Wednesday, 18 December 2019

विद्यार्थियों के लिए परीक्षा संबंधी प्रेरणादायक कविता( Motivational Poem)

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
आज आपके सामने मैं फिर से परीक्षाओं से संबंधित एक प्रेरणा युक्त स्वरचित कविता लेकर प्रस्तुत हूँ -
Motivational lines-



पहाड़ो को चीर सकते हो यदि तुम ठान लो तो
जंग यह जीत सकते हो, खुद को पहचान लो तो
क्यों यह मान लिया तुमने कि शिक्षा एक मजबूरी है
लड़ाई खुद की खुद से है, जीतना बहुत जरूरी है
रुककर बीच राहों में हाथ ना मलते रहना
कांटे आए या चट्टाने सावधानी से चलते रहना
बहुत होंगे गिराने वाले, तुम आगे बढ़ने का कारण देखो ना
अनमोल है जिंदगी की गेंदे इन्हें व्यर्थ में ना फेंको ना
आसमान छूने वालों को तूफान कभी रोक नहीं पाया है
जो रोज रोता है हालातों को, जान वो झोंक नहीं पाया है
अगर घमंड है किसी को तो हम तोड़ भी सकते हैं
दृढ़ निश्चय कर लिया तो दिशाएं मोड भी सकते हैं
अच्छी करो पढ़ाई तुमको अच्छे नंबर लाना है
अपनी मेहनत से तुमको अब सबका मान बढ़ाना है
जो बन न पाया आज तक,वह इतिहास बनाना है
जान लो,पहचान लो,तुम ठान लो अबके अव्वल आना है
यत्न कुछ यूं करो कि तुम एक अच्छे इंसान बनो
कर्म बड़े करो तुम और देश की शान बनो
जीत का जज्बा हार के डर से ज्यादा रखना है
पश्चिमी हवाओं में नहीं बहना, देश की मर्यादा रखना है

धन्यवाद ब्लॉगर परिवार
आपका शुभेच्छु
Rajendra Indian
जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना

अलंकार संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी, अभ्यास प्रश्न

नमस्कार ब्लॉगर परिवार आज मैं आप सभी के साथ अलंकार संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी सांझा करने जा रहा हूं जो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा से पहले आप की तैयारियों को जांचने के लिए आधार प्रदान करेगी-
निर्देश :- 1. दी गई पंक्तियों में उपस्थित अलंकार की पहचान कीजिए( एक से अधिक अलंकार उपस्थित होने पर प्रत्येक का विवरण दीजिए तथा उस अलंकार संबंधी पहचान को रेखांकित कीजिए)।
2. आप प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के लिए स्वतंत्र हैं ,कोई नकारात्मक अंकन नहीं होगा।

प्र.1 दिवसावसान का समय मेघमय,आसमान से उतर रही है, वह संध्या-सुन्दरी परी सी धीर-धीरे-

प्र.2 पापी मनुज भी आज मुख से, राम नाम निकालते

प्र.3 सुवरण को खोजत फिरत कवि व्यभिचारी चोर

प्र.4 पूत कपूत तो क्यों धन संचय, पूत सपूत तो क्यों धन संचय

प्र.5 जलता है ये जीवन पतंग

प्र.6 सजना है मुझे सजना के लिए

प्र.7 सिर फट गया उसका वही मानो अरुण रंग का घड़ा

प्र.8 सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात। मनहु नीलमणि शैल पर, आतप परयो प्रभात

प्र.9 हनुमान की पूछं मे लगन न पाई आग ,लंका सारी जल गई गए निसाचर भाग

प्र.10 फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज कल- कूजित कर उर का निकुंज चिर सुभग-सुभग

प्र.11 जीवन क्या है? निर्झर है ,मस्ती ही इसका पानी है

प्र.12 मुख बाल-रवि-सम लाल होकर, ज्वाल-सा बोधित हुआ

प्र.13 चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर को घटि ये वृष भानुजा ,वे हलधर के बीर

प्र.14 मिटा मोदु मन भए मलीने ,विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीने

प्र.15 तो पर वारौं उरबसी सुनि राधिके सुजान तू मोहन के उरबसी ह्वै उरबसी समान

प्र.16 मधुर -मधुर मुसकान मनोहर ,मनुज वेश का उजियारा

प्र.17 छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की

प्र.18 मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक

प्र.19 या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय ,ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल होय

प्र.20 चंचला स्नान कर आए, चंद्रिका पर्व में जैसे ,उस पावन तन की शोभा, आलोक मधुर थी ऐसे

प्र.21 भजन कह्यौ ताते भज्यौ, भज्यौ न एको बार ,दूरि भजन जाते कह्यौ, सो ते भज्यो गॅवार

प्र.22 विदग्ध होके कण धूलि-राशि का,तपे हुए लौह-कणों समान

प्र.23 लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मदहिं पिए

प्र.24 सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात,स्वयं ही मुझ गया तेरा हृदय-जलजात

प्र.25 मीठी लगै अँखियान लुनाई

 धन्यवाद,शुक्रिया, अभिनंदन, आभार

 जीतना बहुत जरूरी है खुद की खुद से जो लड़ाई है
 लोग तो पहाड़ों को चीर देते हैं, यह तो सिर्फ पढ़ाई है
 काम ऐसा करो कि जीवन का मातम खुशहाली में ढल जाए
 चलते रहो जब तक कि लोगों की गाली,ताली में बदल जाए
 आपका शुभेच्छु
राजेन्द्र भारतीय
 जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना

Wednesday, 20 November 2019

शहीद 🔥भगतसिंह🔥 साहेब

आजादी का एक दीवाना नाम भगत सिंह लिखता था
गली के बाकी सारे बच्चो जैसा ही तो दिखता था
सब गुड्डे गुड़िया खेलते थे उसको आजादी प्यारी थी
उसके दिल में इंक़लाब की दबी हुई चिंगारी थी
उसकी आँखों के ही सामने जलिया वाला बाग़ हुआ
जनरल डायर के आदेशो पर वो खूनी फाग हुआ
उस दबी हुई चिंगारी ने फिर जन्म दिया एक ज्वाला को
क्रन्तिकारी बना भगत सिंह,त्याग प्रेम की माला को
सांडर्स को मारा बलिदानो की कसम भगत ने खाई थी
किये धमाके संसद में और बेहरो को गूँज सुनाई थी
भेजा जेल भगत सिंह को, उलटी गोरों की चाल हुई
पहली बार ११६ दिन की भूख हड़ताल हुई
भगत सिंह को पीटा और सुखदेव गुरु का संग मिला
ज़ख़्म से रिसते लहू में उनके आजादी का रंग मिला
वो अड़ा रहा की जिसने सपने इंक़लाब के देखे थे
उस मुछ की ताव के आगे घुटने गोरों ने भी टेके थे
दोषी सिद्ध हो रहे थे वो मौत का पंजा कसता था
जज को देखकर भगत सिंह दीवानों जैसा हँसता था
जो चाहा था भगत ने आखिर का वो अंजाम हुआ
तीनों को फांसी दी जाये, फिर कोर्ट में ये ऐलान हुआ
माँ से मिलकर बोला बेबे मैं दूध का कर्ज चुकाऊंगा
हर आजादी के दीवाने में नज़र तुझे में आऊंगा
माँ से बोला रोना मत, ये भारत मेरी माता है
रोये या गर्व करे माँ के तो कुछ भी समझ न आता है
२३ मार्च का दिन आया ये भूमण्डल भी डोल उठा
जेल का हर इक कोना उस दिन रंग दे बसंती बोल उठा
भगत सिंह की अमित शहादत नियति भांप गयी होगी
जब चूमा होगा भगत सिंह ने रस्सी काँप गई होगी
पत्थर से दिलवाले गोरों के दिल भी पिघल गए होंगे
जल्लादों की आँखों से भी आसूं निकल गए होंगे
देह छोड़ दी भगत सिंह ने, एक इबादत गूँज उठा
इंक़लाब के नारों से ये सारा भारत गूंज उठा
२३ साल का एक लड़का जो आज़ादी का दीवाना था
शहीदे -इ- आजम वो कहलाया, तुम्हे यही बतलाना था
आजादी के अफ़सानो जब जब एक शायर गाएगा
सुखदेव भगत और गुरु तुम्हारा नाम हमेशा आएगा।
🇮🇳इंक़लाब ज़िंदाबाद🇮🇳
👉दीवाना भगतसिंह का👈

Sunday, 3 November 2019

भारत आज और कल, समस्याएं और विश्लेषण

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
भारत माता आज विभिन्न समस्याओं से गुजर रही है जिनमें से कुछ के बारे में मैं अपने एक मौलिक कविता के माध्यम से बताना चाहूंगा। किसी भी भाषा संबंधी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।


हाथ हाथ को खा रहा यह कैसा कलयुग आया है
उदास है मां भारती आंगन में मातम छाया है
भरमार हो गई हर जगह देखो चांदी के जूतों की
तूती खूब बोलती है अब भ्रष्टाचारी दूतों की
उम्र 3 साल थी कि खबरें रेंप की आ गई अखबारों में
ना सुरक्षित हैं वह खुले आसमान तले और ना सुरक्षित है घर की दीवारों में
ईमानदारी मिट गई, सत्य का गला भर आया है
उदास है मां भारती आंगन में मातम छाया है
हिंदी अबला रह गई,अंग्रेजी सबको भाती है
महक मिट्टी की भूल गए पश्चिम की हवाएं आती है
गाज गिरी है शिक्षा पर,इसे क्यों धंधा बना दिया
पश्चिम का अंधानुकरण,भारत को अंधा बना दिया
जनसंख्या वृद्धि में मानो प्रकाश की चाल है
आज मां भारती के प्रांगण का हाल बेहाल है
आधी जनता हिंदुस्तानी चैन की राह सो नहीं पाती है
अभी भी कुछ गरीबों को दो जून की रोटी भी नसीब हो नहीं पाती है
गरीब गरीब रह गया,अमीर उत्तम से सर्वोत्तम आया है
उदास है मां भारती आंगन में मातम छाया है
रोज लड़ाई होती है अब धर्म,रंगऔर जाति पर
इतने ही वीर पुरुष हैं तो जाकर गोली क्यों ना खाते छाती पर
राह चलते पथिक के मार्ग में क्यों कचरे के ढेर बने फिरते हैं
ऐसा लगता है मानो गली के कुत्ते शेर बने फिरते हैं
कुछ दुष्ट राह बताते हैं उन आताताईयों को
पनाह देते हैं घरों में उन सौतेले भाईयों को
हाथ हाथ को खा रहा यह कैसा कलयुग आया है
उदास है मां भारती आंगन में मातम छाया है

