Friday, 19 June 2020

भारतीय जनता में आक्रोश: चीनी सामानों का बहिष्कार (#Boycott China)


नमस्कार दोस्तों
भारतीय जनता में आक्रोश: चीनी वस्तुओं का बहिष्कार


दुष्टों से हाथ मिलाना क्यों
सांपों को दूध पिलाना क्यों
जो फूलों से ईर्ष्यालु हैं,उनके संग कमल खिलाना क्यों
लेना-देना बन्द करें अब सेना के हत्यारों से
देशप्रेम का महत्व जानें,भारत माँ के प्यारों से
रक्षाबंधन पर राखी भी जो चीन बनाकर देता क्यों
मृदुता के त्योहार को नमकीन बनाकर देता क्यों
भारत की आंखों पर सुई की नोक चलाते फिरते हैं
मानसिक गुलाम लोग टिक-टॅाक चलाते फिरते हैं
दुनिया से जंग जीतनी है तो आपस में मत हारो तुम
अंधानुकरण छोड़ो और यह चीनी चोला उतारो तुम
अमर रहे यह वतन हमारा,सबको शान से गाना है
तड़क-भड़क की होली जलाकर स्वदेशी अपनाना है
पत्थरबाजी आगे की तो हम भी समर जोड़ देंगे
दो टूक सुन ले तेरी आर्थिक कमर तोड़ देंगे
चीनी सामानों का अब करना है हमको बहिष्करण
मन से कचरा निकालकर करना है हमको परिष्करण
कफ़न रूप में पसन्द है हमको जाना तिरंगा वेश में
स्वदेशी से रह जाएगा देश का पैसा देश में
आस्तीन के सांप
को अब अच्छा सबक सिखाना है
रक्षा के प्रयोजन से एकीकृत होकर दिखाना है

Thursday, 18 June 2020

मौलिक अधिकारों को याद करने की ट्रिक (A trick to learn fundamental rights with related articles)

नमस्कार मित्रों
आज मैं भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को याद करने के लिए एक मौलिक कविता लेकर प्रस्तुत हूँ,गौरतलब है कि राजनीतिक विज्ञान के इस खण्ड से हमेशा प्रश्न पूछे जाते रहें हैं
[ {संविधान भाग-3, अनुच्छेद 12-35}-अमेरिकी संविधान से लिए गए हैं ]
हमने सुना है विधि के समक्ष ,होते हैं समान सब  (Art. 14)
इसलिए महत्व नहीं रखते धर्म,लिंग,स्थान सब (Art. 15)
समान अवसर मिलेंगे सबको अब तो लोक नियोजन में (Art. 16)
अस्पृश्यता नहीं करेंगे किसी के घर पर भोजन में (Art. 17)
इन गुणों को मान लिया तो वह भारतीय संत है
इसी नाम पर उस मानव की उपाधियों का अंत है (Art. 18)
स्वतंत्रता के मामले में सबको काफी छूट है(Art. 19)
दोषसिद्धि से संरक्षण का 20-20 कूट है (Art. 20)
स्वतंत्रता मिल चुकी है सबको प्राण और देह की (Art. 21)
नि:शुल्क शिक्षा इसमें मिलेगी लद्दाख और लेह की (Art. 21A)
बिना कारण बताए तो फिर करता कोई बन्द नहीं
विदेशियों हेतु इसमें ऐसा कोई प्रबंध नहीं (Art. 22)
सन् 23 तक यह लक्ष्य है ना किसी का शोषण हो (Art. 23)
24 तक बच्चों का ना उद्योगों में कुपोषण हो (Art. 24)
कोई नहीं पाबंदी तुम तो किसी धर्म को मान लो (Art. 25)
धार्मिक प्रबंध के सारे सूत्र तुम जान लो (Art 26)
धर्म के प्रचार पर जो किसी तरह का कर नहीं (Art. 27)
राजकीय शिक्षण में फिर जो कोई धार्मिक (+उपदेश) सर नहीं (Art. 28)
अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का सदा संरक्षण हो  (Art. 29)
रुचि की वे(अल्पसंख्यक) शिक्षा देंगे जो मूल्यों का ना भक्षण हो (Art. 30)
भारत ऐसी धरती हमारी,हमको इससे प्यार है
अधिकार छीने तो कोई संवैधानिक उपचार है (Art. 32)

