुनिकता के पुजारियों,औसत आयु क्यों घट गई
कंद-मूल-फल से नाता अब क्यों भारत ने तोड़ा है
बेसनी पकवानों से अब त्वरित नाता जोड़ा है
यही कमी है भारत की तुम छानकर भी छान लो
नष्ट जीवन हो रहा है ,जल्दी से पहचान लो

Sunday, 17 May 2020

कान खोल सुन ले पड़ोसी (The neighbour must hear with open ears)


अपने घर में बर्तन बजते,न्याय पराया करते हैं
झूठी शान के परिंदे ज्यादा इतराया करते हैं
कुछ लोगों को अब भी दावत,पाकिस्तानी भाती है
आतंक को गले लगाने में,ज़रा शर्म नहीं क्यों आती है
भूल गए छब्बीस फरवरी घर में घुसकर मारा था
पराक्रम के सामने आतंकी कुनबा हारा था
कारगिल के युद्ध में भी तुमने तो मुहं की खायी है
फिर निर्बुद्धि लोगों में अभी समझ नहीं आयी है  
विश्वकप का पहला मुकाबला अब भी जीत नहीं पाया
बहुत बार पीटा है तुमको,हमने गीत नहीं गाया
तुझसे ज्यादा किसी के दिल में मानवता से बैर नहीं
गीदड़भभकी दी अब, तो फिर से तेरी खैर नहीं
मृत्यु-शैय्या लेने का न्यौता बार-बार ना भेजा कर
जीर्ण-शीर्ण अस्थिपंजर को थोड़ा तो सहेजा कर
नयनों के संकेतों से फिर एक नचा नहीं पायेगा
पीटेंगें पिताजी तो फिर कोई बचा नहीं पायेगा
कोरोना की बैठक में कश्मीर की बातें क्यों करते
अपने वतन से नफ़रत है क्या,घाटी में आकर क्यों मरते
चापलूसी करके औरों की अपना मन बहलाता है
तेरी करनी की वज़ह से भुखमरा कहलाता है
रूस,अमेरिका सबसे फिर अपनी कहलाकर रख देगी
दिल्ली जाग गई तो तेरा दिल दहलाकर रख देगी

Saturday, 16 May 2020

दोस्ती की परिभाषा (Definition of friendship)


शाबाशी तुझको ही देती,तुझे ही दुनिया कोसती
तेरे संग मैं चल रहा ज़रा संभलकर चलना दोस्ती
विश्वासों के नाम पर आदर्श यज्ञ जानी जाती
जाती
संगति के क्षेत्र में विशेषज्ञ मानी जाती
डूबती नौका को भी भवसागर पार करा दे तू
छल-कपट मन में आ जाए ,जीत की हार करा दे तू
सच्चा साथी होता है जो जान से ज्यादा प्यार करे
प्रतिपुष्टि देता रहे और कमियों का इज़हार करे
कृष्ण जी की ज़रूरत क्या ,जब अर्जुन खुद ही महारथी
फिर भी उन्होंने क्यों कहा बन जाओ मात्र सारथी
वह है सच्ची मित्रता जो ओछे बोल नहीं बोलें
छीटांकशी के नाम पर अपने को मोल नहीं तोले
आग और पानी तुम कभी गठबंधन ना जोड़ो
विश्वासों की डोर को संदेह के चलते मत तोड़ो
धन-धान्य सी चीज ना लाओ दोस्ती के बीच में
वरना यह तो कमल है ऐसा,कभी ना खिलता कीच में
दोस्त भले तुम एक ही पालो,दूध सा उज्ज्वल पालो तुम
ह्रदय की सुन्दरता परखों , मन से मुखड़ा निकालो तुम
सच्चे मीत मिलें व्यक्ति का जीवन ही तो ठाठ हैं
ध्यान रहे टूकड़े धागे के जुड़ते नहीं बिन गांठ हैं

Friday, 15 May 2020

बचपन तेरी यादें (The memories of childhood)


