Friday, 8 May 2020

ग्रामीण आँचल की छटा (GRAMIN ANCHAL KI CHHATA)

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ब्रह्ममुहूर्त की चांदनी में कोयल गीत सुनाती है
ये छटा ग्रामीण आँचल की मेरे अंतर्मन को भाती है
हुआ सूर्योदय स्वच्छता,स्नान और ध्यान किया
नमस्कार जो किया बड़ों को और मूल्यों का ज्ञान किया
रूखा -सूखा किया कलेवा,वह हल लेकर तैयार हुआ
कैसे बैठे निठल्ला,उसको धरती से जो प्यार हुआ
कानन में अब गया ग्वाला पशु चारण की तैयारी में
खेतिहर मजदूर पहुंच गए पराये खेत की क्यारी में
बच्चे तो दिनभर मिट्टी में खेल खेलते रहते हैं
दुश्मन हो या दोस्त वे तो सबको अपना कहते हैं
हुए प्रचण्ड रवि, ज़रा आराम फ़रमाना चाहता है
उज्ज्वल मन की प्रियतमा से भोजन खाना चाहता है
तनिक देर विश्रांति पर उठकर फिर हुंकार भरी
मिट्टी से ही करने लगा वो अपनी बातें प्यार भरी
शीतल हुए भास्कर,अब गोधूलि वेला आई है
गायें घर को लोट रही मानों संग मेला लाई हैं
पक्षी आये आशियाने में, हुई जो संध्या आरती
सच्चे भारत के कार्यों से प्रफुल्लित हुई मां भारती
थके हुए चेहरे से आंखें अब भोजन को ताक रही
बच्चों से मिलने को काया दिनभर जो बेबाक रही
जो मिला वही मुकद्दर उसने तकदीर को नहीं कोसा है
रोटी -सब्जी के संग प्रिया ने दूध और दही परोसा है
दिनभर की दिनचर्या से उसने अपनी गलती याद किया
ना अहित मैं करूं किसी का ईश्वर से फ़रियाद किया
ना हो कभी भी बैर भाव मुझमें और मेरे अपनों में
कल्याणकारी सोच वो रखता रात्रि के सपनों में

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