लगता है खिसियानी बिल्ली पिटने को अभिलाषी है @India-China war hindi poems

नमस्कार दोस्तों
15-16 जून को सीमा पर  चीन के पीठ पीछे वार से वीरगति को प्राप्त हुए माँ भारती के सपूतों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि के साथ हमारे पड़ोसी की गद्दारी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है -


शेरों के साहस आगे चमगादड़ चाल रुकेगी नहीं
यह भारत माँ की सेना है सुन लें हर हाल झुकेगी नहीं
वीरता के क्षेत्र में हम दुनिया से विशेष हैं
मरना भी मंजूर है यह भगत सिंह का देश है
मेरा अंतर्मन रोता है जब यूँ वह सैनिक मरता है
रणभूमि में लड़े पड़ोसी गद्दारी क्यों करता है
पाक को उकसाने में ये अब तक शकुनि बना रहा
वीरों की शहादत पर ये अब भी दीवाली मना रहा
तेरी बर्बरता भारत से आगे वहन नहीं होगी
बदला पत्थर से लेंगे तेरी ईंटें सहन नहीं होंगी
चोर चोर मौसेरे भाई,घाटी में शोर मचाते हैं
सोए शेरों पर वार करके मन में मोर नचाते है
परमाणु धमकी से सुन ना डरते भारतवासी है
यूँ  लगता खिसियानी बिल्ली पिटने को अभिलाषी है
कोरोना पर खूब फ़ज़ीहत अमेरिका ने की तेरी
भारत ने सोचा शांति नामसमझी ही निकलीं मेरी
विकास का यह अहं तेरा चूर-चूर हो जाएगा
दुनिया के डंडों से कोरिया कोसों दूर हो जाएगा
खूब तरक्की कर ली तेरा विनाशकाल अब चालू है
कोरोना से बता दिया तू जीवन का ईर्ष्यालु है

Monday, 15 June 2020

आत्महत्या (suicide)......

नमस्कार ब्लॉगर परिवार 

भोग विलासी दुनिया में मानव,मानव से दूर हुआ
वो बेबस दिल जो मरने को इतना भी क्यों मजबूर हुआ
आभासी दुनिया में ये सब झूठ परोसा जाता है
आत्महत्या करने पर जीवन को कोसा जाता है
घर के भेदी लंका ढ़हाते तब अंतर्मन रोता है
सोचो उस परिवार की,चिराग जो अपना खोता है
कहने को तो उसके परित: जनमानस का मेला था
दुनिया के संग रहकर भी,वह हुआ क्यों अकेला था 
आकर्षण को प्यार जो कहना धोखे का ही खेल है
ज़हर से डसने वालों का दुनिया में कैसा मेल है 
फेसबुक मित्र हैं लाखों जीवन में कोई एक नहीं
किस को बात बताता खुद की इरादे किसी के नेक नहीं
आवश्यकता महत्ती है अब कसरत की और ध्यान की
सबसे ज़्यादा जग को अब जरूरत है मनोविज्ञान की 
खिलता हुआ फूल था मानों एकदम गर्दन पटक गया
दुष्टों में विषाणु इतना वह फंदे से लटक गया
बाद में मतलब भी क्या जो साजिश का बर्तन फूट गया
काल्पनिक मुस्कान रह गई भाईचारा टूट गया
मानव का जीवन लेकर भी मानवता सब भूल गए
जीवन ऐसी बाधा क्या जो वो फांसी से झूल गए 

Monday, 8 June 2020

पश्चिम का अंधानुकरण : भारत पर संकट


नमस्कार मित्रों
आज विश्व की श्रेष्ठतम मान-मर्यादा युक्त संस्कृति वाला भारत देश पाश्चात्य का अंधानुकरण करके नैतिक रूप से आगे नहीं बढ़ रहा है इस पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -


