Sunday, 31 May 2020

वो जलते रहें,हम चलते रहें @सफलता की बातें

वो जलते रहें,हम चलते रहें
इस मन से मोती निकलते रहें
ऐसा ही मजा चखाना है
आ गए मैदान में,ये युद्ध जीतकर लाना है
अटल इरादा है हमारा,अब तो नाम बनाना है
दुनिया की हरकतों क्या,अब अपना काम बनाना है
बात-बात पर तानों से शर्मिंदा करने वालों की
राय बदल जाएगी फिर तो निंदा करने वालों की
उगल ले दुनिया जल्दी से यह ज़हर जो तेरे अन्दर है
बाद में पता है सबको जो जीता वही सिकन्दर है
लगातार मेहनत करेंगे जीत का यही कायदा है
आधी राहों से जाने का होता न कोई फायदा है
सपना जो देखा आसमान सा,मुश्किलों को आने दो
वक्त है प्यारे गुजर जायेगा,दुनिया को बात बनाने दो
पद की कीमत सब करते हैं और व्यक्ति का सम्मान नहीं
जो शेष है उसको पा लेंगे,जो पाया उसका अभिमान नहीं
पद पाते ही व्यक्ति की इज्जत ऊपर चढ़ जाती है
कांटों पर चलने से मेरी चाल ज़रा बढ़ जाती है
चेहरे सबके याद हैं और मन में किसी से बैर नहीं
दौर हमारा आने दो फिर घमण्डियों की खैर नहीं

Friday, 29 May 2020

कलयुग के इस कालखण्ड में दुर्लभ श्रवण कुमार हुए ...


कलयुग के इस कालखण्ड में ना अब श्रवण कुमार रहे
कहाँ है ऐसे बेटे अब जो सेवा में शुमार रहे
यूँ तो देते हैं समर्थन दुनिया भर के नारों का
फिर घर में पालन क्यों करते हैं पत्नी के इशारों का
सारी उम्र उस बाप ने जो खून-पसीना एक किया
अपने मन से बेटे का जो पालन पोषण नेक किया
तन,मन,धन अर्पित कर दिया लाल की पढ़ाई पर
बेटे का कल बनाने को वह उतरा रहा लड़ाई पर
दो पैसे कमाने को मां ने भी उठाई टोकरी
सारे प्रयासों के चलते मिली आखिर में नौकरी
तत्पश्चात पिता ने की जो धूमधाम से शादी थी
क्या पता उस भोले मन को घर की यह बर्बादी थी
सास-ससुर को परायी कन्या दे ना पायी इतना प्यार
वर्ष एक भी बीता नहीं कि बना लिया एकल परिवार
बेटा बोला नहीं चलेगी,अपनी बाटी सेंक लो
यहाँ पर क्या है लेना देना,वृद्धाश्रम देख लो
बेबस आंखें क्या करती अब अलग से छप्पर डाल लिया
कहने को कुछ शेष नहीं,आंखों से आंसू निकाल लिया
सफल होना भी बेटे का दु:ख का ही पर्याय बना
बेसहारा प्राणियों संग यह भी कैसा न्याय बना
गाड़ी में नहीं बिठाते जो कंधों पर कौन बिठाये अब
जान भले ही चली जाए,गोद में कौन लिटाये अब
जवानी ढ़ल जाएगी और फिर बुढ़ापा आएगा
गर्व ना कर कल को तेरा बेटा भी यही फ़रमाएगा

Thursday, 28 May 2020

यार बदल देता है यह और प्यार बदल देता है यह....

अपनों को दूर करा देता है,पता नहीं यह कैसा है
इसका नाम बता देता हूँ,यह ही रूपया-पैसा है
इसमें क्षमता कितनी मारक
गरीब,अमीर का यह निर्धारक
न्यायालय में जाकर भी यह बदलाव वचन में कर देता
मन के मन्दिर में भी यह विष की धारा को भर देता
इसके बदले दुनिया ने तो हर वस्तु का तोल किया
कैसी शक्ति है ये जिसने मानव का भी मोल किया
आहार बदल देता है यह,व्यवहार बदल देता है यह
यार बदल देता है यह और प्यार बदल देता है यह
पैसा ही तो है यह जिसने मकान,झोंपड़े छांटे हैं
दु:खद रहा यह सुनना कि औरों के पतंग भी काटें हैं
घर में पैसा चलता है,दफ्तर में पैसा चलता है
रिश्तों में पैसा चलता है,किस्तों में पैसा चलता है
ज्ञान भी मिलता पैसें से,विज्ञान भी मिलता पैसें से
अब ध्यान भी मिलता पैसें से,म्यान भी मिलता पैसे से
सर्वेसर्वा पैसा बन गया,मूल्यों की बर्बादी हुई
दुनिया सारी बदल गई,क्योंकि वो इसकी आदि हुई
पैसों से ही पहुँच गए जो घर से निकल विदेशों में
हत्या आपस में करवा देते हैं माँ-बेटे भी पैसों में
 

