Sunday, 24 May 2020

कहानी गुदड़ी के लाल की....

ईंटों का वजन बढ़ाता गया,दुनिया का बोझ चढ़ाता गया
सुखद सवेरे की आशा में,मजदूर बाप बेटे को पढ़ाता गया
बेटे के खातिर पिताजी,जग की ठोकरें खाते रहे
अपना भी दिन आएगा ,ये खुद से खुद को बताते रहे
आस्था के बीज उन्होंने जन्मदिवस से बोयें थे
आसमान छूने वाले,स्वप्न उन्होंने संजोयें थे
हुई मानसिक वृद्धि संग में अक्षर का भी ज्ञान हुआ
अब यूँ लगने लगा पिता का सपना ज़रा नादान हुआ
जमीन बेचने सी शिद्दत थी,चाहत पूरी करने को
अरमानों में रंग भरने को,तैयार पिता थे मरने को
जोरदार मेहनत से बेटा आया अव्वल शिक्षा में
घर में था जो खा लिया,बाहर गया नहीं भिक्षा को
तब से आगे बढ़ता गया
वह सफल सीढ़ियां चढ़ता गया
इरादा अपना नेक किया
दिन रात फिर एक किया
बाधाओं से रूका नहीं
वह तूफानों से झुका नहीं
कुछ दिन बीते ही थे ,फिर तो खबर छपी अखबारों में
बाढ़ खुशी की आ गई रिश्तों में,परिवारों में
कोई बात नहीं करता है अब उस पारिस्थितिक बेहाल की
इति श्री ये हुई कहानी,गुदड़ी के लाल की

3 comments:

  1. कुछ सपनों की चाह में, गवा दी ज़िन्दगी अपनी..
    जो अपनों के सपनों के लिए, अपने सपने दाव पर लगा दिया
    वही है जीवन में भगवान जिसने अपनो के लिए अपने सपने बदल दिए

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    1. जी बिल्कुल आप ने यह स्पष्ट किया है कि पिता आदर्श त्याग का उदाहरण हैं इसलिए संतानों को अपने पिता की बात परानुभूति के माध्यम से समझते हुए उनके शमित सपनों को पूरा करने के अथक प्रयास करने चाहिए।
      अपने पिता की खून पसीने की कमाई को किसी सोना,मोना के पीछे नहीं बहाना चाहिए ।

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  2. राजेन्द्र भाई आपसे अनुरोध है भाव समझ कर इस पर प्रकाश डाले

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