उन्मुक्त पंछियों की तरह ही इधर उधर फिरते थे हम
धरती माँ के आंगन में उठते थे और गिरते थे हम
काल्पनिक मुस्कान नहीं थी,बैर-भाव का काम नहीं
सब घर अपने ही थे तब तो,स्वार्थों का ज्ञान नहीं
अहाते में किलकारियों से कोलाहल खुब मचाते थे
कपोल कल्पनाओं की शक्ति से मन में मोर नचाते थे
बचपन तेरे रहते हुए लगता हर दिन त्योहार था
ना किसी से थी रंजिशें,ना ही कोई भार था
तोतली आवाज़ हमारी जनमानस को भाती थी
माता संग मन्दिर जाते थे,वहाँ वे तिलक लगाती थी
खाली था मस्तिष्क हमारा, तभी तो ज्ञान पिपासा थी
हर चीज़ को जानने में कितनी प्रबल जिज्ञासा थी
रोना और बिलखना तब लगती सामान्य बातें थी
बचपन तेरे साथ तो सब उजियाली ही रातें थी
समय ज़रा कुछ ढल गया,विकसित ये सरोज हुआ
शिक्षा से क्रमिक परिचय तब से हमारा रोज हुआ
मोती से आंसूओं की माला लगता है तब से टूट गई
तेरे जाते ही बचपन,जीवन की खुशियाँ छूट गई
कोई नहीं शिकायत थी,तु फिर भी छोड़कर चला गया
मन के नाटक के मंचन से मुहं मोड़कर चला गया

अभिप्रेरणा की परिभाषा,अर्थ,महत्व,आवश्यकता (The Definition,Meaning,Importance,Necessity of Motivation )


पचपन कि.मी. पहाड़ तोड़ना लगता कितना भारी है
दशरथ मांझी के साहस से परेशानियां हारीं हैं
गूदड़ी का लाल भी शिक्षा में अव्वल आया है
अभिप्रेरणा की ताकत से विराट दुनिया में छाया है
वैज्ञानिक उपलब्धियों से ही श्री कलाम को सलाम हुआ
अभिप्रेरणा के चलते ही अमर,अटल जो नाम हुआ
शैय्या पर सोते रहने से बल्ब बनाया जाता क्या
अभिप्रेरणा ना होती तो जश्न मनाया जाता क्या
सबकुछ खोकर आए हैं जो अब भी सोकर आए हैं
हिमादास से नाम भी अभिप्रेरित होकर आए हैं
अभिप्रेत किरदार होता है हर रोमांचक कहानी का
प्रेरणा की ओर ही चलता है खून जवानी का
कोयले बिन नहीं जलेगी, लक्ष्य की अंगीठी भी
बार-बार प्रयास कैसे करती नन्ही चींटी भी
अभिप्रेरित व्यक्ति ने देखा ना छाया,धूप है
सच्चे अर्थों में अभिप्रेरणा ऊर्जा का ही रूप है
भूल जाओ बुरा समय आज तक जो बीता है
अंत तक लड़ने वाला तो हारकर भी जीता है
जीवन धन्य हो जाता है, अभिप्रेरित व्यक्ति का
अंदाजा नहीं लगा सकते तुम प्रेरणा की शक्ति का
तूफानों से लड़कर भी,अब पार जो कश्ती करना है
लक्ष्य ऐसा ठाना है जो बनकर हस्ती मरना है

Thursday, 14 May 2020

सावधानी हठी, दुर्घटना घटी-सड़कों पर घमासान


परिवहन के साधनों ने बौनी कर दी दूरियाँ
वायुवेग से क्यों उड़ते हो,ऐसी भी क्या मजबूरियाँ
आसान नहीं है जिन्दगी,ना ही जूए का खेल है
चारों ओर जो सड़कों पर वाहनों की रेलम पेल है
खुब चढ़ी परवान जवानी,माना कि चढ़ता खून है
पर जल्दबाजी से मरने का यह कैसा जुनून है
क्यों लेते हो जान परायी,अपने कमाये पैसों पर
वाहन चलाना है क्या जरूरी ,शराब के आदेशों पर
हाथ,पैरों और ध्यान का,अब उत्तम संयोग करो
शिरस्त्राण और सीट बेल्ट का हमेशा प्रयोग करो
निर्धारित सीमा में हमेशा नियंत्रित जो चाल रहे
सावधानी बरतें सब,दुनिया का बढिया हाल रहे
राह चलते राही को ना आशंका हो टक्कर की
सड़कों पर ना रंजिश निकले दुश्मनी के चक्कर की
नियमावली के अनुसरण से ऊँचे तुम जज्बात करो
वाहन चलाते समय समय कभी ना दूरभाष पर बात करो
दुर्घटना की कहानियों से ना आये आंसू आंखों के
निर्दोषों का जीवन ना गुजरें,पीछे बैठ सलाखों के
जो समझ सके इंसान को,वही तो इंसान है
जल्दी जागो भारतवासी,सड़कों पर घमासान है