Wednesday, 27 May 2020

अंग्रेजों से उपहार में सहर्ष मिली ना आजादी....(The freedom was not gifted by English men)


अंग्रेजों से उपहार में सहर्ष मिली ना आजादी
एक,दो की बात नहीं कई वर्ष मिली ना आजादी
रक्त पिपासु गोरों ने जो भीषण युद्ध करवाया था
फूट डालकर भारतीयों को आपस में मरवाया था
मंगल पांडे से वीर सिपाही,इस देश के भक्त हुए
क्रांति की जब उठी ज्वाला गोरे भी तब सक्त हुए
वीरता की अमिट कहानी अब भी झाँसी बता रही
मेरे मन को सबसे ज्यादा ,तीनों की फांसी सता रही
सत्तावन में चूक हुई तो एक सदी तक मार किया
जालिम अंग्रेजी हुकूमत ने कितना कुछ प्रहार किया
भीमराव बाबा ने फिर हरिजनों का उद्धार किया
शिक्षा दिलवाने हेतु खुद से भी ज्यादा प्यार किया
चले गए लाला जी,उन्होंने खूब लाठियां खाई थी
कील कफ़न में होंगी ये चोटें,इतनी बात बताई थी
निर्दोष भारतीय यूँ कभी ना अब सुलाए जायेंगे
हो अटकलें कितनी भी,ना बापू भुलाए जायेंगे
अंत समय एक साथ जो हिन्दुस्तान ये सारा आया
सब कुछ चला गया हाथों से,करो या मरो का नारा आया
गैरों में दम कहाँ थी यहाँ तो अपनों का अंदेशा था
भारत वीरों की धरती है,साफ़ ये सन्देशा था
इतना सब कुछ होने पर कश्मीर का मुद्दा छोड़ गए
गोरे तो फिर चले गए ,भारत टुकड़ों में तोड़ गए

Monday, 25 May 2020

शांति:एक अत्यावश्यक मानवीय मूल्य के रूप में (Peace as a most needed human ethic)


गांव,गली और शहरों में जो अब कोलाहल भारी है
ध्वनि प्रदूषण से जनता परेशान अब सारी है
आस्तिकता ना खोते,आपस में बैर कहाँ होता
मानव को मानव का डर यह जो खैर कहाँ होता
जीवन के हर पहलू में तुम लाना चाहते हो क्रांति
फिर मन्दिर,मस्जिद क्यों भटकते पाने को तुम शांति
साम्प्रदायिकता के ज़हर को तुम क्यों बच्चों को पिलाते हो
जातिवाद की बाटी तुम क्यों बच्चों को खिलाते हो
गर्भ में हम नहीं सीखते सबकुछ सिखाया जाता है
उज्ज्वलता पर पर्दा करके दाग दिखाया जाता है
सफल हो या असफल,प्रयास हमारे भरसक हों
शांतिप्रिय मूल्य ही जीवन के मार्गदर्शक हों
परमाणु हथियार ना हों,हिरोशिमा से घाव ना हों
बांटें आपसी भाईचारा,सीमा पर तनाव ना हों
मन से कचरे निकलेंगे,तभी शांति आएगी
इन मुरझाये चेहरों पर लगता है कांति आएगी
वैमनस्य के तूफान से अब धरती की रक्षा हो
पुस्तकों के साथ में अब जरूरी शांति शिक्षा हो
विश्व में अस्तित्व में ना आतंकवाद से दानव हो
स्वार्थों की होली जला हम अंतर्राष्ट्रीय मानव हों
सबके साझा यत्नों से स्थापित हो अब शांति
किसी के मन में ना रहे,अब कोई भी भ्रांति

Sunday, 24 May 2020

कहानी गुदड़ी के लाल की....