संस्कृति और सभ्यता को कितना जल्दी भुला दिया
पाश्चात्य के चमचों ने भारत को नींद में सुला दिया
भारत के मूल्यों को तो वह अंधविश्वास बताती रही
पश्चिम की ये दीमक जो भारत दिन-दिन खाती रही
पश्चिम में दिखावट की जो संक्रामक खांसी है
मानों या ना मानों उनका जीवन भोग-विलासी है
खूब हुआ ये खेल तमाशा,अब भारत से बन्द करो
'काम'की कहानी पढ़ने वालों याद विवेकानन्द करो
अंग्रेजों ने मारा था जो कितना गहरा घाव था
भारत के आदिमानव में कितना कुछ सद्भाव था
मानसिक गुलामों तुमने पहना कैसा भेष है
यहां देशप्रेमी बनना होगा यह भगत सिंह का देश है
घर की मुर्गी दाल बराबर समझकर तुमने छोड़ दिया
मिली ज़रा सी आजादी अपनों से नाता तोड़ दिया
पढ़े लिखे गंवारों से तो बेहतर ही अशिक्षा थी
भूखे को भोजन मिलता था,भिक्षुक को मिलती भिक्षा थी
औरों को उपदेश दिया चलते ना अपने पैरों पर
अपनों से नफरत कितनी,विश्वास किया है गैरों पर
पाश्चात्य का भूत ये तो पूरी तरह से छाया है
भारत के मस्तक पर ये घोर संकट आया है
क्रिकेट के मैदान में फुटबॅाल की रीति कैसे चले
भारत शिक्षा में फिर पश्चिम की नीति कैसे चले


स्वदेशी अपनाइये


जय हिंद जय भारत

Saturday, 6 June 2020

माफ करो नेताजी,उज्ज्वल वस्त्र भी शर्मिंदा हैं .....


नमस्कार मित्रों
आप सभी के कुशल होने की उम्मीद के साथ आज चुनावों से पहले के समय चलने वाली आरोप-प्रत्यारोप की श्रृंखला पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -

पांच साल अब बीत गए जो हुआ ये प्रत्यावर्तन है
एक दूसरे की बातों का जुबान से ये कर्तन है
कहते हैं हम हरीशचन्द्र,हम ही तो सत्यवान हुए
सत्ता के गलियारों के अब सक्रिय जो कान हुए
शासक और शोषक सब गिरगिट से रंग बदलने लगे
नेताजी के चमचे भी अब घर से निकलकर चलने लगे
यूँ करते हैं याचना कि देश बचाना चाहते हैं
हम सेवक,जनता ईश्वर,बैकुंठ में जाना चाहते हैं
समझदार तो समझ गया कि मिथ्याभाषी जिंदा है
माफ करो नेताजी,उज्ज्वल वस्त्र भी शर्मिंदा हैं
कोयल सी कोमलता से ये ज़हर के जैसा बोलते
सदगुण की प्रशंसा नहीं और पोल हमेशा खोलते
मोल मतों का करके सबने पल्लू झाड़ लिया है अब
पांच साल अपना घर भर लिया,छप्पर फाड़ दिया है अब
फेसबुक के योद्धा भी अब उतर समर में आये हैं
मुफ्त की ठंडी चाय (शराब) ने वाणी के तीर चलाए हैं
गरीब बाप के पैसों का बेटा-बेटी ही काल बने
शिक्षा-दीक्षा को भूलकर नेताजी के दलाल बने
जनता को भड़काकर फिर आपस में उड़ाते खिल्ली  हैं
यूँ लड़ते हैं बार-बार जैसे लड़ते कुत्ते बिल्ली हैं
सच तो यह है लूटपाट के अलग-अलग इरादे हैं
कर्णधार इस देश के क्यों करते झूठे वादे हैं ?

