Saturday, 6 June 2020

माफ करो नेताजी,उज्ज्वल वस्त्र भी शर्मिंदा हैं .....


नमस्कार मित्रों
आप सभी के कुशल होने की उम्मीद के साथ आज चुनावों से पहले के समय चलने वाली आरोप-प्रत्यारोप की श्रृंखला पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -

पांच साल अब बीत गए जो हुआ ये प्रत्यावर्तन है
एक दूसरे की बातों का जुबान से ये कर्तन है
कहते हैं हम हरीशचन्द्र,हम ही तो सत्यवान हुए
सत्ता के गलियारों के अब सक्रिय जो कान हुए
शासक और शोषक सब गिरगिट से रंग बदलने लगे
नेताजी के चमचे भी अब घर से निकलकर चलने लगे
यूँ करते हैं याचना कि देश बचाना चाहते हैं
हम सेवक,जनता ईश्वर,बैकुंठ में जाना चाहते हैं
समझदार तो समझ गया कि मिथ्याभाषी जिंदा है
माफ करो नेताजी,उज्ज्वल वस्त्र भी शर्मिंदा हैं
कोयल सी कोमलता से ये ज़हर के जैसा बोलते
सदगुण की प्रशंसा नहीं और पोल हमेशा खोलते
मोल मतों का करके सबने पल्लू झाड़ लिया है अब
पांच साल अपना घर भर लिया,छप्पर फाड़ दिया है अब
फेसबुक के योद्धा भी अब उतर समर में आये हैं
मुफ्त की ठंडी चाय (शराब) ने वाणी के तीर चलाए हैं
गरीब बाप के पैसों का बेटा-बेटी ही काल बने
शिक्षा-दीक्षा को भूलकर नेताजी के दलाल बने
जनता को भड़काकर फिर आपस में उड़ाते खिल्ली  हैं
यूँ लड़ते हैं बार-बार जैसे लड़ते कुत्ते बिल्ली हैं
सच तो यह है लूटपाट के अलग-अलग इरादे हैं
कर्णधार इस देश के क्यों करते झूठे वादे हैं ?

4 comments:

  1. बिल्कुल भाई
    वर्तमान समय की राजनीति में दागी लोगों के आने से नेताओं के भाषणों पर लोगों का विश्वास कमजोर हुआ है .
    वर्तमान पीढ़ी जागरूक के साथ-साथ समझदारी से निर्णय लेती है जिससे स्वच्छ राजनीति की आशा जरूर जगी है.

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    1. आपकी प्रतिपुष्टि के लिए धन्यवाद रामजीvan भाईसाहब

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  2. बहुत अच्छी कविता. राजेन्दृ आजकल तुम ISC मेँ नहीँ दिखते. कभी कभी भाग ले लो. समय मिले तो.

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    1. इस हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ सर जी
      बीच में कुछ कारणों से वहाँ हमारी अनुपस्थिति थी।
      जल्द ही वापस लौटेंगे।
      शुक्रिया

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