ईंटों का वजन बढ़ाता गया,दुनिया का बोझ चढ़ाता गया
सुखद सवेरे की आशा में,मजदूर बाप बेटे को पढ़ाता गया
बेटे के खातिर पिताजी,जग की ठोकरें खाते रहे
अपना भी दिन आएगा ,ये खुद से खुद को बताते रहे
आस्था के बीज उन्होंने जन्मदिवस से बोयें थे
आसमान छूने वाले,स्वप्न उन्होंने संजोयें थे
हुई मानसिक वृद्धि संग में अक्षर का भी ज्ञान हुआ
अब यूँ लगने लगा पिता का सपना ज़रा नादान हुआ
जमीन बेचने सी शिद्दत थी,चाहत पूरी करने को
अरमानों में रंग भरने को,तैयार पिता थे मरने को
जोरदार मेहनत से बेटा आया अव्वल शिक्षा में
घर में था जो खा लिया,बाहर गया नहीं भिक्षा को
तब से आगे बढ़ता गया
वह सफल सीढ़ियां चढ़ता गया
इरादा अपना नेक किया
दिन रात फिर एक किया
बाधाओं से रूका नहीं
वह तूफानों से झुका नहीं
कुछ दिन बीते ही थे ,फिर तो खबर छपी अखबारों में
बाढ़ खुशी की आ गई रिश्तों में,परिवारों में
कोई बात नहीं करता है अब उस पारिस्थितिक बेहाल की
इति श्री ये हुई कहानी,गुदड़ी के लाल की

Saturday, 23 May 2020

स्वच्छ भारत,निर्मल भारत: हमारी भूमिका व कर्तव्य


स्वच्छता के सैनिकों की स्वेच्छ भर्ती आई है
साफ़-सफाई का संदेशा,भारतीय धरती लायी है
दूध-सी धारा नदियों की अब कितनी मैली हो गई
जगह-जगह ही प्लास्टिक कचरा और थैली हो गई
धरती माँ की आंखों से आंसू की धारा निकल रही
गंगा मैया कचरे से जो,अब तक होती विकल रही
समझ नहीं आया अब तक कचरे से कैसी यारी है
मच्छर तरह तरह के काटें,फैलती बीमारी है
मन से कचरा निकाल लीजिए ,तब ही आगे की बात करें
भैंस के आगे बीन बजाकर वरना क्यों काली रात करें
कम सामान खरीदिए और कम ही तो उपभोग करें
पुनः चक्रण करने के संग बार-बार प्रयोग करें
लोटा लेकर जाने की अब छोड़ो रीति पुरानी है
निर्मल भारत के सृजन की हमने मन में ठानी है
घर के कचरे का निष्कासन,सड़कों पर करना छोड़ो अब
गंदे पानी को शुद्धिकरण से अवश्य नाता जोड़ो अब
कचरापात्र के महत्व से जन-जन को जागरूक करना है
नगर निगम के वाहनों में अब रोजाना कचरा भरना है
सरकारों के आदेशों का हम सब पालन करते हों
गंदगी समर्थकों पर जुर्माने की शर्तें हों

Wednesday, 20 May 2020

सत्य का सूर्य ढ़ल आया ....

जीवन रूपी आसमान में झूठ के जलधि आए हैं
अपने संग में वैमनस्य की आंधियां भी लाए हैं
उचित - अनुचित कार्य अपने जोर से करा रही
ईमान के बालक को अब घनघोर घटा ये डरा रही
बाधाओं के चलते अब भाई - भाई में भेद हुआ
धर्मनिरपेक्ष ओजोन परत में,इस प्रदूषण से छेद हुआ
मांगी थी संजीवनी पर दुनिया ने तो भांग दिया
जनजीवन ने मूल्यों को अब क्यों खूंटी पर टांग दिया
भ्रष्टाचार का अंधेरा अब भी यहाँ पैर जमाये है निर्दोषों का शोषण हैं,दुष्टों ने नाम कमाया है
सब कर्तव्य भूल गए बच्चे,बूढ़े,नर-नारियां
पाश्चात्य की अम्लीय वर्षा,पैदा कर दी बीमारियां
घर में गद्दारी के सुर,अब दिल से कलई खोल रहे
इस बरसाती पानी में अब आतंक के मेंढक बोल रहे
महलों की मीनारों से अब तक पाखण्ड परोसा है
स्वार्थ के पेड़ लगाने को,गरीब का छप्पर कोसा है
एक बगल में कुआं रहा और दूसरी में खाई है
कावं कावं कौए करते,कोयल की मुश्किल आई है
सोशल मीडिया सी नागिनी रोद्र रूप में दिखने लगी
पवित्र संबंधों में भी कामुकता क्यों बिकने लगी
इस वर्षा की बाढ़ से अब जान,माल की हानि है
ऐसी विपदा आई है जो विनाश की निशानी है
ऊहापोह में है जीवन,ये भी कैसा पल आया
मेरे दिल को लगता है,सत्य का सूर्य ढ़ल आया

