आत्महत्या के बढ़ते मामलों ने सबकों सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर आत्महत्या के मामलों में क्यों बढ़ोतरी हो रही हैं.
आत्महत्या एक मनचाही मौत नहीं है बल्कि अनचाही मौत है फिर भी ना जाने क्यों संपूर्ण विश्व में 8 से 1000000 लोग हर साल आत्महत्या करते हैं ,एनसीआरबी के आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो देश में हर 55 मिनट में पांच व्यक्ति आत्महत्या करते हैं यानी हर 11 मिनट में एक व्यक्ति फंदे से लटककर ,जहर पीकर या फिर कूदकर अपनी जीवन लीला हमेशा के लिए समाप्त कर देता है ,भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले युवा होते हैं जो 15 से 29 वर्ष की आयु सीमा में होते हैं इनमें शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े युवा ज्यादा देखने को मिलते हैं ,जो कैरियर संबंधि विषय से संबंधित बातों से चिंतित होते हैं, मानते हैं कि विद्यार्थी जीवन में हम सबने इन परिस्थितियों का सामना किया है पर आत्महत्या ही इस समस्या का निदान है यह कहां तक सही है .
- विद्यार्थी जीवन के अलावा अब किसान भी आत्महत्या करने लगे हैं जो सरकार और समाज की चिंता को गंभीर स्तर तक ले जाने का कार्य करती है, इन दोनों के अलावा वर्तमान में सरकारी अधिकारी भी इस समस्या से त्रस्त हैं इस कारण सरकारी तंत्र में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं इसके पीछे राजनीतिक दबाव को अधिक माना गया है,राजनीतिक दबाव ने आत्महत्या बढ़ाने का जो कार्य किया है इससे जनता के मन में राजनेताओं की छवि ओर ज्यादा खराब हुई है,आत्महत्या इतना आसान काम भी नहीं होता जितना हम समाचार पत्रों में पढ़ने के बाद सोच कर भूल जाते हैं इससे पूर्व व्यक्ति कई बार टूटता है फिर भी निखरने का प्रयास करने के बाद भी सही रूप में निखर नहीं पाता है वह अवसाद से भर जाता है,अपनों की याद में उसका गला सूख जाता है उसकी कलम कांपते हाथों का साथ धीरे -धीरे छोड़ती जाती है, परिवार के प्यार को वह शब्दों में उकेर देता है खुद के जाने के बाद परिवार का क्या होगा इस प्रकार के विचार भी उसे कुछ समय के लिए आत्महत्या करने से रोक जरूर देते हैं पर अपने काम पर लगे कंलको को वह जब अपनी बेदाग छवि से जोड़ता है तो उसके हाथ रस्सी के साथ पंखों की ओर बढ़ जाते हैं, सफेद वस्त्र धारी राजनेताओं के काले दिल को वही समझ पाता है फांसी के फंदे और उसके गले के मध्य की दूरी लगभग समाप्त होने पर होती हैं फिर वो ना चाहते हुए भी फांसी को अपना बना लेता है, कुछ देर बाद उसके गले की नस टूट जाती है गालों पर आंसुओं की कुछ बूंदें उसे सच्ची श्रद्धांजलि देती है गले की रस्सी उसकी मौत के टूट जाती है जिन नेताओं की वजह से उन्होंने प्राण गवाहे वही नेता उनके मृत शरीर को सुख की श्रदाँजलि देते हैं, हमें समय के साथ -साथ सोच बदलकर भ्रष्ट राजनीति से अपना विश्वास हटाना होगा नहीं तो जनसेवा के अधिकारियों का बलिदान व्यर्थ जाऊँगा.
रामजीवन विश्नोई
शिक्षा परिदर्शन परिवार के नवागंतुक Ramjiवन भाईसाहब का हार्दिक अभिनन्दन व स्वागत है।
ReplyDeleteआपने पहले ही मैच में शतकीय सलामी दी है,बहुत बहुत बधाई।
एक गंभीर चिन्तन के विषय को परिपक्वता के साथ व्यक्त करने के लिए 💘 से धन्यवाद।
आशा है लेखन के क्षेत्र में आपकी यात्रा जीवनपर्यंत संतुलन के साथ चलती रहेगी।
कुछ दिनों से कलम ये मौन था
नित्य प्रति सुधार करेंगे,जन्म से लेखक कौन था।
शिक्षा परिदर्शन को नई ऊँचाईयां हासिल करने में सहायता करें ।
सधन्यवाद
आपका शुभेच्छु
राजेन्द्र भारतीय
लो ये सफ़र अब शुरू हो गया .........
बहुत-बहुत आभार भाई ,
Deleteव्यक्ति समय और काल स्थितियों के साथ-साथ सीखता जाता है और उसी तरह हम भी सीख जाएंगे .
भवानी प्रसाद मिश्र जी ने कहा था कि
"कुछ लिखकर सो ,कुछ पढकर सो
जिस जगह पर जागा , उससे आगें बढकर सो .🥰🇮🇳🙏