14 फरवरी 2019 का दिन भारतीय सेना लिए एक काली और भयावह रात जैसा था जिसमें कायर लोगों ने दुष्टता और नीचता पूर्वक कुटिलता का सहारा लेते हुए कुछ राज खोलने वालों की मदद से भारतीय सेना के 44 जवानों को छीन लिया
आतंक का यह राक्षस निरंतर बढ़ता ही जा रहा है जो हमारे जाने पर पीछे से वार करके अपनी दुष्टता का परिचय दे रहा है भारत मां के ये जवान सदा सदा अमर रहेंगे और युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे उन जवानों को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए आतंकवाद पर मेरी कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है
ले गए बलिदान हत्यारे मांँ भारती के 44 सपूतों का
जरूर होगा हाथ इसमें कुछ देशद्रोही दूतों का
बिजली सी चाल से वे जिंदगी की दौड़ को दौड़ गए
एक बार फिर से हमारे 44 भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हमें छोड़ गए
जिन जवानों को हम हीरों के रूप में देखते हैं
उन्हीं जवानों पर कुछ दुष्ट पत्थर फेंकते हैं
राह बताते हैं कुछ लोग उन आताताईयों को
पनाह देते हैं घरों में उन सौतेले भाइयों को
कब तक हम बलिदान यह सहते रहेंगे?
कब तक हम अबकी बार अबकी बार कहते रहेंगे?
लड़ते तो हमारे 44 उनके 444 को नहीं छोड़ते
देह छोड़ देते लेकिन मांँ भारती की सेवा से मुंँह नहीं मोड़ते
फूट दिखती है उन्हें इसीलिए तो भारत में आते हैं
कुछ बड़बोले तो इस शहादत पर भी राजनीति करने लग जाते हैं
वे (आतंकी) सबसे कायर हैं दुनिया में यही बताना चाहते हैं
हमारे मणियों की माला बिखेरकर वे कौन सा वीरता पुरस्कार पाते हैं
माना कि हम सीमा पर जाकर लड़ नहीं सकते
लेकिन रोज अखबारों में बेगुनाह जवानों की शहादत की खबरें भी हम पढ़ नहीं सकते
माना कि हमारी सहनशीलता का सम्मान पिट जाएगा
लेकिन हम मिलकर चाहे तो दुनिया के नक्शे से आतंक का नामोनिशान मिट जाएगा
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