पैर पराये मांगकर फिर कितनी दूर चलोगे तुम

पैर पराये मांगकर फिर कितनी दूर चलोगे तुम
आत्मनिर्भर ना बने तो खुद से भी जलोगे तुम
अच्छा भोजन करना है,गेहूँ के दाने भुनने क्यों
मानव जीवन पाकर भी दुनिया के ताने सुनने क्यों
हाथ फैलाने से नौका सागर पार करेगी क्या
हर मौके पर आंखें आंसू बारम्बार भरेगी क्या
अमरबेल बनने से क्या जो दूसरों का सहारा ले
ऐसी करनी कीजिए जो दुनिया पता तुम्हारा ले
चमत्कार को मनुज सदा देता आया सलामी है
जल्दी से क्यों जान ना लेते,कहाँ तुम्हारी खामी है
बाहर से मीठी दिखती दुनिया,मन से बिल्कुल खारी है
कलयुग में जनसंख्या सारी,पैसों की पुजारी है
अपने ही दे जाते धोखा,गैरों पर भरोसा क्यों
आलस्य के अंधभक्त,दु:ख में प्रभु को कोसा क्यों
शीतल होकर भी चन्द्रमा,सूरज से तो महान नहीं
प्रकाश पराया देने से क्या,खुद की तो कोई शान नहीं
स्वर्ण पथ नहीं है जीवन,ये कांटों की सेज है
वही जीता है दुनिया से जिसमें अपना तेज़ है
सुनने में विश्वास ना करते,करके तुम्हें दिखाना है
बनता वही सिकन्दर,जिसके पास ना कोई बहाना है

Tuesday, 19 May 2020

भारत की खुशहाली को तो पिज्जा,बर्गर ने मारा


दुनिया बेबस बैठी है,कोई बचा नहीं अब चारा
भारत की खुशहाली को तो पिज्जा,बर्गर ने मारा
हष्ट-पुष्ट शरीर अब क्यों धक्के खाकर गिरता है ?
स्वास्थ्य की खोज में क्यों बाजारों में फिरता है ?
गौ माता के दूध-दही की रही न भारत पर ममता
तभी तो नदी किनारे बैठी,प्रतिरक्षा की क्षमता
चटपटे स्वाद के मानव की जीभ अधीन हुई
मृदुल जीवनशैली भी भारत की,लगता है नमकीन हुई
खुशहाली की घड़ी अब मानों भारत से चली गई
पाचन तंत्र की हत्या करती,ये सारी चीजें तली गई
खानपान के संबंध में जो नियमितता का ज्ञान नहीं
मन की इच्छा पूरी करते,गुणवत्ता का ध्यान नहीं
निरोगी काया का सूत्र लगता है अब भूल गए
आसमान और धरती के मध्य क्षेत्र में झूल गए
आरोग्यता की प्रतिज्ञा, अब मन-मन्दिर हठ गई
आधुनिकता के पुजारियों,औसत आयु क्यों घट गई
कंद-मूल-फल से नाता अब क्यों भारत ने तोड़ा है
बेसनी पकवानों से अब त्वरित नाता जोड़ा है
यही कमी है भारत की तुम छानकर भी छान लो
नष्ट जीवन हो रहा है ,जल्दी से पहचान लो

Sunday, 17 May 2020

कान खोल सुन ले पड़ोसी (The neighbour must hear with open ears)


अपने घर में बर्तन बजते,न्याय पराया करते हैं
झूठी शान के परिंदे ज्यादा इतराया करते हैं
कुछ लोगों को अब भी दावत,पाकिस्तानी भाती है
आतंक को गले लगाने में,ज़रा शर्म नहीं क्यों आती है
भूल गए छब्बीस फरवरी घर में घुसकर मारा था
पराक्रम के सामने आतंकी कुनबा हारा था
कारगिल के युद्ध में भी तुमने तो मुहं की खायी है
फिर निर्बुद्धि लोगों में अभी समझ नहीं आयी है  
विश्वकप का पहला मुकाबला अब भी जीत नहीं पाया
बहुत बार पीटा है तुमको,हमने गीत नहीं गाया
तुझसे ज्यादा किसी के दिल में मानवता से बैर नहीं
गीदड़भभकी दी अब, तो फिर से तेरी खैर नहीं
मृत्यु-शैय्या लेने का न्यौता बार-बार ना भेजा कर
जीर्ण-शीर्ण अस्थिपंजर को थोड़ा तो सहेजा कर
नयनों के संकेतों से फिर एक नचा नहीं पायेगा
पीटेंगें पिताजी तो फिर कोई बचा नहीं पायेगा
कोरोना की बैठक में कश्मीर की बातें क्यों करते
अपने वतन से नफ़रत है क्या,घाटी में आकर क्यों मरते
चापलूसी करके औरों की अपना मन बहलाता है
तेरी करनी की वज़ह से भुखमरा कहलाता है
रूस,अमेरिका सबसे फिर अपनी कहलाकर रख देगी
दिल्ली जाग गई तो तेरा दिल दहलाकर रख देगी