धन्यवाद ब्लॉगर परिवार
भारत मां की सेवा करने का कष्ट करें, इसके हृदय को कष्ट ना दें

जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना








Thursday, 17 October 2019

बेटियों के जीवन पर मंडराते संकट के बादल, कविता राजेन्द्र भारतीय



नमस्कार ब्लॉगर परिवार

मां-बाप की पहचान है बेटियां
भूत,भविष्य और वर्तमान की शान है बेटियां
करना तो बहुत कुछ चाहती है बेटियां पर लोक लाज से डर जाती हैं
कुंठित मन कुंठित रह जाते हैं, खुले दिलों के जीवन में रंग बेटियां लाती हैं
इस सदी में बेटियां परिवर्तन की अलख जगा सकती हैं
अगर ठान ले बेटियां तो सारी रूढ़िवादिताएं भगा सकती है
लक्ष्मी बाई, कालीबाई और हिमा दास से नाम हैं उनके
वीरता, कर्तव्य पालन और देशभक्ति से काम हैं उनके
जो लिखा अभी तक वे खूब सुनहरी बाते हैं
पर यह मत भूलो कि अभी भी करोड़ों ग्रामवासिनी बेटियों के जीवन में दिन में भी काली राते हैं
क्या खूब विडंबना है पग-पग पर उनके जीवन पर संकट छाया है
हर और राक्षस बैठे हैं ,यह कैसा कलयुग आया है
उम्र 3 साल थी की खबरें रेंप की आ गई अखबारों में
ना सुरक्षित है वह खुले आसमान तले और ना सुरक्षित है घर की दीवारों में
शादी आजकल वर पक्ष का एटीएम बन गया है
बेटा चपरासी क्या बना,दहेज ऐसे मांगते हैं मानों पीएम बन गया है
गरीब मां बाप की बेटी दांपत्य जीवन में भी कहां खुश रह पाती है
फंदे से झूलना पड़ता है उसे क्योंकि वह दहेज प्रताड़ना सह नहीं पाती है
तन मन से सोचो तो क्या ये परिस्थितियां कन्या भ्रूण हत्या के लिए मां-बाप को मजबूर नहीं करती
जानो दिल से एक बार कि क्या यह बेटियों के सपनों को चकनाचूर नहीं करती
कामवासना छोड़ो मत लूटो सम्मान तुम नारी का
क्यों जीवन बिगड़ते हो किसी की आशा का और किसी की प्यारी का
अगर ऐसा ही रहा तो मानवता का स्वाभिमान झुक जाएगा
फिर देख लेना यह मानव जीवन रथ रूक जायेगा


महिलाओं का सम्मान करें।

धन्यवाद ब्लॉगर परिवार
जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना










मेरे शिक्षक मेरी पहचान, मेरी शान- शिक्षक दिवस स्पेशल


नमस्कार ब्लॉगर परिवार


जो सुना न पाया आज तक वह गीत सुनाने आया हूं
जो दिल में गाता है मेरा, वह संगीत सुनाने आया हूं
क्या खूब कहूं यह आपके प्यार की कहानी है
भले ही दुनिया क्यों ना कह दे कि यह मनमानी है
पर यदि मैं वीर था तो अभिनंदन बना दिया आपने
अगर मैं गीत था तो वंदन बना दिया आपने
यदि मैं हल्दी था तो चंदन बना दिया आपने
यदि मै धड़कन था तो स्पंदन बना दिया आपने
परोपकारी झरने हो आप और ज्ञान के सागर हो
आप ही हो साक्षात् प्रभु,आप ही गिरिधर नागर हो
आपकी कृतज्ञता से मुकर जाऊं तो यह सबसे बड़ा पाप है
सच कहूं तो विद्या के इस मंदिर में आप ही मां-बाप है जीत की जंग छेड़ने को आपका एक वाक्य काफी है
कितनी बार टाला आपने और कितनी बार दिया माफ़ी है
सही कहूं तो आप लोहे को सोना बना सकते हो
वह कलाकार हो आप जो अव्यवस्थित मिट्टी को खिलौना बना सकते हो
सारी दुनिया कहती है आप राष्ट्र के निर्माता हो
जी हां सही सुना आप ही भारत भाग्य विधाता हो
अगर यह फूल खिला तो आपके भी गुणगान होंगे
मैं बड़ा बन पाऊं या नहीं हमेशा मेरे लिए महान होंगे
बस यही कहना है मेरा,मैं शांति और चैन पर अमन करता हूं।
मैं राजेन्द्र आप सभी गुरुजनों को नमन करता हूं


धन्यवाद ब्लॉगर परिवार
जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना










Thursday, 22 August 2019

HIV-AIDS

HIV - AIDS
क्या होता है एचआईवी
 एचआईवी का पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस होता है यह रेट्रोवायरस श्रेणी का वायरस है।
क्या होता है एड्स
एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम होता है, अर्जित प्रतिरक्षा न्यूनता सिंड्रोम इसका हिंदी नाम है

- एचआईवी वायरस लंबी अवधि शरीर में बने रहने से शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता जिसे विज्ञान की भाषा में प्रतिरक्षा कहा जाता है, कम हो जाती है इस स्थिति को एड्स कहा जाता है।
दरअसल एड्स अपने आप में कोई बीमारी नहीं होकर शरीर में बहुत सारी बीमारियों का एक साथ होना है।

एचआईवी संक्रमण के कारण
इसके 4 कारण होते हैं-
प्रथम-असुरक्षित यौन संबंध बनाने से
द्वितीय-संक्रमित सुई का प्रयोग करने से
तृतीय-एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति का रक्त स्वस्थ व्यक्ति को चढ़ाने से
चतुर्थ-मां के शरीर से अपरा(प्लेसेंटा) के माध्यम से बच्चे के शरीर में

HIV संक्रमण के लक्षण
उल्टी आना,शरीर पर चकत्ते होना ,कमजोरीमहसूस होना,सिर दर्द रहना इत्यादि

एचआईवी एकमात्र ऐसा संक्रमण है जो तभी फैलता है जब आप इसे चाहते हैं अर्थात् यदि हम जागरूक बने तो हम इस से बच सकते हैं क्योंकि यह हवा ,पानी, संपर्क से नहीं फैलता है।
इसलिए जागरूकता ही एचआईवी एड्स का इलाज है।

एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों के लिए हेल्पलाइन नंबर 1097 टोल फ्री नंबर है जोकि उनको इस बारे में संबंधित प्रश्नों के जवाब देने का कार्य करता है।
और तो और इसमें संबंधित व्यक्ति की जानकारी भी गुप्त रखी जाती है।


एचआईवी पर इतना बवाल क्यों
दरअसल एचआईवी एड्स एक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा था जिसे आज सामाजिक मुद्दा बना दिया है और कुछ रूढ़िवादी मानसिकताओं के कारण एचआईवी पीड़ित व्यक्तियों का समाज में जीवन निर्वहन करना मुश्किल हो गया है।
कुछ लोग समाज में अपनी आभासी प्रसिद्धि को बनाए रखने के लिए एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों का इलाज न करवाने में ही अपना सौभाग्य समझते हैं जो कि मानवता पर खतरे की घंटी बजा रहा है।
इसके अलावा समाज के तथाकथित समझदार लोग इस मुद्दे पर बात तक करने से कतराते हैं उन्हें लगता है कि यदि ऐसे मुद्दों पर चर्चा होने लग गई जो परिवार का माहौल बिगड़ जाएगा दरअसल आप ही सोचे किसी की जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है या आभासी सम्मान
एचआईवी एड्स एक कलंक है जिसको समाज पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित करता जा रहा है तथा उसे हटाने का कोई नाम ही नहीं
हो सकता है कुछ नया सोचने की, नया करने की जरूरत है जागो भारत जागो,जागो युवा जागो
Join Red ribbon class to help HIV positive persons (my experiences after attending a national level meeting of  national AIDS control organisationin in Delhi on20 अगस्त 2019)

जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर  जय भारतीय सेना

Friday, 26 July 2019

वीरता, शौर्य, बलिदान और देशभक्ति की प्रतिमान भारतीय सेना के बारे में कविता

  नमस्कार ब्लॉगर परिवार
कारगिल विजय दिवस के 20 वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय वीरों की वीरता को सलाम और ऐसे वीरों को जन्म देने वाली मातृभूमि और उनके माता-पिताओं को प्रणाम

 इस अवसर पर मैं मां भारती के सभी सपूतों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं

  आज भारतीय सेना के लिए कुछ स्वरचित पंक्तियां प्रस्तुत है-



ना प्रसिद्धि की  मृगतृष्णा है,ना भौतिकवादिता से लेना देना हैं
स्वतंत्रता की सच्ची प्रहरी भारतीय सेना हैं
एक बार निकल जो पड़े तो फिर आपको कौन रोकता है
आपके खून के उबाल को हर मौसम सलाम ठोकता है
भारतीयों को सुख की नींद सुलाने के लिए आप सदा-सदा सो जाते हो
मातृभूमि की रक्षा के लिए असीम संसार में खो जाते हो,
आसान नहीं है राह आपकी कदम कदम पर शूल है
तिरंगा ना झुके इसके लिए प्राणों की बाजी भी आपको क़ुबूल है
पता नहीं कब रक्षा का बंधन टूट जाए
पता नहीं कब उस साहसी महिला का चूड़ा फूट जाए
हमला एक हुआ तो मां-बाप की सांसे रुक जाती हैं
लेकिन अमर हो जाते हो आप और सम्मान में सारी जनता झुक जाती है
कभी गीत हो आप,कभी वंदन बन जाते हो
कभी वीर हो आप तो कभी अभिनंदन बन जाते हो
काश हर भारतीय में आप जैसा खून बहे
काश हर युवा में मातृभूमि सेवा का आप जैसा जुनून रहे
तो फिर क्या दम है कुछ दानवों की जो पुलवामा जैसा नरसंहार करें
घर में गद्दार ना हो तो भेड़ियों की क्या औकात जो सोए शेरों पर वार करे
'भारतीय' आप की जाति है और 'मानवता' धर्म है
वतन आबाद रहे यही प्रयत्न आपका कर्म है

जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना

धन्यवाद ब्लॉगर परिवार

Tuesday, 21 May 2019

Concept,types,definitions,importance of evaluation in education,#Evaluation


स्वागत है ब्लॉगर परिवार


                      मूल्यांकन  (EVALUATION)

Evaluation is the comprehensive and continuous process , which  find outs about
the knowledge of student related to any subject or  given content .
Mainly the process of evaluation is based on the educational and instructional objectives because the examiner or e‌valuator tests the students according to the objectives which were decided in the beginning  of session or learning process.
Evaluation has more importance than measurement and assessment because measurement gives  only quantitative results or numerical results about student there is lack of information about life ethics, personality, attitude towards co-curricular activities and strength of student .

so we can say that measurement is not the basis on which a concluding statement is given about the student.

