नमस्कार ब्लागर परिवार
सांप्रदायिकता की आग में वतन यह जल रहा है
भ्रष्टाचार का अंधेरा हाथ यह मल रहा है।
कोई हिंदू की कहता हैं ,कोई मुस्लिम की गाता हैं
सांप्रदायिकता का यह चक्रव्यूह मुझे नहीं भाता है।
कोई सवर्ण कह रहा है, कोई दलित की अलाप रहा हैं
ऊंच-नीच का यह हो कैसा प्रलाप रहा है।
अधिकारियों को लोग चाँदी के जूते मार रहे हैं
माँ भारती पर ये हो कैसे प्रहार रहे हैं।
राजा हो या रंक सबके ध्येय में पैसा है
भाई भाई को मार रहा है यह प्रलोभन कैसा है?
बच्चों को झोंक दिया कारखानों में
काला रंग भर दिया उनके अरमानों में।
मां भारती के प्रति अब वो प्यार नहीं रहा
या यूं कहो कि देश प्रेम का अब वो त्योहार नहीं रहा।
जनसंख्या की वृद्धि में मानों प्रकाश की चाल है
आज माँ भारती के प्रांगण का हाल बेहाल है।
धर्मसंकट का युग आज आ गया है
लगता है फिर से दुर्योधन राज आ गया है।
राजनेता देश की प्रतिष्ठा से जुआ खेल रहे हैं
गरीब बेचारे पापड़ बेल रहे हैं।
राम जैसे राजा नहीं रहे, हनुमान जैसे कर्मचारी नहीं रहे
राजा विक्रम जैसे न्यायाधीश नहीं रहे, भीष्म जैसे ब्रह्मचारी नहीं रहे।
फूट डालकर राज करने वाली आज की राजनीति है
यह सब पंक्तियां माँ भारती की आपबीती है।
यह मेरी मौलिक रचना हैं।
धन्यवाद
भवदीय
राजेन्द्र
सांप्रदायिकता की आग में वतन यह जल रहा है
भ्रष्टाचार का अंधेरा हाथ यह मल रहा है।
कोई हिंदू की कहता हैं ,कोई मुस्लिम की गाता हैं
सांप्रदायिकता का यह चक्रव्यूह मुझे नहीं भाता है।
कोई सवर्ण कह रहा है, कोई दलित की अलाप रहा हैं
ऊंच-नीच का यह हो कैसा प्रलाप रहा है।
अधिकारियों को लोग चाँदी के जूते मार रहे हैं
माँ भारती पर ये हो कैसे प्रहार रहे हैं।
राजा हो या रंक सबके ध्येय में पैसा है
भाई भाई को मार रहा है यह प्रलोभन कैसा है?
बच्चों को झोंक दिया कारखानों में
काला रंग भर दिया उनके अरमानों में।
मां भारती के प्रति अब वो प्यार नहीं रहा
या यूं कहो कि देश प्रेम का अब वो त्योहार नहीं रहा।
जनसंख्या की वृद्धि में मानों प्रकाश की चाल है
आज माँ भारती के प्रांगण का हाल बेहाल है।
धर्मसंकट का युग आज आ गया है
लगता है फिर से दुर्योधन राज आ गया है।
राजनेता देश की प्रतिष्ठा से जुआ खेल रहे हैं
गरीब बेचारे पापड़ बेल रहे हैं।
राम जैसे राजा नहीं रहे, हनुमान जैसे कर्मचारी नहीं रहे
राजा विक्रम जैसे न्यायाधीश नहीं रहे, भीष्म जैसे ब्रह्मचारी नहीं रहे।
सैनिक बेचारे कश्मीर में ठिठुर रहे हैं
लेकिन हम भारतीय तो आपस में ही लड़कर मर रहे हैं।फूट डालकर राज करने वाली आज की राजनीति है
यह सब पंक्तियां माँ भारती की आपबीती है।
यह मेरी मौलिक रचना हैं।
धन्यवाद
भवदीय
राजेन्द्र
Thanks sir
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