जीवन रूपी आसमान में झूठ के जलधि आए हैं
अपने संग में वैमनस्य की आंधियां भी लाए हैं
उचित - अनुचित कार्य अपने जोर से करा रही
ईमान के बालक को अब घनघोर घटा ये डरा रही
बाधाओं के चलते अब भाई - भाई में भेद हुआ
धर्मनिरपेक्ष ओजोन परत में,इस प्रदूषण से छेद हुआ
मांगी थी संजीवनी पर दुनिया ने तो भांग दिया
जनजीवन ने मूल्यों को अब क्यों खूंटी पर टांग दिया
भ्रष्टाचार का अंधेरा अब भी यहाँ पैर जमाये है निर्दोषों का शोषण हैं,दुष्टों ने नाम कमाया है
सब कर्तव्य भूल गए बच्चे,बूढ़े,नर-नारियां
पाश्चात्य की अम्लीय वर्षा,पैदा कर दी बीमारियां
घर में गद्दारी के सुर,अब दिल से कलई खोल रहे
इस बरसाती पानी में अब आतंक के मेंढक बोल रहे
महलों की मीनारों से अब तक पाखण्ड परोसा है
स्वार्थ के पेड़ लगाने को,गरीब का छप्पर कोसा है
एक बगल में कुआं रहा और दूसरी में खाई है
कावं कावं कौए करते,कोयल की मुश्किल आई है
सोशल मीडिया सी नागिनी रोद्र रूप में दिखने लगी
पवित्र संबंधों में भी कामुकता क्यों बिकने लगी
इस वर्षा की बाढ़ से अब जान,माल की हानि है
ऐसी विपदा आई है जो विनाश की निशानी है
ऊहापोह में है जीवन,ये भी कैसा पल आया
मेरे दिल को लगता है,सत्य का सूर्य ढ़ल आया
अपने संग में वैमनस्य की आंधियां भी लाए हैं
उचित - अनुचित कार्य अपने जोर से करा रही
ईमान के बालक को अब घनघोर घटा ये डरा रही
बाधाओं के चलते अब भाई - भाई में भेद हुआ
धर्मनिरपेक्ष ओजोन परत में,इस प्रदूषण से छेद हुआ
मांगी थी संजीवनी पर दुनिया ने तो भांग दिया
जनजीवन ने मूल्यों को अब क्यों खूंटी पर टांग दिया
भ्रष्टाचार का अंधेरा अब भी यहाँ पैर जमाये है निर्दोषों का शोषण हैं,दुष्टों ने नाम कमाया है
सब कर्तव्य भूल गए बच्चे,बूढ़े,नर-नारियां
पाश्चात्य की अम्लीय वर्षा,पैदा कर दी बीमारियां
घर में गद्दारी के सुर,अब दिल से कलई खोल रहे
इस बरसाती पानी में अब आतंक के मेंढक बोल रहे
महलों की मीनारों से अब तक पाखण्ड परोसा है
स्वार्थ के पेड़ लगाने को,गरीब का छप्पर कोसा है
एक बगल में कुआं रहा और दूसरी में खाई है
कावं कावं कौए करते,कोयल की मुश्किल आई है
सोशल मीडिया सी नागिनी रोद्र रूप में दिखने लगी
पवित्र संबंधों में भी कामुकता क्यों बिकने लगी
इस वर्षा की बाढ़ से अब जान,माल की हानि है
ऐसी विपदा आई है जो विनाश की निशानी है
ऊहापोह में है जीवन,ये भी कैसा पल आया
मेरे दिल को लगता है,सत्य का सूर्य ढ़ल आया
मनुष्य ने जो खिलवाड़ प्रकृति के साथ किया है उसका यही परिणाम हैं 🌍🌎⛰🙏
ReplyDeleteजी सर
Deleteये सुन- सान पड़ी वादीया पुच्छेगी
ReplyDeleteपुच्छेगी ये ये सुखी हुई नदियां
क्या यही पूण्य,पाप था हमारा ....
मानव होकर मानवता भुल गया ....
शुक्रिया
Deleteआपने उत्तम शब्द संयोजन के माध्यम से हमारी भावना को पुन: व्यक्त किया है।😊
Very good lines bhai jiii
ReplyDeleteहमारे नियमित पाठक हेमन्त जी का हार्दिक अभिनन्दन
DeleteNice blog
ReplyDeleteआपके समर्थन के लिए शुक्रिया सुमित जी
Deleteअति सुंदर भाई जी ।।। 😊🙏🏼🙏🏼🙏🏼
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