NEED OF EVALUATION

1-Evaluation is required to give information   to the parents about the the condition of student in learning .

2-Evaluation gives feedback  teacher so that he or she can improve his or her teaching methods and communication skills.

3-Evaluation gives feedback to student also the student will be able to get help in their studies in future.

4-Evaluation is the backbone of teaching learning process because it tells us how many  objectives are completed by the student or learner.


THE PROCESS OF EVALUATION

1-EXAMINATION
In this step the  evaluator tests student through question papers and oral test based on the content and related with educational objectives .

2-DIAGNOSIS-
In this step  the evaluator consults with student on his or her result of examination because the evaluator wants to know that what were the reasons due to which the student failed in getting complete his or her educational objectives.

3-REMEDIES
In this step the teacher or evaluator teaches again students according to their requirement these classes are called remedial classes and this teaching is called remedial teaching
In the end of evaluation process the evaluator takes test again which is called remedial test or examination
Evaluator tries  to observe the  personality of student and  gives  a statement about student's character.

धन्यवाद ब्लॉगर परिवार
       

      जय हिंद  जय भारत जय मां भारती जय भारतीय सेना









Sunday, 12 May 2019

सच्चे प्रेम की प्रतिमूर्ति मां के बारे में कविता, मां की ममता

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
 विश्व मातृत्व दिवस पर मां के लिए मेरी कुछ पंक्तियां अग्र अनुसार प्रस्तुत हैं-

मां से ही हम सब का संसार शुरू होता है
गुरु होती है मां और मां का स्थान गुरु होता है
अमरबेल(दूसरों पर आश्रित)से वृक्ष बना देती है मां
नौसिखिया को दक्ष बना देती है मां
आज तक तूने की कोई मनमानी नहीं
सच्चे प्रेम में मां तेरा कोई सानी नहीं
तेरी महिमा का बखान करूं तो इतने पेज कहां है
तुझसे बड़ा बन सकू इतना तेज(साहस) कहां है 
संतान के आंसू बचाने के लिए मां  आंसुओं का घूंट पी लेती है
उनकी (संतान) नींद के लिए मां बिना नींद जी लेती है
बचपन में सूखे में सुलाती है हमें और गीले में उसे सोना पड़ता है
दुर्भाग्य है इस देश का जो कभी बेटे के लिए रोने वाली मां को बुढ़ापे में बेटे की वजह से रोना पड़ता है
तेरे आंचल सा  सुनहरा उपवन कहां है
मां बिन मेरा अस्तित्व कहां है
लाख-लाख वेदनाएं मां तुझको सहनी पड़ती है
संतान की जिंदगी सफल बनाने के लिए तुझे अपनी जिंदगी की आहुति देनी पड़ती है


धन्यवाद
ब्लॉगर परिवार


Sunday, 14 April 2019

जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीद हुए वीर वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि कविता

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
🇮🇳🇮🇳🇮🇳13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश सरकार द्वारा अंजाम दिए गए एक घृणित कृत्य जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी पर  मैं भारत मां के सभी शहीद वीर और वीरांगनाओं को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं इस हत्याकांड के संदर्भ में  मेरी कुछ मौलिक पंक्तियां इस प्रकार  प्रस्तुत है-

इतिहास कहता है कि वार शनिवार था
सुना तो यूं भी जाता है कि बैसाखी का त्यौहार था
नहीं थे तैयार भारतीय रॉलेट एक्ट को सहने को
सो हो गए इकट्ठे मन की बातें कहने को
उस काले दिन हजारों भगत सिंह, सुभाष और गांधी मारे गए
निहत्थे निर्दोष मौत के घाट उतारे गए
अंग्रेजी हुकूमत स्वतंत्रता संग्राम पर गहरी चोट देना चाहता था
या यूं कहो कि आजादी की हुंकार का गला घोट देना चाहता था 
दिया आदेश सेना को उस जालिम जनरल डायर ने
तबाही मचा दी उस भेडिए कायर ने
एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी
उस भेड़िए की वजह से शांत शेरों की कयामत आई थी
गुरुदेव ने फिर नाइटहुड छोड़ दिया
इस घृणित कृत्य ने विरोध की दहकती ज्वाला को नया मोड़ दिया
ऊधम सिंह से वीर ने कसम माँ भारती की खायी थी
फिर उस हत्यारे को कैक्सटन हॉल में मौत की राह पकड़ाई थी
महसूस करो इतिहास की उन करुणामयी चित्कारों को
नमन करो भारत माँ के उन प्यारों को, भारत मांँ के उन प्यारों को
शांति और चैन पर मैं अमन करता हूँ
सौ वर्ष बीत गए उस मौन शहादत को मैं राजेन्द्र शत् शत् नमन  करता हूँ
नमन करता हूँ शहादत की संध्या आरती को
नमन भारतीय वीर- वीरांगनाओं को और नमन मां भारती को
     
       🇮🇳🇮🇳जय हिंद जय भारत जय भारतीय शहीद🇮🇳🇮🇳

धन्यवाद ब्लॉगर की दुनिया

Sunday, 17 February 2019

पुलवामा हमला एक काला दिन(The pulwama attack:a black day)




14 फरवरी 2019 का दिन भारतीय सेना लिए एक काली और भयावह रात जैसा था जिसमें कायर लोगों ने दुष्टता और नीचता पूर्वक कुटिलता का सहारा लेते हुए कुछ राज खोलने वालों की मदद से भारतीय सेना के 44 जवानों को छीन लिया
आतंक का यह राक्षस निरंतर बढ़ता ही जा रहा है जो हमारे जाने पर पीछे से वार करके अपनी दुष्टता का परिचय दे रहा है भारत मां के ये जवान सदा सदा अमर रहेंगे और युवाओं के लिए प्रेरणा  स्रोत रहेंगे उन  जवानों को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए आतंकवाद पर मेरी कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है

ले गए बलिदान हत्यारे मांँ भारती के 44 सपूतों का
जरूर होगा हाथ इसमें कुछ देशद्रोही दूतों का
बिजली सी चाल से वे जिंदगी की दौड़ को दौड़ गए
एक बार फिर से हमारे 44 भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हमें छोड़ गए
जिन जवानों को हम हीरों के रूप में देखते हैं
उन्हीं जवानों पर कुछ दुष्ट पत्थर फेंकते हैं
राह बताते हैं कुछ लोग उन आताताईयों को
पनाह देते हैं घरों में उन सौतेले भाइयों को
कब तक हम बलिदान यह सहते रहेंगे?
कब तक हम अबकी बार अबकी बार कहते रहेंगे?
लड़ते तो हमारे 44 उनके 444 को नहीं छोड़ते
देह छोड़ देते लेकिन मांँ भारती की सेवा से मुंँह नहीं मोड़ते
फूट  दिखती है उन्हें इसीलिए तो भारत में आते हैं
कुछ बड़बोले तो इस शहादत पर भी राजनीति करने लग जाते हैं
वे (आतंकी) सबसे कायर हैं दुनिया में यही बताना चाहते हैं
हमारे मणियों की माला बिखेरकर वे कौन सा वीरता पुरस्कार पाते हैं
माना कि हम सीमा पर जाकर लड़ नहीं सकते
लेकिन रोज अखबारों में बेगुनाह जवानों की शहादत की खबरें भी हम पढ़ नहीं सकते
 माना कि हमारी सहनशीलता का सम्मान पिट जाएगा
लेकिन हम मिलकर चाहे तो दुनिया के नक्शे से आतंक का नामोनिशान मिट जाएगा



Saturday, 9 February 2019

भारतीय समाज और असहिष्णुता?


असहिष्णुता ?

नमस्कार मित्रों।
          
                  एक बार आपका फिर से मेरे ब्लॉग में स्वागत है। पिछले कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति को एक नया शब्द मिला है जिसका नाम है :-  असहिष्णुता ? आप सोच रहे होंगे मैं बार बार असहिष्णुता? के पीछे प्रश्नवाचक चिह्न क्यों  लगा रहा हूँ ? चिंता मत कीजिए मेरे ब्लोग पढ़ते रहिये आपके सभी सवालों का जबाब मेरे ब्लॉग मेंं है।

तो आनंदित होने के लिए तैयार हो जाइए 😊
                 भारत में सरकार परिवर्तन के साथ ही  सहिष्णुता वनाम असहिष्णुता की जंग छिड़ गई  तथा इसी के साथ भारत दो गुटों में बंट गया एक तबका जो भारत को  सहिष्णु मानता हैं तथा दूसरा तबका जो भारत को असहिष्णु  मानता है। 

सहिष्णु शब्द  का शाब्दिक अर्थ होता हैै  सहन करना और इसी के विलोम में असहिष्णु शब्द का अर्थ होता हैै सहन ना कर पाना । 

परंतु भारतीय राजनीति में इसका उपयोग धार्मिक आधार पर किया जाता है। असहिष्णुता के समर्थकों का मानना है कि भारत में धर्म के नाम पर असहिष्णुता बढ़ रही है लोग धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे को मार रहे हैं और धर्म में भी खासकर हिन्दू धर्म को इंगित करके असहिष्णुता का धब्बा लगाया  जा रहा है इन लोगो का मानना की सम्पूर्ण  हिन्दू समाज असहिष्णु हो गया है और धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक धर्म के लोगो की हत्या कर रहा है और इसके चलते कई कलाकारों  जिन्हें ना केवल अल्पसंख्यक समाज द्वारा ही नही  सम्पूर्ण भारत एवं हिन्दू  समाज द्वारा भी बहुत सम्मान दिया  गया है और अब भी दिया जा रहा है  को भारत में रहने से डर लगने लगा है। इन कलाकारों की राजनीतिक 
प्रत्याशाओं को डर का रूप देने की कला को मेरा सलाम।