Saturday, 16 May 2020

दोस्ती की परिभाषा (Definition of friendship)


शाबाशी तुझको ही देती,तुझे ही दुनिया कोसती
तेरे संग मैं चल रहा ज़रा संभलकर चलना दोस्ती
विश्वासों के नाम पर आदर्श यज्ञ जानी जाती
जाती
संगति के क्षेत्र में विशेषज्ञ मानी जाती
डूबती नौका को भी भवसागर पार करा दे तू
छल-कपट मन में आ जाए ,जीत की हार करा दे तू
सच्चा साथी होता है जो जान से ज्यादा प्यार करे
प्रतिपुष्टि देता रहे और कमियों का इज़हार करे
कृष्ण जी की ज़रूरत क्या ,जब अर्जुन खुद ही महारथी
फिर भी उन्होंने क्यों कहा बन जाओ मात्र सारथी
वह है सच्ची मित्रता जो ओछे बोल नहीं बोलें
छीटांकशी के नाम पर अपने को मोल नहीं तोले
आग और पानी तुम कभी गठबंधन ना जोड़ो
विश्वासों की डोर को संदेह के चलते मत तोड़ो
धन-धान्य सी चीज ना लाओ दोस्ती के बीच में
वरना यह तो कमल है ऐसा,कभी ना खिलता कीच में
दोस्त भले तुम एक ही पालो,दूध सा उज्ज्वल पालो तुम
ह्रदय की सुन्दरता परखों , मन से मुखड़ा निकालो तुम
सच्चे मीत मिलें व्यक्ति का जीवन ही तो ठाठ हैं
ध्यान रहे टूकड़े धागे के जुड़ते नहीं बिन गांठ हैं

Friday, 15 May 2020

बचपन तेरी यादें (The memories of childhood)


उन्मुक्त पंछियों की तरह ही इधर उधर फिरते थे हम
धरती माँ के आंगन में उठते थे और गिरते थे हम
काल्पनिक मुस्कान नहीं थी,बैर-भाव का काम नहीं
सब घर अपने ही थे तब तो,स्वार्थों का ज्ञान नहीं
अहाते में किलकारियों से कोलाहल खुब मचाते थे
कपोल कल्पनाओं की शक्ति से मन में मोर नचाते थे
बचपन तेरे रहते हुए लगता हर दिन त्योहार था
ना किसी से थी रंजिशें,ना ही कोई भार था
तोतली आवाज़ हमारी जनमानस को भाती थी
माता संग मन्दिर जाते थे,वहाँ वे तिलक लगाती थी
खाली था मस्तिष्क हमारा, तभी तो ज्ञान पिपासा थी
हर चीज़ को जानने में कितनी प्रबल जिज्ञासा थी
रोना और बिलखना तब लगती सामान्य बातें थी
बचपन तेरे साथ तो सब उजियाली ही रातें थी
समय ज़रा कुछ ढल गया,विकसित ये सरोज हुआ
शिक्षा से क्रमिक परिचय तब से हमारा रोज हुआ
मोती से आंसूओं की माला लगता है तब से टूट गई
तेरे जाते ही बचपन,जीवन की खुशियाँ छूट गई
कोई नहीं शिकायत थी,तु फिर भी छोड़कर चला गया
मन के नाटक के मंचन से मुहं मोड़कर चला गया

अभिप्रेरणा की परिभाषा,अर्थ,महत्व,आवश्यकता (The Definition,Meaning,Importance,Necessity of Motivation )


पचपन कि.मी. पहाड़ तोड़ना लगता कितना भारी है
दशरथ मांझी के साहस से परेशानियां हारीं हैं
गूदड़ी का लाल भी शिक्षा में अव्वल आया है
अभिप्रेरणा की ताकत से विराट दुनिया में छाया है
वैज्ञानिक उपलब्धियों से ही श्री कलाम को सलाम हुआ
अभिप्रेरणा के चलते ही अमर,अटल जो नाम हुआ
शैय्या पर सोते रहने से बल्ब बनाया जाता क्या
अभिप्रेरणा ना होती तो जश्न मनाया जाता क्या
सबकुछ खोकर आए हैं जो अब भी सोकर आए हैं
हिमादास से नाम भी अभिप्रेरित होकर आए हैं
अभिप्रेत किरदार होता है हर रोमांचक कहानी का
प्रेरणा की ओर ही चलता है खून जवानी का
कोयले बिन नहीं जलेगी, लक्ष्य की अंगीठी भी
बार-बार प्रयास कैसे करती नन्ही चींटी भी
अभिप्रेरित व्यक्ति ने देखा ना छाया,धूप है
सच्चे अर्थों में अभिप्रेरणा ऊर्जा का ही रूप है
भूल जाओ बुरा समय आज तक जो बीता है
अंत तक लड़ने वाला तो हारकर भी जीता है
जीवन धन्य हो जाता है, अभिप्रेरित व्यक्ति का
अंदाजा नहीं लगा सकते तुम प्रेरणा की शक्ति का
तूफानों से लड़कर भी,अब पार जो कश्ती करना है
लक्ष्य ऐसा ठाना है जो बनकर हस्ती मरना है