Wednesday, 13 May 2020

हमारी शिक्षा व्यवस्था कैसी हो (Hamari shiksha vyavstha kaisi ho)


प्यासे को नीर पिलायें हम
भूखे को अन्न खिलायें हम
निर्धन को वस्त्र दिलायें हम
ऐसी हो शिक्षा प्रणाली
ज्ञान से भरे भारत की थाली
समाज से हो समायोजन
मिल बांटकर खाए हम भोजन
कौशलयुक्त बने यह शिक्षा
शिक्षित युवक ना मांगें भिक्षा
जान से भी ज्यादा हमको इस वतन से प्यार रहे
भारत माँ की सेवा को हम सदा - सदा तैयार रहें
सांप्रदायिकता का नाम ना हो
भेदभाव का का काम ना हो
शिक्षा में हो बालक मध्यवर्ती
अमन चैन बांटें ये धरती
ताकि भारत पढ़ता जाए
भाईचारा बढ़ता जाए
मूल्यों में सबसे अव्वल आए , भारत का भी नाम बढ़े
भारत की शिक्षा प्रणाली श्री अटल और श्री कलाम गढ़े
स्मृति पर रुक ना जाए
चिंतन स्तर तक दौड़ लगाए
बोझ ना बने बस्ते हमारे, शिक्षा भी व्यवहार की हो
सौम्य वातावरण में शिक्षा सृजन और आपसी प्यार की हो
 

Monday, 11 May 2020

विज्ञान : वरदान या अभिशाप (Science : boon or curse )


यूँ तो मानो तकनीकी से हमने तारे तोड़ लिए
अंतरिक्ष में खूब उपग्रह सब देशों ने छोड़ लिए
स्वास्थ्य के क्षेत्र में कितना उत्थान किया हमने
समुद्रों की शुद्धि से उनका जलपान किया हमने
प्रसिद्ध हुए वैज्ञानिक और सब देशों की शान बनें
लाखों मील की दूरी नापे ऐसे वायुयान बने
अज्ञानता से दूर हुए हम,रही ना कोई भ्रांति
संचार की कछुआ चाल में सहसा आई क्रांति
विद्युत सी उपलब्धि ने जीवन को सरल बनाया है
पहाड़ सी ठोस समस्या को हमने अब तरल बनाया है
विज्ञान ही सर्वेसर्वा है लगता यह दावा झूठा है
ओजोन सदृश परत का पेट आज क्यों फूटा है
मजदूरों के हाथ काट दिए वैज्ञानिक मशीनों ने
भारी विपदा झेली है जल ,जंगल ,जमीन इन तीनों ने
परमाणु हथियारों से अब सारा जग भयभीत है
तकनीकी ने दुर्बलों पर हासिल की कैसी जीत है
कोरोना सा कोहराम ये विश्वपटल पर छाता क्यों
घोर संकट की सुनकर कहानी आंखों से खून जो आता क्यों
यूँ लगता खुद के लिए काल कलेवा सजा रहा
बढता हुआ प्रदूषण जो खतरे की घंटी बजा रहा

Sunday, 10 May 2020

भरतखण्ड के युवा (Bharatkhand ke yuva) तुम जागो @युवाजागरण


भरतखण्ड के युवा तुम निद्रा से उठकर अब जागो
तकनीकी के युग में तुम अज्ञान के पीछे ना भागो
पाश्चात्य की चकाचौंध में क्यों भारत को खोते हो
आकर्षण को प्यार समझकर क्यों जीवनभर रोते हो
व्हाटसएप के वीर लड़ाई स्टेटस पर लड़ते हो
शौर्य गाथा कौन पढ़े मजाक वतन का पढ़ते हो
फेसबुक पर नकली चेहरे समय गुजारने का ज़रिया
विपदाओं के बीच भारत कैसे पार करे दरिया
आलस्य में सुषुप्त है,भारतीय खून जवानी का
सीना छलनी ना कर देते हत्यारों की मनमानी का
बहन सुरक्षित नहीं किसी की महल ,मकानों,सड़कों में
ऐसी दुर्बुद्धि कहाँ से आई भारत माँ के लड़कों में
कलयुग के इस कालखण्ड में अपराधों का घोर है
ईमानदार को कुचल दिया अब भी दुष्टों का दौर है
परवाह नहीं किसी को मानों मुफ्त मिलीं आजादी है
विषधर सोशल मीडिया भी भारत की बर्बादी है
दो अंकों कमी रही तो क्यों फांसी पर झूल गए
समय ज़रा अनुकूल था, वीरों की शहादत भूल गए
भारत का अन्न खाया है, तुम भी तो आभास करो
दो कर कमल दिये ईश्वर ने तुम्हें,तुम भी तो कुछ खास करो