सर्वप्रथम आमिर खान ने कहा की भारत में माहौल अच्छा नही है और उन्हें भारत में डर लगता है और उनकी पत्नी उन्हें कहती है कि हमें भारत को छोड़ देना चाहिए।
और हाल ही में नाशीरुद्दीन शाह का बयान आया कि उन्हें भारत में डर लगता है की कही कोई उनके बच्चों को रास्ते में मार ना दे और भारत में इंसान की जान से ज्यादा गाय की जान की ज्यादा कीमत है।

और इसके चलते कई साहित्कारों ने अपने सम्मान लौटा दिए।

पर इन सब पर सवाल यह उठतें है कि :-

1. पिछले पांच सालों में ऐसा क्या हो गया जो आज तक देश में कभी नहीं हुआ तो फिर अचानक देश में असहिष्णुता कहा से आ गई।

2. अखलाल और कलबुर्गी की मौत पर अपने पुरुष्कार बापसी करने वाले साहित्यकार तब कहा थे जब 5 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घर से निकाल दिया गया तथा पूरे देश में 10,000 सिक्खों को मार दिया गया तब किसी भी साहित्यकार के आंखों में आंसू नहीं आये। तो अचानक ऐसा क्या हो गया जो पूरा भारतीय समाज असहिष्णु हो गया।

3. मुंबई बम धमाकों में इतने लोग मारे गए तब कलाकारों को डर नही लगा।

4. रोहिंग्या मुसलमानो को बापिस ना भेजा जाए इसलिए आजाद मैदान में तोड़ फोड़ कि गई कई पॉलिस कर्मियों को मार  दिया गया तब डर नहीं लगा तो अचानक ऐसा क्या हो गया......

और यदि देश में हिंसा के आंकड़ों को देखा जाए तो साल दर साल हिंसा के आंकड़े कम होते जा रहे हैं।

Ipsos mori नामक एक संस्था ने 27 देश एवं 20,000 लोगो का सर्वे किया गया जिसके आधार पर कनाडा , चीन  और मलेशिया के बाद भारत का सहिष्णु देशो में चौथा स्थान  आता हैं। 


और अब हिन्दू समाज में सहिष्णुता की बात करें तो:- 

इतिहास से आरंभ करे तो 17-17 बार मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने माफ किआ था .. इससे ज्यादा कोई क्या सहिष्णु हो सकता है।
14-14 बार महमूद गजनवी ने  सोमनाथ मंदिर को तोड़ा था फिर भी मंदिर के पुजारी ने उससे कुछ नही कहा।

और यदि वर्तमान की बात करे तो राजनीति के अलावा कही भी असहिष्णुता नही है......

यदि मैं मेरे खुद के परिवार की बात करूँ तो अब भी मेरे घर पर पहली और आखिरी रोटी पशु के लिए बनती है जिससे जीव मात्र तक भूखा ना रहे।

आज भी शाम होने के बाद हम पेड़ पौधों को हाथ नही लगाते यह मानते हुए की इनमे भी इंसानो की तरह जान है और यह सो रहे होते हैं

अभी भी भारत में गांवो में लोग मिल जुलकर रहते हैं।

जिस प्रकार किसी एक व्यक्ति के बुरे कार्यो की वजह से पूरे परिवार को बुरा नही कह सकते उसी प्रकार कुछ लोगो के गलत इरादों की वजह से पूरे भारतीय समाज एवं हिन्दू धर्म को बुरा , असहिष्णु या निकृष्ट धर्म नही कह सकते ।

भारत एक है इसे एक रहने दो धर्म के आधार पर या अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं  की पूर्ति के लिए इसे मत बांटो ।

भारत देश जो अपनी अहिंसा और सत्य के लिए विश्व भर में विख्यात है.......आज इस निकृष्ट राजनीति से जूझ रहा हैं।

भारत एक सहिष्णु एवं सर्वधर्मसमभाव वाला देश है।

धन्यवाद।

आनंदित भव: 😊






Thursday, 7 February 2019

अध्यापक के बारे में.........

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
इस दुनिया में  परोपकार और असीम प्रेम का पर्याय यदि किसी शब्द को समझा जाए तो एक ही उत्तर निकल कर आता है, वह है गुरु। गुरु में हमारे माता पिता, हमारे आदर्श या हमारे शिक्षक शामिल हो सकते हैं।
वास्तव में एक शिक्षक के परोपकार से उऋण होने में सात जन्म का समय भी कम पड़ सकता है।
एक शिक्षक हमेशा अपनी जिंदगी के बेशकीमती समय की अपने विद्यार्थियों के हित में आहुति देता है।
भोजन करना सीखने से लेकर दुनिया के बड़े से बड़े अविष्कार में भी किसी गुरु की प्रत्यक्ष या पर्दे के पीछे की भूमिका अवश्य होती है।
हमारी माता से लेकर हर एक व्यक्ति जो हमारे काम आता है वह हमारा गुरु होता है
शिक्षक शब्द जिसे अंग्रेजी में टीचर (TEACHER)  कहा जाता है का मेरे अनुसार शाब्दिक अर्थ कुछ इस प्रकार है-
1.  T-Trainer( प्रशिक्षक)
2.  E-Encouraging( प्रोत्साहक)
3.  A-Architect( शिल्पकार या निर्माता जो देश के भावी।       कर्णधारों को शिक्षा देकर एक सभ्य इंसान बनाता है)
4.  C-Creator( सृजनकर्ता जो विद्यार्थियों के माध्यम से           देश को कुछ नया सृजित करके देता है)
5.  H- Helper( सहायक )
6.  E-Evaluator( मूल्यांकनकर्ता)
7.  R-Resistor( प्रतिरोधक जो विद्यार्थी को अनुचित काम      करने से रोकता है
अध्यापक के पास नौसिखिया बालक के रूप में गिली मिट्टी होती है जिससे वह दीपक बना सकता है जो सभी को प्रकाशमान करें या फिर कुल्हड़ जिसे दाह संस्कार के समय अवधि के साथ ले जाया जाता है।
अध्यापक अधिगम की रीड की हड्डी होता है। अध्यापक अधिगम की प्रक्रिया को कई प्रकार से नई चाल दे सकता है। अधिगम को रुचिपूर्ण बनाने में अध्यापक महती भूमिका होती है। अध्यापक अधिगम को रुचि पूर्ण बनाने में कुछ इस प्रकार के कार्य कर सकता है-
1- अपने विषय की प्रश्नोत्तरी का आयोजन करवाना।
2- विद्यार्थियों के सत्रीय कार्य को प्रदर्शनी के रूप में करवाना।
3- पढ़ाते समय विभिन्न चलचित्रों से संबंधित तथा अन्य जीवंत उदाहरणों का सहारा लेकर अधिगम का करवाना।
4- सभी विद्यार्थियों को समान प्यार देना ।
5- प्रत्येक विद्यार्थी से संबंध रखना तथा उसकी समस्याओं को जानना।

इस प्रकार गुरु संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया की नौका को चलाने वाला नाविक होता है और दुनिया का नायक होता है शिक्षा की गाथाओं का गायक होता है,
परोपकार की मूरत होता है और प्रेम और दया की सूरत  होता है

मेरे सभी गुरुजनों के चरणों में मेरा शत् शत् नमन।

धन्यवाद ब्लॉगर परिवार
         
                         जय हिंद जय भारत

Saturday, 2 February 2019

अधिकारों और कर्तव्यों का महत्व (The importance of rights and responsibilities),#rights,#responsibilities

