Monday, 8 June 2020

पश्चिम का अंधानुकरण : भारत पर संकट


नमस्कार मित्रों
आज विश्व की श्रेष्ठतम मान-मर्यादा युक्त संस्कृति वाला भारत देश पाश्चात्य का अंधानुकरण करके नैतिक रूप से आगे नहीं बढ़ रहा है इस पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -


संस्कृति और सभ्यता को कितना जल्दी भुला दिया
पाश्चात्य के चमचों ने भारत को नींद में सुला दिया
भारत के मूल्यों को तो वह अंधविश्वास बताती रही
पश्चिम की ये दीमक जो भारत दिन-दिन खाती रही
पश्चिम में दिखावट की जो संक्रामक खांसी है
मानों या ना मानों उनका जीवन भोग-विलासी है
खूब हुआ ये खेल तमाशा,अब भारत से बन्द करो
'काम'की कहानी पढ़ने वालों याद विवेकानन्द करो
अंग्रेजों ने मारा था जो कितना गहरा घाव था
भारत के आदिमानव में कितना कुछ सद्भाव था
मानसिक गुलामों तुमने पहना कैसा भेष है
यहां देशप्रेमी बनना होगा यह भगत सिंह का देश है
घर की मुर्गी दाल बराबर समझकर तुमने छोड़ दिया
मिली ज़रा सी आजादी अपनों से नाता तोड़ दिया
पढ़े लिखे गंवारों से तो बेहतर ही अशिक्षा थी
भूखे को भोजन मिलता था,भिक्षुक को मिलती भिक्षा थी
औरों को उपदेश दिया चलते ना अपने पैरों पर
अपनों से नफरत कितनी,विश्वास किया है गैरों पर
पाश्चात्य का भूत ये तो पूरी तरह से छाया है
भारत के मस्तक पर ये घोर संकट आया है
क्रिकेट के मैदान में फुटबॅाल की रीति कैसे चले
भारत शिक्षा में फिर पश्चिम की नीति कैसे चले


स्वदेशी अपनाइये


जय हिंद जय भारत

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