Thursday, 14 May 2020

सावधानी हठी, दुर्घटना घटी-सड़कों पर घमासान


परिवहन के साधनों ने बौनी कर दी दूरियाँ
वायुवेग से क्यों उड़ते हो,ऐसी भी क्या मजबूरियाँ
आसान नहीं है जिन्दगी,ना ही जूए का खेल है
चारों ओर जो सड़कों पर वाहनों की रेलम पेल है
खुब चढ़ी परवान जवानी,माना कि चढ़ता खून है
पर जल्दबाजी से मरने का यह कैसा जुनून है
क्यों लेते हो जान परायी,अपने कमाये पैसों पर
वाहन चलाना है क्या जरूरी ,शराब के आदेशों पर
हाथ,पैरों और ध्यान का,अब उत्तम संयोग करो
शिरस्त्राण और सीट बेल्ट का हमेशा प्रयोग करो
निर्धारित सीमा में हमेशा नियंत्रित जो चाल रहे
सावधानी बरतें सब,दुनिया का बढिया हाल रहे
राह चलते राही को ना आशंका हो टक्कर की
सड़कों पर ना रंजिश निकले दुश्मनी के चक्कर की
नियमावली के अनुसरण से ऊँचे तुम जज्बात करो
वाहन चलाते समय समय कभी ना दूरभाष पर बात करो
दुर्घटना की कहानियों से ना आये आंसू आंखों के
निर्दोषों का जीवन ना गुजरें,पीछे बैठ सलाखों के
जो समझ सके इंसान को,वही तो इंसान है
जल्दी जागो भारतवासी,सड़कों पर घमासान है

Wednesday, 13 May 2020

हमारी शिक्षा व्यवस्था कैसी हो (Hamari shiksha vyavstha kaisi ho)


प्यासे को नीर पिलायें हम
भूखे को अन्न खिलायें हम
निर्धन को वस्त्र दिलायें हम
ऐसी हो शिक्षा प्रणाली
ज्ञान से भरे भारत की थाली
समाज से हो समायोजन
मिल बांटकर खाए हम भोजन
कौशलयुक्त बने यह शिक्षा
शिक्षित युवक ना मांगें भिक्षा
जान से भी ज्यादा हमको इस वतन से प्यार रहे
भारत माँ की सेवा को हम सदा - सदा तैयार रहें
सांप्रदायिकता का नाम ना हो
भेदभाव का का काम ना हो
शिक्षा में हो बालक मध्यवर्ती
अमन चैन बांटें ये धरती
ताकि भारत पढ़ता जाए
भाईचारा बढ़ता जाए
मूल्यों में सबसे अव्वल आए , भारत का भी नाम बढ़े
भारत की शिक्षा प्रणाली श्री अटल और श्री कलाम गढ़े
स्मृति पर रुक ना जाए
चिंतन स्तर तक दौड़ लगाए
बोझ ना बने बस्ते हमारे, शिक्षा भी व्यवहार की हो
सौम्य वातावरण में शिक्षा सृजन और आपसी प्यार की हो
 

Monday, 11 May 2020

विज्ञान : वरदान या अभिशाप (Science : boon or curse )


यूँ तो मानो तकनीकी से हमने तारे तोड़ लिए
अंतरिक्ष में खूब उपग्रह सब देशों ने छोड़ लिए
स्वास्थ्य के क्षेत्र में कितना उत्थान किया हमने
समुद्रों की शुद्धि से उनका जलपान किया हमने
प्रसिद्ध हुए वैज्ञानिक और सब देशों की शान बनें
लाखों मील की दूरी नापे ऐसे वायुयान बने
अज्ञानता से दूर हुए हम,रही ना कोई भ्रांति
संचार की कछुआ चाल में सहसा आई क्रांति
विद्युत सी उपलब्धि ने जीवन को सरल बनाया है
पहाड़ सी ठोस समस्या को हमने अब तरल बनाया है
विज्ञान ही सर्वेसर्वा है लगता यह दावा झूठा है
ओजोन सदृश परत का पेट आज क्यों फूटा है
मजदूरों के हाथ काट दिए वैज्ञानिक मशीनों ने
भारी विपदा झेली है जल ,जंगल ,जमीन इन तीनों ने
परमाणु हथियारों से अब सारा जग भयभीत है
तकनीकी ने दुर्बलों पर हासिल की कैसी जीत है
कोरोना सा कोहराम ये विश्वपटल पर छाता क्यों
घोर संकट की सुनकर कहानी आंखों से खून जो आता क्यों
यूँ लगता खुद के लिए काल कलेवा सजा रहा
बढता हुआ प्रदूषण जो खतरे की घंटी बजा रहा