 नमस्कार ब्लॉगर परिवार
आज भारत में बेटी बचाने के लिए ,बेटी पढ़ाने के लिए, बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलवाने के लिए ,अपने घरों को साफ रखने के लिए, गंगा सफाई के लिए ,वन न काटने के लिए ,कन्या भ्रूण हत्या न करने के लिए ,बलात्कार, रेप, दुष्कर्म आदि न करने के लिए, सांप्रदायिक एकता के लिए ,देश को अलग-अलग भागों में बांटने के लिए राजनीति में भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए, रिश्वत ना लेने के लिए ,उपभोक्ताओं को  जागरूक करने के लिए तथा इसी के समान अन्य सैकड़ों काम करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को या राष्ट्रपति को या अन्य किसी राज्य प्रमुख को संसद, विधानसभा या राष्ट्रपति भवन से खड़े होकर अभियान चलाने पड़ते हैं।
 जब हमारा संविधान अस्तित्व में आया तो हमें उसने कर्तव्य और अधिकार दोनों का पाठ पढ़ाया । लेकिन हमारी स्मृति इतनी कम है कि हम अधिकारों की तो पुरजोर मांग करते रहे और हमें हमारे कर्तव्य ध्यान ही नहीं रहे।
 एक समय था जब भारतीय नवयुवक और भारतीय समाज की दुनिया भर में तूती बोलती थी और हमारी संस्कृति तथा परंपराएं तो शुरुआत से ही दुनिया को सिखाने वाली रही हैं। लेकिन आज तो हम हर कार्य में अपने कर्तव्य का परिचय देने में नौसिखिया प्रतीत होते हैं। ऐसा लगता है मानो कि हम कठपुतली हों या गारे मिट्टी से बने कोई कंकाल हो।
हमारे से अच्छे तो बेजुबान पशु ही हैं जो भले ही प्रकृति को कुछ अधिक सकारात्मक नहीं दे पाते हो लेकिन वे प्रकृति को नुकसान तो नहीं पहुंचाते। फिर हम ऐसे कुकृत्य करके शायद अपने आप को और मनुष्य की विवेकशीलता की  प्रवृत्ति को लज्जित करते हैं ।आखिर फिर क्यों मानव को प्रकृति का सिरमौर माना जाता है? इससे तो पेड़ पौधे और समुद्र तालाब ही सही जो बेजुबान व विवेकहीन होते हुए भी दुनिया की सेवा करते हैं तथा अपनी परोपकारी प्रवृत्ति का परिचय देते हैं। फिर मनुष्य में भला क्या खाक का विवेक है ?क्या एक माता का कर्तव्य नहीं है कि जिस बेटी को उसने अपने पुत्र के समान 9 महीने तक अपने गर्भ में रखकर पाला पोसा उसे वह जीने का अधिकार  दे ? लेकिन आज के भारतीय समाज के लिए कन्या भ्रूण हत्या जैसे वीभत्स कृत्य को स्पष्ट करने के लिए निम्नांकित पंक्तियां ही काफी है
   पापा तेरी प्यारी में हो ना सकी, तेरी गोद में मैं सो ना सकी
   मांँ ऐसी थी क्या मजबूरी जो मैं जन्म लेना सकी
हे विवेकशील प्राणी मनुष्य! जरा अपने  विवेक का प्रयोग कर करके कम से कम यह तो विचार कर लेता कि जिस कन्या ने अभी  संसार सागर में प्रवेश तक नहीं किया उसको जन्म लेने से पहले मारने से भयंकर अपराध इस दुनिया में क्या हो सकता है।
इसके बाद बेटियों को सिर्फ पराया धन समझकर ही पढ़ाई कराई जाती है। हालांकि शहरी इलाकों में अब इस रूढ़िवादिता में सुधार देखा गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी ढाक के वहीं तीन पात है अर्थात वहां अभी भी परिस्थितियां स्थिर बनी हुई हैं।
क्या एक सभ्य समाज का कर्तव्य नहीं है की वह एक बच्चे को शिक्षा दिलवाए? क्या 21 वीं सदी को विज्ञान का युग बताने वालों में इतनी भी समझ नहीं है कि पेड़ पौधे ऑक्सीजन छोड़ते हैं जो कि हमारी प्राणवायु है? यदि इतनी समझ होती तो भारत में वनों का क्षेत्रफल  आज चिंता का सबब नहीं होता।
क्या मनुष्य अपनी तर्कशीलता का इतना सा उपयोग नहीं कर सकता कि गंगा जैसी अनेकों नदियां जिनमें दूध से उज्जवल जल बहता था उन्हें प्रदूषित करके अपनी दूषित मानसिकता का परिचय ना दिया जाए?
क्या हमारे समाज का अंतिम सत्य सिर्फ यौनसंबंध बनाना  ही रह गया है जो लोग  बेटियों ,बहिनों के सामान लड़कियों को जिनके अभी दूध के दांत तक नहीं गिरे हैं उनके साथ दुष्कर्म करके हमारे समाज और हमारी मानसिकता,  परिवार, देश को लज्जित करते हैं?
क्या अपने आप को सबसे शिक्षित व सर्वोपरि बताने वाले मानव में इतनी भी समझ नहीं है कि स्वच्छता जीवन का एक अनिवार्य घटक है?
फूट डालो राज करो की जिस कूटनीति के कारण अंग्रेजों ने 200 साल तक इस देश पर राज किया तथा अनेकों नौजवानों का खून पीकर वे यहां से गए उसी को अपना कर आज कि राजनीति देश में फूट डालकर अपनी किस विवेक शीलता का परिचय देना चाहते हैं?तथा हम जो सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं वे हिंदू ,मुस्लिम , सिख, ईसाई आदि शब्दों को समाज में भेदभाव करने के लिए प्रयुक्त करके हमारी किस आदर्शवादी ता का परिचय देना चाहते हैं?
क्या इस देश का भविष्य इसी में सिमट कर रह जाएगा कि जो भी प्रधानमंत्री आए वह दिल्ली से हर साल नए-नए अभियान चलाएं तथा इन अभियानों के नाम पर काफ़ी सारा पैसा खर्च किया जाए?
दरअसल लगता है की आज के इन पढ़े लिखे भारतीयों की तुलना में विगत सदियों के अशिक्षित ,निरक्षर भारतीय लाखों गुना श्रेष्ठ थे तथा जीवन मूल्यों तथा  परोपकार की भाषा को वे शायद ज्यादा बेहतर समझते थे।
उनकी रगों में शायद देश प्रेम का रक्त बहता था बेटियों को यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तथा रमंते देवता की भावना से वे आदर और सम्मान देते थे।
दरअसल जब तक हम कर्तव्य ना करेंगे तथा अधिकारों की मांग करते रहेंगे तब तक इस देश की नौका संकट में ही नजर आती है ।क्योंकि एक व्यक्ति का कर्तव्य ही दूसरे का अधिकार बनता है जैसे एक बच्चे को शिक्षा का अधिकार होना चाहिए यह समाज द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए तो उस बच्चे को शिक्षा दिलवाना समाज तथा उसके माता पिता का कर्तव्य है जो उसका अधिकार बना।
हमें देशप्रेम, सांप्रदायिक एकता ,भ्रष्टाचार से दूर पारदर्शी प्रशासन ,बेटी बेटे के प्रति समान दृष्टिकोण रखकर आगे बढ़ना होगा। अन्यथा हम वैमनस्यता के इस जंजाल में उलझ कर अपने पांव पर कुल्हाड़ी खुद मार रहे हैं यह घाव आज तो फिर भी शांत नजर आते हैं लेकिन जब दूसरे लोगों को यह पता चलेगा तो शायद वे इन पर आक्रमण रूपी नमक मिर्च छिड़ककर हमारी वेदना को तीव्र कर देंगे।
आज भी समय है प्रेरणा लेने का, आज भी समय है जगने का आज भी समय है, इन बुराइयों को हमारे समाज से भगाने  का ,आज भी समय है सुधार करने का।
  स्वामी विवेकानंद सदृश अनेकों महापुरुषों के वंशजों
    आप उठो जागो और शेर बनो।

ब्लॉगर की दुनिया का धन्यवाद
जय हिंद जय भारत

प्लास्टिक वेस्ट: जागरूकता की जरूरत

आज मैं जिस विषय पर चर्चा करने जा रहा हूँ, वह अत्यधिक चिंतनीय है। हम सभी को इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। यह समस्या है- प्लास्टिक वेस्ट या कृत्रिम अपशिष्ट। जैसा कि हम सभी जानते हैं यह समस्या वर्तमान में अत्यंत ज्वलंत रूप धारण कर चुकी है‌। अतः इस समस्या का सही रूप से संबोधन वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता है। हम सभी को इस समस्या के कोई विशेष परिचय की आवश्यकता नहीं है, यह तो हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी बात है।
हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा दिनों दिन बढ़ती जा रही है। हम जानते हैं कि वर्तमान में आम प्रचलन में प्रयुक्त प्लास्टिक अनिम्नीकरणीय अर्थात नोन डिग्रेडेबल है। इसी सामान्य कचरे की तरह नहीं फेंका जाना चाहिए और ना ही जलाया जाना चाहिए, जबकि हम ऐसा ही करते हैं। चूँकि प्लास्टिक में विषैले प्रदूषक विद्यमान होते हैं, अतः इसके मृदा से सतत् संपर्क में रहने पर वहाँ उग रहे पेड़ पौधों की वृद्धि नकारात्मक रूप में प्रभावित होती है। जल में फेंक दिए जाने पर जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। साथ ही यदि जलाया जाए तो वायु प्रदूषण होता है। एक नए शोध के मुताबिक महासागरीय प्रदूषण के 90% के लिए अनिम्नीकरणीय प्लास्टिक जिम्मेदार है।
इतनी गंभीर समस्या होने के बावजूद भी हम इस समस्या के प्रति उदासीन रहते हैं, हम पर्यावरण को अपने से अलग करके देखते हैं, यही कारण है कि हमारे पर्यावरण और जिसके कारण अंततः हमें होने वाली क्षति के लिए मैं हमारे मनोवैज्ञानिक प्रदूषण को जिम्मेदार मानता हूं। हम सभी की सोच इतनी संकुचित हो चुकी है कि हमें कोई प्रभाव नहीं पड़ता, हम अपने स्तर पर प्रयास करना तो दूर की बात, इसके विपरीत पर्यावरण प्रदूषण में सहभागी बनते हैं। हम अक्सर यह सोचते हैं कि "अकेले मेरे बदलने से क्या बदलेगा" यदि यही सोच उन क्रांतिकारियों की होती, जिन्होंने  हमें कड़े संघर्ष के बाद आजादी दिलाई तो शायद हम आजादी को आज इस रूप में ना जी रहे होते, और ना ही स्वाभिमान की भावना से भरे होते और हमारी जिंदगियाँ उन संघर्षों का सामना कर रही होती, जिनका प्रत्यक्षीकरण संभव नहीं है।
हमें अपनी मानसिकता को व्यापकीकृत करने की जरूरत है। हमें अपनी सोच के संकुचित दायरों का विस्तार प्रारंभ करने की जरूरत है। हमें जरूरत है कि हम अपनी सोच उन क्रांतिकारियों की तरह व्यापक करें जिन्होंने हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तनों के लिए अपनी जान की बाजियाँ लगा दीं।
मैं समझता हूँ कि एकदम से हम सभी प्रकार के प्लास्टिक का पूर्णरूपेण त्याग नहीं कर सकते, परंतु शायद हम इतना तो कर ही सकते हैं कि आज से घर में पॉलिथीन में सामान ना लायें। हमारा यह एक कदम एक कदम शुरुआत हो सकता है यदि और केवल यदि हम चाहे तो, उस सकारात्मक बदलाव का जो हमें निश्चित रूप से जीना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि हम इस क्षेत्र में अनुसंधान अपने स्तर पर करें अथवा हो रहे शोधों पर पैनी नजर बना कर शीघ्रातिशीघ्र बदलाव अपने आसपास के क्षेत्र में लाने का प्रयास करें, तो शायद हम अपने सपनों का जीवन जी पायें।

