कलयुग के इस कालखण्ड में ना अब श्रवण कुमार रहे
कहाँ है ऐसे बेटे अब जो सेवा में शुमार रहे
यूँ तो देते हैं समर्थन दुनिया भर के नारों का
फिर घर में पालन क्यों करते हैं पत्नी के इशारों का
सारी उम्र उस बाप ने जो खून-पसीना एक किया
अपने मन से बेटे का जो पालन पोषण नेक किया
तन,मन,धन अर्पित कर दिया लाल की पढ़ाई पर
बेटे का कल बनाने को वह उतरा रहा लड़ाई पर
दो पैसे कमाने को मां ने भी उठाई टोकरी
सारे प्रयासों के चलते मिली आखिर में नौकरी
तत्पश्चात पिता ने की जो धूमधाम से शादी थी
क्या पता उस भोले मन को घर की यह बर्बादी थी
सास-ससुर को परायी कन्या दे ना पायी इतना प्यार
वर्ष एक भी बीता नहीं कि बना लिया एकल परिवार
बेटा बोला नहीं चलेगी,अपनी बाटी सेंक लो
यहाँ पर क्या है लेना देना,वृद्धाश्रम देख लो
बेबस आंखें क्या करती अब अलग से छप्पर डाल लिया
कहने को कुछ शेष नहीं,आंखों से आंसू निकाल लिया
सफल होना भी बेटे का दु:ख का ही पर्याय बना
बेसहारा प्राणियों संग यह भी कैसा न्याय बना
गाड़ी में नहीं बिठाते जो कंधों पर कौन बिठाये अब
जान भले ही चली जाए,गोद में कौन लिटाये अब
जवानी ढ़ल जाएगी और फिर बुढ़ापा आएगा
गर्व ना कर कल को तेरा बेटा भी यही फ़रमाएगा
जब भारत में प्राचीन शिक्षा होती थी तो एक भी वृद्ध आश्रम नहीं था, लेकिन एक तरफ इस पाश्चात्य संस्कृति व्यवस्था ने हम हमें मॉडर्न बनाया है तो दुसरी तरफ जीवन के मूल्यों से भी परे किया है
ReplyDeleteऔर यह हमें स्वीकार करना चाहिए
कड़वा है पर सत्य है