आत्महत्या :एक अनसुलझी पहेली

 इस सदी में जिस प्रकार इस शब्द में अपना विशाल रूप धारण किया है वह दुनिया को सकते में डाल सकता हैं।
आत्महत्या के बढ़ते मामलों ने  सबकों  सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर आत्महत्या  के मामलों में क्यों बढ़ोतरी हो रही हैं.
आत्महत्या एक मनचाही मौत नहीं है बल्कि अनचाही मौत है फिर भी ना जाने क्यों संपूर्ण विश्व में 8 से 1000000 लोग हर साल आत्महत्या करते हैं ,एनसीआरबी के आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो देश में हर 55 मिनट में पांच व्यक्ति आत्महत्या करते हैं यानी हर 11 मिनट में एक व्यक्ति फंदे से लटककर ,जहर पीकर या फिर कूदकर अपनी जीवन लीला हमेशा के लिए समाप्त कर देता है ,भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले युवा होते हैं जो 15 से 29 वर्ष की आयु सीमा में होते हैं इनमें शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े युवा ज्यादा देखने को मिलते हैं ,जो कैरियर संबंधि  विषय से संबंधित बातों से चिंतित होते हैं, मानते हैं कि विद्यार्थी जीवन में हम सबने इन परिस्थितियों का सामना किया है पर आत्महत्या ही इस समस्या का निदान है यह कहां तक सही है .
  • विद्यार्थी जीवन के अलावा अब किसान भी  आत्महत्या करने लगे हैं जो सरकार और समाज की चिंता को गंभीर स्तर तक ले जाने का कार्य करती है, इन दोनों के अलावा वर्तमान में सरकारी अधिकारी भी इस समस्या से त्रस्त हैं इस कारण सरकारी तंत्र में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं इसके पीछे राजनीतिक दबाव को अधिक  माना गया है,राजनीतिक दबाव ने आत्महत्या बढ़ाने का जो कार्य किया है इससे जनता के मन में राजनेताओं की छवि ओर ज्यादा खराब हुई है,आत्महत्या इतना आसान काम भी नहीं होता जितना हम समाचार पत्रों में पढ़ने के बाद सोच कर भूल जाते हैं इससे पूर्व व्यक्ति कई बार टूटता है फिर भी निखरने का प्रयास करने के बाद भी सही रूप में निखर नहीं पाता है वह अवसाद से भर जाता है,अपनों की याद में उसका गला सूख जाता है उसकी कलम कांपते हाथों का साथ धीरे -धीरे छोड़ती जाती है, परिवार के प्यार को वह शब्दों में उकेर देता है खुद के जाने के बाद परिवार का क्या होगा इस प्रकार के विचार भी उसे कुछ समय के लिए आत्महत्या करने से रोक जरूर देते हैं पर अपने काम पर लगे कंलको को वह जब अपनी बेदाग छवि से जोड़ता है तो उसके हाथ रस्सी के साथ पंखों की ओर बढ़ जाते हैं, सफेद वस्त्र धारी राजनेताओं के काले दिल को वही समझ पाता है फांसी के फंदे और उसके गले के मध्य  की दूरी लगभग समाप्त होने पर होती हैं फिर वो ना चाहते हुए  भी फांसी  को अपना बना लेता है, कुछ देर बाद उसके गले की नस टूट जाती है गालों पर आंसुओं की कुछ बूंदें उसे सच्ची श्रद्धांजलि देती है गले की रस्सी उसकी मौत के टूट  जाती है जिन नेताओं की वजह से उन्होंने प्राण गवाहे  वही नेता उनके मृत शरीर को सुख की श्रदाँजलि  देते हैं, हमें समय के साथ -साथ सोच बदलकर भ्रष्ट राजनीति से अपना विश्वास हटाना होगा नहीं तो जनसेवा के अधिकारियों का बलिदान व्यर्थ जाऊँगा.

           रामजीवन विश्नोई 

Thursday, 4 June 2020

दहेज़ प्रथा:समाज के मस्तक पर कलंक (The dowry system: A stigma on the head of society)

प्यारे दोस्तों
आज समाज में एक बेटी के पिता की समस्याएं दहेज़ रूपी दैत्य ने बहुत बड़ा दी हैं,इस पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है -