Saturday, 9 May 2020

बहनों के लिए कविता (A poem for sisters)

भूगोल से खगोल तक बहनों ने नाम कमाया है
बहनों के तेज़ प्रताप से भाग्य भी ज़रा सरमाया है
जिस भाई के बहन नहीं,उसका जीवन एक रोना है
भाई - बहन के संबंध को दिल से मानें तो  सोना है
पवित्रता का अद्वितीय परिचायक त्योहार यह रक्षाबंधन है
बहन बिना भाई का जीवन सदा रहा क्रन्दन है
जिस घर बहन नहीं है उस घर देवों का प्रवेश नहीं
बहन उपस्थित हो जाए तो कोई खूबी शेष नहीं
मध्यकाल में बहनों को अंधविश्वासों ने जकड़ा था
असीम प्रतिभा के सागर को कुप्रथाओं ने पकड़ा था
धीरे -धीरे फिर से उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई
सबसे अव्वल आई बहनें बड़ी खुशी की बात हुई
मन में जब ठानी तो उन्होंने ज्ञान और कौशल का पता दिया
अवसर मिलते ही बहनों ने मुहं पर दुनिया को बता दिया
संस्कार और संस्कृति को गांव - गांव ले जाती है
सारी दुनिया को, सभ्यता का वो पैगाम सुनाती है
समय रहते समझकर बहनों का गुणगान करो
मानव रथ के इस भाग का तन - मन से सम्मान करो
दूध से उज्ज्वल मूल्यों में ना पाश्चात्य की दुर्गंध करो
अपनी हो या हो परायी शिक्षा का प्रबंध करो

Friday, 8 May 2020

ग्रामीण आँचल की छटा (GRAMIN ANCHAL KI CHHATA)

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ब्रह्ममुहूर्त की चांदनी में कोयल गीत सुनाती है
ये छटा ग्रामीण आँचल की मेरे अंतर्मन को भाती है
हुआ सूर्योदय स्वच्छता,स्नान और ध्यान किया
नमस्कार जो किया बड़ों को और मूल्यों का ज्ञान किया
रूखा -सूखा किया कलेवा,वह हल लेकर तैयार हुआ
कैसे बैठे निठल्ला,उसको धरती से जो प्यार हुआ
कानन में अब गया ग्वाला पशु चारण की तैयारी में
खेतिहर मजदूर पहुंच गए पराये खेत की क्यारी में
बच्चे तो दिनभर मिट्टी में खेल खेलते रहते हैं
दुश्मन हो या दोस्त वे तो सबको अपना कहते हैं
हुए प्रचण्ड रवि, ज़रा आराम फ़रमाना चाहता है
उज्ज्वल मन की प्रियतमा से भोजन खाना चाहता है
तनिक देर विश्रांति पर उठकर फिर हुंकार भरी
मिट्टी से ही करने लगा वो अपनी बातें प्यार भरी
शीतल हुए भास्कर,अब गोधूलि वेला आई है
गायें घर को लोट रही मानों संग मेला लाई हैं
पक्षी आये आशियाने में, हुई जो संध्या आरती
सच्चे भारत के कार्यों से प्रफुल्लित हुई मां भारती
थके हुए चेहरे से आंखें अब भोजन को ताक रही
बच्चों से मिलने को काया दिनभर जो बेबाक रही
जो मिला वही मुकद्दर उसने तकदीर को नहीं कोसा है
रोटी -सब्जी के संग प्रिया ने दूध और दही परोसा है
दिनभर की दिनचर्या से उसने अपनी गलती याद किया
ना अहित मैं करूं किसी का ईश्वर से फ़रियाद किया
ना हो कभी भी बैर भाव मुझमें और मेरे अपनों में
कल्याणकारी सोच वो रखता रात्रि के सपनों में