Sunday, 10 May 2020

भरतखण्ड के युवा (Bharatkhand ke yuva) तुम जागो @युवाजागरण


भरतखण्ड के युवा तुम निद्रा से उठकर अब जागो
तकनीकी के युग में तुम अज्ञान के पीछे ना भागो
पाश्चात्य की चकाचौंध में क्यों भारत को खोते हो
आकर्षण को प्यार समझकर क्यों जीवनभर रोते हो
व्हाटसएप के वीर लड़ाई स्टेटस पर लड़ते हो
शौर्य गाथा कौन पढ़े मजाक वतन का पढ़ते हो
फेसबुक पर नकली चेहरे समय गुजारने का ज़रिया
विपदाओं के बीच भारत कैसे पार करे दरिया
आलस्य में सुषुप्त है,भारतीय खून जवानी का
सीना छलनी ना कर देते हत्यारों की मनमानी का
बहन सुरक्षित नहीं किसी की महल ,मकानों,सड़कों में
ऐसी दुर्बुद्धि कहाँ से आई भारत माँ के लड़कों में
कलयुग के इस कालखण्ड में अपराधों का घोर है
ईमानदार को कुचल दिया अब भी दुष्टों का दौर है
परवाह नहीं किसी को मानों मुफ्त मिलीं आजादी है
विषधर सोशल मीडिया भी भारत की बर्बादी है
दो अंकों कमी रही तो क्यों फांसी पर झूल गए
समय ज़रा अनुकूल था, वीरों की शहादत भूल गए
भारत का अन्न खाया है, तुम भी तो आभास करो
दो कर कमल दिये ईश्वर ने तुम्हें,तुम भी तो कुछ खास करो

Saturday, 9 May 2020

बहनों के लिए कविता (A poem for sisters)

भूगोल से खगोल तक बहनों ने नाम कमाया है
बहनों के तेज़ प्रताप से भाग्य भी ज़रा सरमाया है
जिस भाई के बहन नहीं,उसका जीवन एक रोना है
भाई - बहन के संबंध को दिल से मानें तो  सोना है
पवित्रता का अद्वितीय परिचायक त्योहार यह रक्षाबंधन है
बहन बिना भाई का जीवन सदा रहा क्रन्दन है
जिस घर बहन नहीं है उस घर देवों का प्रवेश नहीं
बहन उपस्थित हो जाए तो कोई खूबी शेष नहीं
मध्यकाल में बहनों को अंधविश्वासों ने जकड़ा था
असीम प्रतिभा के सागर को कुप्रथाओं ने पकड़ा था
धीरे -धीरे फिर से उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई
सबसे अव्वल आई बहनें बड़ी खुशी की बात हुई
मन में जब ठानी तो उन्होंने ज्ञान और कौशल का पता दिया
अवसर मिलते ही बहनों ने मुहं पर दुनिया को बता दिया
संस्कार और संस्कृति को गांव - गांव ले जाती है
सारी दुनिया को, सभ्यता का वो पैगाम सुनाती है
समय रहते समझकर बहनों का गुणगान करो
मानव रथ के इस भाग का तन - मन से सम्मान करो
दूध से उज्ज्वल मूल्यों में ना पाश्चात्य की दुर्गंध करो
अपनी हो या हो परायी शिक्षा का प्रबंध करो

Friday, 8 May 2020

ग्रामीण आँचल की छटा (GRAMIN ANCHAL KI CHHATA)