Monday, 28 January 2019

नेपोलियन के बुलंद होसलों की कहानी- A MOTIVATIONAL STORY



नेपोलियन अक्सर जोखिम (risky) भरे काम किया करते थे। एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढे। सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करने असंभव था। उसकी सेना मे अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। फिर भी उसने अपनी सेना को चढ़ाई का आदेश दिया। पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोले की क्यो मरना चाहते हो। यहा जितने भी लोग आये है वो मुह की खाकर यही रहे गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापिस चले जाओ। उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हो गया और झट से हीरो का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मै जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना।
उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए। ‘ जो करने या मरने ‘ और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।
आज सचिन तेंदुलकर (sachin tendulkar) को इसलिए क्रिकेट (cricket) का भगवान कहा जाता है क्योकि उन्होने जरूरत के समय ही अपना शानदार खेल दिखाया और भारतीय टीम को मुसीबतों से उभारा। ऐसा नहीं है कि यह मुसीबते हम जैसे लोगो के सामने ही आती है, भगवान राम के सामने भी मुसीबते आयी है। विवाह के बाद, वनवास की मुसीबत। उन्होने सभी मुसीबतों का सामना आदर्श तरीके से किया। तभी वो मर्यादा पुरषोतम कहलाये जाते है। मुसीबते ही हमें आदर्श बनाती है।

अंत मे एक बात हमेशा याद रखिये;
जिंदगी में मुसीबते चाय के कप में जमी मलाई की तरह है,
और कामयाब वो लोग हैं जिन्हे फूँक मार के मलाई को साइड कर चाय पीना आता है।
         जय हिंद, भारत माता की जय

Saturday, 26 January 2019

आंतरिक मूल्यांकन और बाह्य मूल्यांकन का तुलनात्मक परिचय

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
Special request:-
कृपया हमारे ब्लॉग पर रोजाना प्रकाशित हो रही अन्य रचनाओं को भी पढें,मैं आपका आभारी हूँ।

आंतरिक मूल्यांकन
1- इसमें मूल्यांकनकर्ता शिक्षण प्रक्रिया से संबंधित व्यक्ति ही होता है।
2- यह अपेक्षाकृत सस्ती प्रक्रिया है।
3- यह छात्र की वास्तविकता से परिचय करवाता है अर्थात् इसकी वैधता अधिक होती है यह संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया से वास्तविक रूप में जुड़ा रहता है।
4- यह छात्रों के पूरे शैक्षिक सत्र में उपस्थिति, उसका निष्पादन ,आचरण, पाठ्यक्रम संबंधी क्रियाकलाप ,रुचि तथा लग्न आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है।
5- इसमें पक्षपात व व्यक्तिगत पहचान का भाव निहित होता है।
6- यह वस्तुनिष्ठ की बजाय व्यक्तिनिष्ठ अधिक होता है।
7- यह सतत् तथा व्यापक होता है।
8- यह पूर्व निर्धारित समय सारणी के बिना भी आयोजित किया जा सकता है।

बाह्य मूल्यांकन
1- इस में मूल्यांकनकर्ता   बाहरी व्यक्ति होता है जो शिक्षण प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं होता है।
2- यह अपेक्षाकृत खर्चीली प्रक्रिया है।
3- यह छात्र की वास्तविकता से अपेक्षाकृत कम संबंध रखता है क्योंकि यह एक निश्चित समय अवधि में लिए गए परीक्षण से संबंधित होता है । संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया से इसका संबंध कमजोर जान पड़ता है।
4- यह  निश्चित समय अवधि में कुछेक प्रश्न पत्रों के माध्यम से ली गई परीक्षाओं के द्वारा छात्रों का आकलन करता है।
5- इसमें पक्षपात व व्यक्तिगत पहचान की अपेक्षाकृत  क्षीण संभावना पाई जाती है।
6- इसमें अपेक्षाकृत अधिक वस्तुनिष्ठता निहित होती है।
7- इसमें सतत् व व्यापक होने के गुण का अभाव पाया जाता है।
8- यह पूर्व निर्धारित समय सारणी के अनुसार ही आयोजित किया जाता है।

Friday, 25 January 2019

आधुनिक युग में भारत की प्रमुख चुनौतियां (The challenges for India in modern age)

नमस्कार ब्लागर परिवार

सांप्रदायिकता की आग में वतन यह जल रहा है
भ्रष्टाचार का अंधेरा हाथ यह मल रहा है।
कोई हिंदू की कहता हैं ,कोई मुस्लिम की गाता हैं
सांप्रदायिकता का यह चक्रव्यूह मुझे नहीं भाता है।
कोई सवर्ण कह रहा है, कोई दलित की अलाप रहा हैं
ऊंच-नीच का यह हो कैसा प्रलाप रहा है।
अधिकारियों को लोग चाँदी के जूते मार रहे हैं
माँ भारती पर ये हो कैसे प्रहार रहे हैं।
राजा हो या रंक सबके ध्येय में पैसा है
भाई भाई को मार रहा है यह प्रलोभन कैसा है?
बच्चों को झोंक दिया कारखानों में
काला रंग भर दिया उनके अरमानों में।
मां भारती के प्रति अब वो प्यार नहीं रहा
या यूं कहो कि देश प्रेम का अब वो त्योहार नहीं रहा।
जनसंख्या की वृद्धि में मानों प्रकाश की चाल है
आज माँ भारती के प्रांगण का हाल बेहाल है।
धर्मसंकट का युग आज आ गया है
लगता है फिर से दुर्योधन राज आ गया है।
राजनेता देश की प्रतिष्ठा से जुआ खेल रहे हैं
गरीब बेचारे पापड़ बेल रहे हैं।
राम जैसे  राजा नहीं रहे, हनुमान जैसे कर्मचारी नहीं रहे
राजा विक्रम जैसे  न्यायाधीश  नहीं रहे, भीष्म जैसे ब्रह्मचारी नहीं रहे।
सैनिक बेचारे कश्मीर में ठिठुर रहे हैं
लेकिन हम भारतीय तो आपस में ही लड़कर मर रहे हैं।
फूट डालकर राज करने वाली आज की राजनीति है
यह सब पंक्तियां माँ भारती की आपबीती है।



यह मेरी मौलिक रचना हैं।
धन्यवाद
भवदीय
राजेन्द्र

Monday, 21 January 2019

Mock UNO, शिक्षा के क्षेत्र में एक नया प्रयोग, परिष्कार

नमस्कार ब्लागर परिवार
स्थान-परिष्कार कॉलेज आफ ग्लोबल एक्सीलेंस                   जयपुर,राजस्थान(भारत)
तिथि-21जनवरी 2019
कार्यक्रम का नाम-Mock UNO का आयोजन
आज परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस जयपुर में मॉक यूएनओ का आयोजन किया गया ।यह आयोजन राजनीतिक विज्ञान विभाग परिष्कार कॉलेज की ओर से किया गया। इसमें बी ए प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष के राजनीतिक विज्ञान के छात्रों ने तथा एकीकृत B.Ed प्रथम वर्ष के छात्रों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को यूएनओ की कार्यशैली से परिचित करवाना था। इस कार्यक्रम की में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ राजेश शर्मा जी (राजस्थान विश्वविद्यालय) ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।इस स्वर्णिम कार्यक्रम के अवसर पर परिष्कार कॉलेज के निदेशक डॉ राघव प्रकाश जी ने विद्यार्थियों से अपील की कि वह अपने आप को किसी गांव राज्य या भारत का नागरिक न मानकर अपने अंदर विश्व नागरिकता का विकास करें ।क्योंकि प्राचीन भारतीय संस्कृति का  वक्तव्य है "वसुधैव कुटुंबकम"  अर्था थे संपूर्ण पृथ्वी ही हमारा परिवार है ।उसमें न केवल मानव अपितु संपूर्ण प्राणी जीवन और वनस्पति जगत शामिल है ।इस कार्यक्रम में परिष्कार कॉलेज के छात्रों ने  लगभग 60 विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करके वर्तमान में अपना कहर बरपा रही निम्न  पर्यावरणीय समस्याओं पर चर्चा की-
1- मरुस्थलीकरण
2- हरित गृह प्रभाव
3- संकटग्रस्त प्रजातियाँ
4- शस्त्रीकरण
5- समुद्री जल प्रदूषण
6-  वनों की कटाई
7- ओजोन क्षय
8- जैव विविधता
9- अम्लीय वर्षा
10- ग्लेशियरों का पिघलना
11- पेयजल समस्या
12- वैश्विक उष्णन
13- कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग

 इन समस्याओं पर विद्यार्थियों द्वारा वैश्विक दृष्टिकोण से चर्चा की गई ।तथा मैंने इस चर्चा के माध्यम से इन समस्याओं के निदान के बारे में जो कुछ निष्कर्ष निकाला वह निम्न प्रकार है-

पर्यावरणीय समस्याएं एक वैश्विक मुद्दा है जिनके लिए न केवल एक विशिष्ट राष्ट्र या समाज का विशिष्ट तबका जिम्मेवार है अपितु इनके लिए संपूर्ण मानवीय समुदाय जिम्मेवार है ।पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान विभिन्न राष्ट्रों द्वारा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप द्वारा कदापि संभव नहीं हो सकता । इसके लिए सभी को अपनी भूमिका का कर्तव्यनिष्ठता
 पूर्वक  निर्वहन करना होगा पर्यावरणीय समस्याओं का शीघ्र अतिशीघ्र समाधान निकालना अत्यावश्यक है। अन्यथा मानवता काल के गाल में समा सकती है। हमको पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए एकीकृत मिशन भाव से काम करना होगा क्योंकि कभी भी अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है ।लेकिन एक व्यक्ति जो दूसरों से करवाना चाहता है उसकी शुरुआत वह खुद करें यह कहीं अधिक उपयुक्त वक्तव्य हैं।इनके समाधान के लिए विश्वस्तरीय  कार्यक्रम चलाए जावे तथा समूचा विश्व पृथ्वी को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हो



एक विद्यार्थी के रूप में इस कार्यक्रम में भाग लेकर मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूं ऐसे कार्यक्रम विश्वविद्यालय स्तर पर व्यापक रूप से चलाए जाने चाहिए इससे शिक्षा का सार्वभौमीकरण होता है तथा विद्यार्थी किताबी ज्ञान को अपनी वास्तविक जिंदगी से जोड़ पाने में संभव होते हैं वास्तव में यह परिष्कार कॉलेज का सराहनीय प्रयास है

धन्यवाद
भवदीय
राजेन्द्र




Sunday, 20 January 2019

कभी तो सोच के देखो। Motivational Story

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एक व्यक्ति का घर शहर से दूर एक छोटे से गाँव में था। उसके घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। लेकिन फिर भी वो खुश नहीं रहता था। उसे लगता था की शहर की जिंदगी अच्छी है। इसलिए एक दिन उसने गाँव के घर को बेचकर शहर में घर लेने का फैसला किया। अगले ही दिन उसने शहर से अपने दोस्तों को बुलाया। जो रियल स्टेट में काम करता था।