पत्थरबाजी छोड़ो,शिक्षा से नाता जोड़ो


कश्मीरी घाटी में अब पत्थर बरसाना छोड़ो तुम
आंतकियों की गाना है तो,भारत का खाना छोड़ो तुम
भारत के स्वर्ग में कोलाहल मचाकर रखा है
आज भी घाटी में क्यों आतंक बचाकर रखा है?
गद्दारी की साजिश को सत्ता बार बार ना माफ करे
राहों पर बढ़ने से पहले चप्पलों से कंकड़ साफ़ करे
बार बार पीटा जाता है भारत माँ के प्यारों को
पनाह घरों में दी जाती है सेना के हत्यारों को
नन्ही आँखें छिपकर कोने में बार बार जो रोती है
कुछ पत्थर दिल इंसानों को तो पीड़ा भी नहीं होती है
नीम और करेला का संयोग हुआ क्यों घाटी में
खरपतवार कहाँ से आया इस सोने की माटी में
कठपुतलियों का खेल ये जो खुब हुआ अब बंद करो
बेकारी छोड़ो और जागो शिक्षा का प्रबंध करो
गद्दारी घर से ना हो तो कोई कैसे प्रहार करे
भेड़ियों (आतंकी) की क्या औकात जो सोते शेरों पर वार करे
दो टूक भारत कहता है ज्ञान से नाता जोड़ो तुम
पिछला वक्त अब चला गया,पत्थर बरसाना छोड़ो तुम

Sunday, 3 May 2020

कोरोना का कोहराम और सुखद सवेरा (CORONA KA KOHRAM AUR SUKHAD SAVERA)

मानव की वैज्ञानिक जिद्द से मानवता भी हारी है
कोरोना के कोहराम से पस्त ये दुनिया सारी है
सुनसान है सड़के वह जो जलधारा सी बहती थी
विकल है भारत माता जो थोड़े तो सुख में रहती थी
जनजीवन अब व्यथित है पीछे बैठ किवाडों से
यूं लगता है, भारत मां पर पत्थर टूटे पहाड़ों से
सावधानी सीख लीजिए और जागरूकता लाना है
कोरोना से लड़ने में भारत को अव्वल आना है
खूब साथ दिया है अब तक सत्ता के गलियारों नें
तन,मन,धन से सेवा की है भारत मां के प्यारों ने
निर्दोषों पर प्रहार किया है कोरोना के तीरों ने
लगातार तैनाती दी है भारत मां के वीरों ने
उम्मीदों पर अडिग है रहना, जीवन पटरी पर आएगा
अंधियारा छठ जाएगा और सुखद सवेरा आएगा
कोरोना पर भारतवासी फिर गीत खुशी के गाएंगे
या तो यूं ही रुक जाता है,नहीं तो तब तक वैक्सीन बनाएंगे
लौटेगा मानव संसाधन, उद्योगों और बाजारों में
रंग वही चमकेंगे फिर से तीज और त्योहारों में
जीवन एक सफर है जिसमें पत्थर भी आ जाते हैं
बुद्धि और अध्यात्म से हम जीत हमेशा जाते हैं

          " एक सलाम कोरोना योद्धाओं के नाम"


         देश हित में कार्य करें एवं कोरोना से जीतने में सहायता           करें।


          जय हिंद ,जय भारत,जय भारतीय वीर,जय भारतीय।            सेना,जय कोरोना योद्धा
  

Wednesday, 29 January 2020

जय हिंद की सेना

                        "कोर्ट मार्शल"                   


आर्मी कोर्ट रूम में आज एक
केस अनोखा अड़ा था
छाती तान अफसरों के आगे
फौजी बलवान खड़ा था

बिन हुक्म बलवान तूने ये
कदम कैसे उठा लिया
किससे पूछ उस रात तू
दुश्मन की सीमा में जा लिया

बलवान बोला सर जी! ये बताओ
कि वो किस से पूछ के आये थे
सोये फौजियों के सिर काटने का
फरमान कोन से बाप से लाये थे

बलवान का जवाब में सवाल दागना
अफसरों को पसंद नही आया
और बीच वाले अफसर ने लिखने
के लिए जल्दी से पेन उठाया

एक बोला बलवान हमें ऊपर
जवाब देना है और तेरे काटे हुए
सिर का पूरा हिसाब देना है

तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी
अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी

बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया
आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया

बोला साहब जी! अगर कोई
आपकी माँ की इज्जत लूटता हो
आपकी बहन बेटी या पत्नी को
सरेआम मारता कूटता हो

तो आप पहले अपने बाप का
हुकमनामा लाओगे ?
या फिर अपने घर की लुटती
इज्जत खुद बचाओगे?