इंसान नहीं हो सकता पति जो पत्नी का हत्यारा है
जिन्दा होती तो हक मांगती,इसलिए तो मारा है
बेटा बन गया चपरासी जो माँ-बाप भी फूल गए
पाणिग्रहण के वचन दुल्हा जी छ: महीने में भूल गए
आज फिर गरीब बेचारा पकड़ कनपटी रोया है
मुश्किल समझें उस बाप की जिसने एक बेटी खोया है
सोच रहा वह मन ही मन मैं भी अमीर ज़रा होता
तो इस ह्रदय का टूकड़ा ना लाचार मरा होता
पाप के सागर भर आए,पुण्य के स्थल सूखे हैं
बच्चों की परवाह कौन करें अब कितने दिन से भूखे हैं
सास-ससुर ने मिलकर ये तैयार किया मसौदा  था
समझ नहीं आया अब तक यह रिश्ता था या सौदा था
दुष्टों की मौसी कौन हुई,इनका तो कोई खास नहीं
धन के लोलुप लोगों को अब मूल्यों का आभास नहीं
आलस्य में रहने वालों,नमक-मिर्ची भी कैसे दे
तुम्हारा फ़रमान तो यह है ताउम्र ही पैसे दे
इज्जत तो नहीं लुट जाती,थोड़ा सा शीश झुकाने में
जमीन बिकी उस बाप की,शादी का कर्ज़ चुकाने में
सुनकर ऐसी घटनाएं,यह जीवन लगता फीका है
जल्दी से मिटाओ यह मस्तक पर काला टीका है।


जागो युवा जागो
जय हिंद,जय भारत,जय हिंद की सेना

सेना पर राजनीति क्यों (why the politics on our military) ?


नमस्कार ब्लॉगर परिवार
हमारी सेना हमारा गौरव है,लेकिन हमारे देश के कुछ (सभी कदापि नहीं) राजनेताओं के मन में वीरों के शौर्य पर भी तुच्छ स्तरीय राजनीति करने की महत्ती इच्छा हिलोरें मारती है। इंसानों की स्वार्थवादिता की इस पराकाष्ठा पर हमारी स्वरचित कविता प्रस्तुत है-

धर्म नहीं है उसका कोई,ना ही कोई जाति है
रक्षा के प्रयोजन से वह सदा ही आगे आती है
अखण्ड है भारत की ज्योति,जग को यही बताती है
भारत की सेना ने जो सदा ही तानी छाती है
कश्मीरी घाटी में अब ये गद्दारी का कहर क्यों
वीरों की शहादत पर भी ये राजनीति का ज़हर क्यों
ना बोलना आए तो इस जिव्हा को सहेजे फिर
राजनीति करने वाले भी अपने बेटों को भेजें फिर
चिराग किसी का चला जाए तो अपनी रोटी सेंकते
राजनीतिक स्वार्थ हेतु पत्थर बनकर देखते
सेना की शक्ति पर प्रश्न चिह्न लगाना सही नहीं
राजनीति का ऐसा स्तर देखा हमने कहीं नहीं
कोयले की दलाली में जो हाथ इनके काले हैं
सेना से सबूत मांगते खुद ने किये घोटाले हैं
पाकिस्तान की होती पिटाई,इनके दिल क्यों घबराते
जनता को बेवकूफ बनाकर झूठ बोलने का खाते
पत्थरबाजों की साजिश पर अब तक गुंगे बने हुए
औरों क्या शिक्षा देंगे,खुद कीचड़ में सने हुए
तीन सौ सत्तर चली गई तो इनको इतना कष्ट हुआ
आंखों में धूल झोंकने का वो तंत्र कितना नष्ट हुआ


जय हिंद,जय भारत

Wednesday, 3 June 2020

संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता



संस्कृत भाषा भारत में वैदिक काल  से ही अपनी जड़ें रखती है और यह सबसे पुरानी भाषा है। अरबों के आक्रमण से पहले, संस्कृत भारतीय उपमहाद्वीप की राष्ट्रीय भाषा थी। इसे सभी भाषाओं में सबसे व्यवस्थित और तकनीकी भाषा भी माना जाता है। इसे सभी भाषाओं की जननी के रूप में जाना जाता है। संस्कृत भाषा में किताबें सैकड़ों साल पहले भारत के उच्च शिक्षित व्यक्तियों द्वारा लिखी गई हैं और अब उन पर पढ़ा और शोध किया जा रहा है।

यहाँ संस्कृत से जुड़े कुछ तथ्य आपके समक्ष रखे जा रहें है जो संस्कृत भाषा की प्राचीनता और वैज्ञानिकता को आपके प्रदर्शित करते है-











धन्यवाद 🙏