उसने अपने दोस्त  से कहा – तुम मेरा ये गाँव का घर बिकवा दो, और मुझे शहर में एक अच्छा सा घर दिलवा दो। उसके दोस्त ने घर को देखा और कहा – तुम्हारा घर इतना सुन्दर है। तुम इसे क्यों बेचना चाहते हो। अगर तुम्हे पैसों की जरुरत है तो मैं तुम्हे कुछ पैसे से सकता हूँ। उस व्यक्ति ने कहा – नहीं नहीं मुझे पैसों की जरुरत नहीं है।
मैं इस घर को इसलिए बेचना चाहता हूँ। क्योकि ये घर गाँव से बहुत दूर है। यहां पर शहर की तरह पक्की सड़के भी नहीं है। यहाँ के रास्ते बहुत ही ऊबड़ खाबड़ है। यहाँ पर बहुत सारे पेड़ पौधे है। जब हवा चलती है तो पुरे घर में पत्ते फैल जाते है। ये गाँव पहाड़ो से घिरा हुआ है। अब तुम ही बताओ मैं शहर क्यों न जाऊ।
उसके दोस्त ने कहा – ठीक है। अगर तूने शहर जाने का सोच ही लिया है। तो में जल्दी ही तुम्हारे इस घर को बिकवा दूँगा। अगले ही दिन सुबह के समय वह व्यक्ति अखबार पढ़ रहा था। उसने अखबार में एक घर का विज्ञापन देखा। विज्ञापन में लिखा था।
शहर की भीड़ भाड़ से दूर, पहाड़ियों से घिरा हुआ, हरियाली से भरा हुआ, ताजी हवा युक्त एक सूंदर घर में बसाये अपने सपनो का घर। घर खरीदने के लिए निचे दिए गए नंबर पर संपर्क करे। उस व्यक्ति को विज्ञापन देखते ही घर पसंद आ गया। उसने उस घर को खरीदने का मन बनाया।
उसने जब उस नंबर पर फोन किया तो वो हैरान रह गया। क्योकि ये विज्ञापन उसी के घर का था। यह जानकार वह ख़ुशी से झूम उठा। उसने अपने दोस्त को फोन लगाया और कहा – मैं तो पहले से ही अपने पसंद के घर में रह रहा हूँ। इसलिए तुम मेरा घर किसी को मत बेचना। में यही रहुँगा

Moral--- दोस्तों इस Motivational Story से मैं आपको ये समझाना चाहता हूँ। की अधिकतर लोगों को अपने जीवन से शिकायत होती है। वे सोचते है की उनके जीवन में दुःख ही दुःख भरे पड़े है। ऐसे लोगों को दूसरे लोगों की जिंदगी बहुत ही अच्छी लगती है। लेकिन आप ऐसा कभी भी मत करना। कुछ भी करने से पहले एक बार अपनी जिंदगी को दोस्तो की नजरों से जरूर देखना। अगर आपने कभी भी अपनी जिंदगी को दूसरों की नजरों से देखा तो आप पाएंगे की आपकी जिंदगी दूसरों से बहुत ही अच्छी है। (कभी तो सोच के देखो। 

मैं आपका अपना अनिल बैनीवाल साँचोर

Friday, 18 January 2019

Motivational Quotes

हर छोटा बदलाव बड़ी कामयाबी का हिस्सा होता है।

बेरोजगारों की भीड़ वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली समस्याएं और कमियां

 नमस्कार 
   Blogger की दुनिया का अभिनंदन करता हूँ।

21वीं सदी में भले ही हम अपनी वैज्ञानिक प्रगति का हवाला देकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हों लेकिन आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली हमारे इस द्वम्भ प्रदर्शन की झूठी शान पर प्रश्न चिह्न लगाती है ।
आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली शिक्षित बेरोजगार तैयार कर रही है। नैतिक शिक्षा की शिक्षा का तो माना आज की भारतीय  शिक्षा से नाता ही नहीं है।आज देश में ऊँचे पदों पर आसीन अफसर भी रिश्वत प्रेमी बन चुके हैं।यह दर्शाता है कि शिक्षा प्रणाली की जड़ें अवश्य ही असुरक्षित हैं। तभी तो आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली का यह वृक्ष प्रतिस्पर्धा की आँधी  को झेलने में असमर्थ है।
आज के विद्यार्थी विषयवस्तु की केवल सैद्धांतिक समझ ही रखते हैं बाकी प्रायोगिक परीक्षाओं से उनका नाता अपेक्षाकृत कमजोर जान पड़ता है।
आज की शिक्षा प्रणाली प्रमाण पत्र प्राप्त करने का साधन मात्र बनकर रह गई है। आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली का गंतव्य सरकारी नौकरी प्राप्त करने का साधन मात्र बनकर रह गया है। आज भारत के शिक्षित युवक भी बेरोजगारों की भेड़चाल में शामिल होकर खाक छानते फिरते हैं।
वे अपराधियों की पंक्ति में खड़े होकर एक दूसरे की टाँग खींचते हैं।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की कमियाँ
1-भारत में शिक्षा विभाग तो हैं लेकिन वे सिर्फ परीक्षाओं के आयोजन पर ही ध्यान देते हैं। समय समय पर शिक्षा का विश्लेषण नहीं किया जाता है।

2-जब पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है तो इसमें कुछ चुनिंदा लोग ही शामिल होते हैं। यहाँ तक कि देशभर में शिक्षा के संवाहकों का काम करने वाले शिक्षकों को भी पाठ्यक्रम निर्माण में शामिल मुश्किल से ही किया जाता है।

3-हमारा पाठ्यक्रम शिक्षा के सैद्धांतिक पक्ष पर प्रायोगिक पक्ष की अपेक्षा अधिक प्रकाश डालता है।

4-हमारे अधिकांश शिक्षक विशेषतः राजकीय शिक्षण संस्थानों के शिक्षक अपनी भूमिका का निर्वहन कर्तव्यनिष्ठता पूर्वक नहीं करते।

5-शिक्षा को व्यावसायिक रूप दे दिया गया है।

    Blogger की दुनिया का धन्यवाद
     
     जय हिन्द जय भारत

Thursday, 17 January 2019

कुंभ मेला


कुंभ मेला भारत में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा मेला है और इसका अपना ही धार्मिक महत्व है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लोग इस मेले में शामिल होते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है. कुंभ मेले का आयोजन 4 तीर्थ स्थलों में होता है. ये स्थान हैं: उत्तराखंड में गंगा नदी पर हरिद्वार, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी पर उज्जैन, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी पर नासिक और उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज ।
कुंभ मेला दो शब्दों कुंभ और मेला से बना है. कुंभ नाम अमृत के अमर पात्र या कलश से लिया गया है जिसे देवता और राक्षसों ने प्राचीन वैदिक शास्त्रों में वर्णित पुराणों के रूप में वर्णित किया था. मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सभा' या 'मिलना'.
कुंभ मेलों के प्रकार
महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है.
पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता है.
अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है यानी हरिद्वार और प्रयागराज.

चार शहरों में से प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन, प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला सबसे पुराना है ।


