Monday, 15 June 2020

आत्महत्या (suicide)......

नमस्कार ब्लॉगर परिवार 

भोग विलासी दुनिया में मानव,मानव से दूर हुआ
वो बेबस दिल जो मरने को इतना भी क्यों मजबूर हुआ
आभासी दुनिया में ये सब झूठ परोसा जाता है
आत्महत्या करने पर जीवन को कोसा जाता है
घर के भेदी लंका ढ़हाते तब अंतर्मन रोता है
सोचो उस परिवार की,चिराग जो अपना खोता है
कहने को तो उसके परित: जनमानस का मेला था
दुनिया के संग रहकर भी,वह हुआ क्यों अकेला था 
आकर्षण को प्यार जो कहना धोखे का ही खेल है
ज़हर से डसने वालों का दुनिया में कैसा मेल है 
फेसबुक मित्र हैं लाखों जीवन में कोई एक नहीं
किस को बात बताता खुद की इरादे किसी के नेक नहीं
आवश्यकता महत्ती है अब कसरत की और ध्यान की
सबसे ज़्यादा जग को अब जरूरत है मनोविज्ञान की 
खिलता हुआ फूल था मानों एकदम गर्दन पटक गया
दुष्टों में विषाणु इतना वह फंदे से लटक गया
बाद में मतलब भी क्या जो साजिश का बर्तन फूट गया
काल्पनिक मुस्कान रह गई भाईचारा टूट गया
मानव का जीवन लेकर भी मानवता सब भूल गए
जीवन ऐसी बाधा क्या जो वो फांसी से झूल गए 

4 comments:

  1. आज की इस वैज्ञानिक दुनिया का ऐसा कुचक्र चला इस दुनिया पर
    कहने को हजारों-लाखों है पर सब तेरे मुंह पर तेरे है
    मेरे मुंह पर मेरे है
    रही नहीं मित्रता कृष्ण-सुदामा जैसी
    मित्रता जैसी अमुल्य चीज भी इस वैज्ञानिक दुनिया में किमती हो गई
    करि है महनत बर्षा गिनती के मित्र मनाने में
    हजारों बातें सुन लेते हो इन गिनती के यारो की
    दो शब्द ना सुन सकता अपने सच्चे यारे के
    स्वतंत्रता के नाम पर घर-परिवार से मत भेद किया
    जब इस वैज्ञानिक दुनिया ने रंग दिखाना आरम्भ किया
    जब चुन लिया तुने मानवता पर कलंकित रस्ता

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    1. आप की बात बढ़ती हुई सामाजिक दूरियों की व्याख्या के लिए पर्याप्त है।

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  2. सुंदर सुंदर सुंदर भाई

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