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ब्रह्ममुहूर्त की चांदनी में कोयल गीत सुनाती है
ये छटा ग्रामीण आँचल की मेरे अंतर्मन को भाती है
हुआ सूर्योदय स्वच्छता,स्नान और ध्यान किया
नमस्कार जो किया बड़ों को और मूल्यों का ज्ञान किया
रूखा -सूखा किया कलेवा,वह हल लेकर तैयार हुआ
कैसे बैठे निठल्ला,उसको धरती से जो प्यार हुआ
कानन में अब गया ग्वाला पशु चारण की तैयारी में
खेतिहर मजदूर पहुंच गए पराये खेत की क्यारी में
बच्चे तो दिनभर मिट्टी में खेल खेलते रहते हैं
दुश्मन हो या दोस्त वे तो सबको अपना कहते हैं
हुए प्रचण्ड रवि, ज़रा आराम फ़रमाना चाहता है
उज्ज्वल मन की प्रियतमा से भोजन खाना चाहता है
तनिक देर विश्रांति पर उठकर फिर हुंकार भरी
मिट्टी से ही करने लगा वो अपनी बातें प्यार भरी
शीतल हुए भास्कर,अब गोधूलि वेला आई है
गायें घर को लोट रही मानों संग मेला लाई हैं
पक्षी आये आशियाने में, हुई जो संध्या आरती
सच्चे भारत के कार्यों से प्रफुल्लित हुई मां भारती
थके हुए चेहरे से आंखें अब भोजन को ताक रही
बच्चों से मिलने को काया दिनभर जो बेबाक रही
जो मिला वही मुकद्दर उसने तकदीर को नहीं कोसा है
रोटी -सब्जी के संग प्रिया ने दूध और दही परोसा है
दिनभर की दिनचर्या से उसने अपनी गलती याद किया
ना अहित मैं करूं किसी का ईश्वर से फ़रियाद किया
ना हो कभी भी बैर भाव मुझमें और मेरे अपनों में
कल्याणकारी सोच वो रखता रात्रि के सपनों में

पत्थरबाजी छोड़ो,शिक्षा से नाता जोड़ो


कश्मीरी घाटी में अब पत्थर बरसाना छोड़ो तुम
आंतकियों की गाना है तो,भारत का खाना छोड़ो तुम
भारत के स्वर्ग में कोलाहल मचाकर रखा है
आज भी घाटी में क्यों आतंक बचाकर रखा है?
गद्दारी की साजिश को सत्ता बार बार ना माफ करे
राहों पर बढ़ने से पहले चप्पलों से कंकड़ साफ़ करे
बार बार पीटा जाता है भारत माँ के प्यारों को
पनाह घरों में दी जाती है सेना के हत्यारों को
नन्ही आँखें छिपकर कोने में बार बार जो रोती है
कुछ पत्थर दिल इंसानों को तो पीड़ा भी नहीं होती है
नीम और करेला का संयोग हुआ क्यों घाटी में
खरपतवार कहाँ से आया इस सोने की माटी में
कठपुतलियों का खेल ये जो खुब हुआ अब बंद करो
बेकारी छोड़ो और जागो शिक्षा का प्रबंध करो
गद्दारी घर से ना हो तो कोई कैसे प्रहार करे
भेड़ियों (आतंकी) की क्या औकात जो सोते शेरों पर वार करे
दो टूक भारत कहता है ज्ञान से नाता जोड़ो तुम
पिछला वक्त अब चला गया,पत्थर बरसाना छोड़ो तुम

Sunday, 3 May 2020

कोरोना का कोहराम और सुखद सवेरा (CORONA KA KOHRAM AUR SUKHAD SAVERA)

मानव की वैज्ञानिक जिद्द से मानवता भी हारी है
कोरोना के कोहराम से पस्त ये दुनिया सारी है
सुनसान है सड़के वह जो जलधारा सी बहती थी
विकल है भारत माता जो थोड़े तो सुख में रहती थी
जनजीवन अब व्यथित है पीछे बैठ किवाडों से
यूं लगता है, भारत मां पर पत्थर टूटे पहाड़ों से
सावधानी सीख लीजिए और जागरूकता लाना है
कोरोना से लड़ने में भारत को अव्वल आना है
खूब साथ दिया है अब तक सत्ता के गलियारों नें
तन,मन,धन से सेवा की है भारत मां के प्यारों ने
निर्दोषों पर प्रहार किया है कोरोना के तीरों ने
लगातार तैनाती दी है भारत मां के वीरों ने
उम्मीदों पर अडिग है रहना, जीवन पटरी पर आएगा
अंधियारा छठ जाएगा और सुखद सवेरा आएगा
कोरोना पर भारतवासी फिर गीत खुशी के गाएंगे
या तो यूं ही रुक जाता है,नहीं तो तब तक वैक्सीन बनाएंगे
लौटेगा मानव संसाधन, उद्योगों और बाजारों में
रंग वही चमकेंगे फिर से तीज और त्योहारों में
जीवन एक सफर है जिसमें पत्थर भी आ जाते हैं
बुद्धि और अध्यात्म से हम जीत हमेशा जाते हैं

          " एक सलाम कोरोना योद्धाओं के नाम"


         देश हित में कार्य करें एवं कोरोना से जीतने में सहायता           करें।


          जय हिंद ,जय भारत,जय भारतीय वीर,जय भारतीय।            सेना,जय कोरोना योद्धा