Law of attraction vs Law of karma:- The secret

नमस्कार,
आजकल जब भी आप किसी भी व्यक्ति से law of attraction या फिर The secret book के बारे में सुनते या यह सुनते हैं कि इसके द्वारा आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं तो आपके जहन में कई प्रश्न आते होंगे जैसे कि -
क्या इसके द्वारा हम सच में जो चाहते है बो प्राप्त कर सकते है ।
और यदि यह सत्य है , कार्य करता है तो इसे किस प्रकार से उपयोग में ले।
या फिर आखिर ये law of attraction है क्या ।
तो आज का ब्लॉग आपके लिए ही है।
तो चलिए शुरू करते हैं।
What is the law of attraction :-
Rhonda Byrne नामक लेखक अपनी पुस्तक The secret में एक ऐसे रहस्य के बारे में दावा करते है जिसके द्वारा हम जो चाहते हैं वो प्राप्त कर सकते है बस इसके लिए हमें 3 चरणों का अनुसरण करना पड़ेगा ।
1 - Ask :- माँगो तुम जो प्राप्त करना चाहते हो कुदरत तुम्हे सब देगी।
2 - Belive :- विश्वास रखो जो तुमने माँगा है बो तुम्हें मिल ही जाएगा और उसके बारे में सोचते रहो की जैसे तुम्हे बो मिल ही गया है।
उदहारण के लिए तुम्हे ख़ुद का एक घर चाहिए । तो यह सोचते रहो की तुम्हे घर मिल गया है ओर तुमने उसमे रहना भी चालू कर दिया है।
law of attraction को मानने वाले विद्वानों का मानना है कि हमारे मस्तिष्क से सकारात्मक किरणे (positive Waves) निकलती रहतीं हैं और बैसी ही चीज़ों को आकर्षित करती हैं।
3 - Achieve:-  और जब आप इन दोंनो चरणों को पूरा कर लेंगे तो बो चीज़ तुम्हे मिल ही जाएगी।
■◆●●◆■
अब सबसे बड़ा सवाल आता है कि क्या यह सच में काम करता है।
यदि हम इसके कार्य करने या ना करने के बारे में बात करे तो हम एक असमंजस की स्थिती में आ खड़े होते हैं।
मेरे इस लॉ के बारे में कुछ व्यक्तिगत उदाहरणों के बारे बताऊ तो एक उदाहरण में आपके सामने रखता हूँ।
:- जब में 12वीं कक्षा में था तब हमारे हिंदी  के शिक्षक की दहशत पूरे विद्यालय में थी एक दिन की बात है उन्होंने हामिद का चिमटा नामक एक पाठ पूरा पढ़ा दिया और बोला की यदि किसी के कुछ समझ नही आया हो तो बता दो। तो पता नही मेरे एक दोस्त निखिल के मस्तिष्क ने ना जाने कौनसी positive Waves पकड़ी और हाथ ऊपर करके पूछा की sir ये हामिद कौन है।इसको सुनते ही sir ने बेचारे निखिल की जो क्लास ली बो उसके लिए नाकाबिले बर्दाश्त थी। और उसके मन में एक विचार आया कि sir अपनी कुर्शी से गिर जाए और उनकी टांग टूट जाये और बस वह पूरे दिन इसके बारे में  सोच सोच कर मन ही मन हंसता रहता यदि इस समय बात करे तो बो law of attraction को पूरी तरह से उपयोग में ले रहा था और एक दिन ऐसा आया कि खिड़की की तरफ से जोर से हवा चलना शुरू हो गयी सारे पेड़ जोर जोर से हिलने लग गए पर sir की कुर्शी थोड़ी सी भी नहीं हिली ।
अब निखिल ने सोचा कि ये कौनसी शक्ति है जो मेरी law of attraction की शक्ति से बड़ी है और उसने यह पूरी बात मुझे बताई तो हम सोचने लगे कि कौनसी शक्ति है ये और सोचते सोचते पता चला कि यह नारीशक्ति है अर्थात यह sir की wife की law of attraction की बो शक्ति है जो बो सालो से करवा चौथ के रूप में उपयोग में ले रही है।
तो हमने फिर सोचा की ये बस निखिल और मेरे law of attraction के बल पर नहीं होगा इसके लिए ज्यादा लोगो की जरूरत होगी और हमने इसमे और जो निखिल जैसे विचार रखते थे सबको लिया और श्रीमद्भागवत गीता में लिखे law of karma कर्म करो फल की चिंता मत करो को भी साथ में लिया और sir की कुर्शी की एक टांग तोड़ दी और उसे इस प्रकार रख दिया की बो टूटी हुई ना लगे और sir के आने का इंतजार करने लग गए और जैसे ही sir बैठने वाले थे उस्से पहले ही कुर्शी गिर गई और फिर sir ने निखिल और हम सबकी जो हालात की बो ........छोड़ो पुराने जख्मो को क्यों कुरेदें 
■उस दिन हमें सीख मिली की मंशा ठीक ना हो तो  कोई लॉ कार्य नही करता ।
◆◆यदि हम एक छोटे से उदाहरण को ओर ले कि यदि किसी भी बच्चे को कोई खिलौना चाहिए और उसके पिताजी उसके लिए मना करदे ओर बो बस इसके बारे मे ही सोचता रहे तो क्या उस्से बो खिलौना मिल जाएगा या वो अपनी पढ़ाई में भी मन नही लगा पाएगा ओर इसी बात की चिंता में रहेगा कि बो खिलौना  मिल जाये।
Law of karma vs law of attraction:-
यदि लॉ ऑफ कर्मा और लॉ ऑफ अट्रेक्शन दोनो मैं तुलना करें तो दोनों एक दूसरे के विपरीत है यदि हम लॉ ऑफ कर्मा की बात करे तो श्री कृष्ण ने कहा है कि :-
कर्म करो और फल की चिंता मत करो।
और लॉ ऑफ अट्रेक्शन कहता है कि:-
फल की चिंता करो और उसकी ही कल्पना में खोये रहो।
■अब बात करे तो की इन दोनों में से कौनसा लॉ कार्य करता है तो मेरे विचार में ये दोनों ही अपूर्ण हैं।
◆क्योंकि जिन परिस्तिथियों में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कर्म की बात कही उस समय बस कर्म प्रधान था क्योंकि बो कुरुक्षेत्र में अपने की स्वजनों से द्वंद करने जा रहे थे परंतु आज के प्रतियोगी युग मैं फल की चिंता ना करना मूर्खता होगी क्योंकि जब तक फल के बारे में नही चिंता करेंगे तब तक कैसे पता  चलेगा की हम जो कार्य कर रहे है बो सही दिशा में कर रहे है या इसमे सुधार की जरूरत है।
◆और लॉ ऑफ अट्रेक्शन की बात कर तो यह सिर्फ फल के निरर्थक सपनो मैं रहने की बात करता है यदि इसको उपयोग में लेके सफल भी होते है तो ये हमारी महत्वाकांक्षाओं को इतना बढ़ा देगा कि हमने जो प्राप्त उसके छीनने का डर और जो नही है उसके प्राप्त करने की चिंता में लाके फसा देगा।
यदि आप सच में सफलता चाहते हो तो वही करो जो आपका दिल चाहता है और उसे प्राप्त करने के लिये अपना शत प्रतिशत देदो ।
धन्यवाद ☺️
Anandit भव:

हिंदू मुस्लिम

अजीब महलूक है यारों,
जिसे हम इंसान कहते हैं।
आज एक बार फिर से
 हम अपने दिल का सच्चा बयान कहते हैं
 ना फर्क है किसी के लहू में,
ना ही हम अलग है एक दूसरे से मगर बस फर्क इतना है कि किसी को लोग हिंदू तो
किसी को मुसलमान कहते हैं।
जाती पाती के नाम पर इंसान ने बेच दिया जहां को
कुछ इसे कृपा, कुछ अल्लाह का फरमान कहते हैं।
हम तो सोच समझ कर भी नहीं समझ पाते यारों
कुछ ऐसी बातें यह नादान परिंदे बेजुबान कहते हैं।
 एक ही रिवाज,एक ही रस्म
बस कुछ अंदाजे बदल जाते हैं वरना है तो वहीं मेरे यारों
कुछ उसे उपवास तो कुछ उसे रमजान कहते हैं।
कुछ जाते हैं मंदिरों में,
कुछ मस्जिदों के रास्ते अपनाते हैं
पर मकसद तो सबका एक ही है जिसे लोग खुशी से फरियाद करते हैं।
वह एक ही हस्ती है जिसने ये जहां बनाया है
कुछ उसे सजदे में अल्लाह तो कुछ उसे झुककर भगवान कहते हैं
बस एक ही मंजिल है सबकी
बस लोगों के तराने बदलते रहते हैं
कुछ उसी जगह को स्वर्ग तो
 कुछ उसी जगह को जन्नत के दरबार कहते हैं।
 ना ही फर्क है तिनके का भी,
ना ही खून के रंग में फर्क है लेकिन यह बेवकूफी है या समझदारी
मुझे मालूम नहीं॰॰॰॰॰
मगर देखिए फिर भी
कुछ लोगों को लोग हिंदू और कुछ को मुसलमान कहते हैं
🇮🇳 जय हिंद  
वंदे मातरम्  
इंकलाब जिंदाबाद  
भारत माता की जय  
जय जवान जय किसान 🇮🇳

Why electron can't exist in nucleus

हाइजेनबर्ग ने इलेक्ट्रान की स्थिति पता करने के लिए एक समीकरण दी ,जो इस प्रकार है

∆x.∆p ≥ h÷4π

जहाँ  ∆x= इलेक्ट्रान की स्थिति मे अनिश्चितता या वह जगह जहाँ इलेक्ट्रान उपस्थित हो सकता है
       ∆p= इलेक्ट्रान का संवेग (M∆v)
        h= प्लान्क नियतांक 6.6×10^-34

यदि हम माने की इलेक्ट्रान नाभिक के अंदर स्थित है तो इलेक्ट्रान नाभिक के व्यास जितने छेत्रफल में ही स्थित हो सकता है
अतः ∆x.m∆v ≥ h÷4π

       ∆v≥ h÷4πM∆x.    
    
यहाँ इलेक्ट्रान के लिए
M= 9.1×10^-31kg
∆x=नाभिक का व्यास= 1×10^-15m

      ∆v≥ 6.6×10^-34÷{4×3.14×9.1×10^-31×10^-15}
     ∆v≥ 5.77×10^10m/s
अर्थात यदि इलेक्ट्रान नाभिक के अंदर जाता है तो वह
5.77×10^10m/s से गति करेगा जो कि प्रकाश की चाल (3×10^8) से भी ज्यादा है जो कि आपेक्षिकता के सिद्धांत से असंभव है इसी
कारण से इलेक्ट्रान नाभिक के अंदर उपस्थित नही रह सकता।

रक्तदान का महत्व

नमस्कार blogger की दुनिया का अभिनंदन करता हूँ।
रक्त एक प्राकृतिक ईंधन है। जो मानव रूपी रथ को संचालित करता है। जिस दिन यह संजीवनी हड़ताल कर दे उसके बाद मानव देह कंकाल को छोड़कर बाकी कुछ भी नहीं है।
आज दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, कुपोषण,आदि समस्याओं के कारण रक्त की महत्ती माँग हो रही है।
भारत प्राचीन समय से ही दाताओं की भूमि रही हैं। इसलिए आज हमें भी अपने पुरखों की इस गौरवशाली परंपरा को रक्त दान जैसे पुण्य कर्म के माध्यम से आगे बढ़ाना चाहिए। क्योंकि यदि आपके एक यूनिट रक्त से यदि किसी व्यक्ति की जीवन नौका डूबने से बच जाये तो आपके परोपकार का इससे शालीन परिचय क्या हो सकता है।
अतः रक्त दान हरेक युवा का कर्म और धर्म है बशर्ते कि वह रक्तदान करने के योग्य हो।
रक्तदान कराने में शिक्षा की भूमिका
शिक्षित व्यक्ति सेअंधविश्वास की बनावटी बेडियों से मुक्त होने की अपेक्षा की जा सकती है। कुछ लोगों की रक्तदान के बारे में मिथ्या धारणा है कि इससे व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर हो सकता है। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। अतः हमें समाज के शिक्षित नागरिक होने के नाते जागरूकता लाने के
अथक प्रयास करने चाहिए।

   " आओ हम एक घडे़ से जलपान करें
      उठो जागो भामाशाहों हम रक्तदान करें"

Blogger की दुनिया का धन्यवाद
         
                     जय हिन्द जय भारत


Brave childhood

                          "बलवान बचपन"
मान लीजिए कि एक छोटा बच्चा (लगभग 3-4 महीने का) एक लकड़ी के साँप से खेल रहा है। क्यूँकि वो बहुत छोटा है वह ये नहीं जानता कि मेरे लिए क्या बुरा है और क्या सही, तो वह उस लकड़ी के साँप को अपने मुँह में ले लेता है। उसकी यही प्रतिक्रिया तब भी होती जब उसके पास असलियत में कोई साँप होता। 
     हमें भी ठीक इसी तरह अपने अंदर के बच्चे को न मारते हुए हर परिस्थिति का बिलकुल निडर होकर सामना करना चाहिए।

Teacher

A teacher takes a hand, opens a mind, touches a heart.