अफसर नीचे झाँकने लगा
एक ही जगह पर ताकने लगा

बलवान बोला साहब जी गाँव का
ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ
कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद
पे खड़ा खड़ा पहचानता हूँ

सीधा सा आदमी हूँ साहब !
मै कोई आंधी नहीं हूँ
थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ
मै वो गांधी नहीं हूँ

अगर सरहद पे खड़े होकर गोली
न चलाने की मुनादी है
तो फिर साहब जी ! माफ़ करना
ये काहे की आजादी है

सुनों साहब जी ! सरहद पे
जब जब भी छिड़ी लडाई है
भारत माँ दुश्मन से नही आप
जैसों से हारती आई है

वोटों की राजनीति साहब जी
लोकतंत्र का मैल है
और भारतीय सेना इस राजनीति
की रखैल है

ये क्या हुकम देंगे हमें जो
खुद ही भिखारी हैं
किन्नर है सारे के सारे न कोई
नर है न नारी है

ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी
दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है
दुश्मन का पेशाब निकालने
को तो हमारी आँख ही काफी है

और साहब जी एक बात बताओ
वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ

कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब
वाला यार जसवंत खोया था
आप गवाह हो साहब जी उस वक्त
मै बिल्कुल भी नहीं रोया था

खुद उसके शरीर को उसके गाँव
जाकर मै उतार कर आया था
उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी
मै पुचकार कर आया था

पर उस दिन रोया मै जब उसकी
घरवाली होंसला छोड़ती दिखी
और लघु सचिवालय में वो चपरासी
के हाथ पांव जोड़ती दिखी

आग लग गयी साहब जी दिल
किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ
चपरासी और उस चरित्रहीन
अफसर को मै गोली से उड़ा दूँ

एक लाख की आस में भाभी
आज भी धक्के खाती है
दो मासूमो की चमड़ी धूप में
यूँही झुलसी जाती है

और साहब जी ! शहीद जोगिन्दर
को तो नहीं भूले होंगे आप
घर में जवान बहन थी जिसकी
और अँधा था जिसका बाप

अब बाप हर रोज लड़की को
कमरे में बंद करके आता है
और स्टेशन पर एक रूपये के
लिए जोर से चिल्लाता है

पता नही कितने जोगिन्दर जसवंत
यूँ अपनी जान गवांते हैं
और उनके परिजन मासूम बच्चे
यूँ दर दर की ठोकरें खाते हैं..

भरे गले से तीसरा अफसर बोला
बात को और ज्यादा न बढाओ
उस रात क्या- क्या हुआ था बस
यही अपनी सफाई में बताओ

भरी आँखों से हँसते हुए बलवान
बोलने लगा
उसका हर बोल सबके कलेजों
को छोलने लगा

साहब जी ! उस हमले की रात
हमने सन्देश भेजे लगातार सात

हर बार की तरह कोई जवाब नही आया
दो जवान मारे गए पर कोई हिसाब नही आया

चौंकी पे जमे जवान लगातार
गोलीबारी में मारे जा रहे थे
और हम दुश्मन से नहीं अपने
हेडक्वार्टर से हारे जा रहे थे

फिर दुश्मन के हाथ में कटार देख
मेरा सिर चकरा गया
गुरमेल का कटा हुआ सिर जब
दुश्मन के हाथ में आ गया

फेंक दिया ट्रांसमीटर मैंने और
कुछ भी सूझ नहीं आई थी
बिन आदेश के पहली मर्तबा सर !
मैंने बन्दूक उठाई थी

गुरमेल का सिर लिए दुश्मन
रेखा पार कर गया
पीछे पीछे मै भी अपने पांव
उसकी धरती पे धर गया

पर वापिस हार का मुँह देख के
न आया हूँ
वो एक काट कर ले गए थे
मै दो काटकर लाया हूँ

इस ब्यान का कोर्ट में न जाने
कैसा असर गया
पूरे ही कमरे में एक सन्नाटा
सा पसर गया

पूरे का पूरा माहौल बस एक ही
सवाल में खो रहा था
कि कोर्ट मार्शल फौजी का था
या पूरे देश का हो रहा था ?

⚔️जय हिंद की सेना⚔️

⚔️जय जवान जय किसान⚔️

👉दीवाना 🔥भगतसिंह🔥 का
⚔️🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳⚔️