Monday, 28 January 2019

नेपोलियन के बुलंद होसलों की कहानी- A MOTIVATIONAL STORY



नेपोलियन अक्सर जोखिम (risky) भरे काम किया करते थे। एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढे। सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करने असंभव था। उसकी सेना मे अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। फिर भी उसने अपनी सेना को चढ़ाई का आदेश दिया। पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोले की क्यो मरना चाहते हो। यहा जितने भी लोग आये है वो मुह की खाकर यही रहे गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापिस चले जाओ। उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हो गया और झट से हीरो का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मै जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना।
उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए। ‘ जो करने या मरने ‘ और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।
आज सचिन तेंदुलकर (sachin tendulkar) को इसलिए क्रिकेट (cricket) का भगवान कहा जाता है क्योकि उन्होने जरूरत के समय ही अपना शानदार खेल दिखाया और भारतीय टीम को मुसीबतों से उभारा। ऐसा नहीं है कि यह मुसीबते हम जैसे लोगो के सामने ही आती है, भगवान राम के सामने भी मुसीबते आयी है। विवाह के बाद, वनवास की मुसीबत। उन्होने सभी मुसीबतों का सामना आदर्श तरीके से किया। तभी वो मर्यादा पुरषोतम कहलाये जाते है। मुसीबते ही हमें आदर्श बनाती है।

अंत मे एक बात हमेशा याद रखिये;
जिंदगी में मुसीबते चाय के कप में जमी मलाई की तरह है,
और कामयाब वो लोग हैं जिन्हे फूँक मार के मलाई को साइड कर चाय पीना आता है।
         जय हिंद, भारत माता की जय

Saturday, 26 January 2019

आंतरिक मूल्यांकन और बाह्य मूल्यांकन का तुलनात्मक परिचय

नमस्कार ब्लॉगर परिवार
Special request:-
कृपया हमारे ब्लॉग पर रोजाना प्रकाशित हो रही अन्य रचनाओं को भी पढें,मैं आपका आभारी हूँ।

आंतरिक मूल्यांकन
1- इसमें मूल्यांकनकर्ता शिक्षण प्रक्रिया से संबंधित व्यक्ति ही होता है।
2- यह अपेक्षाकृत सस्ती प्रक्रिया है।
3- यह छात्र की वास्तविकता से परिचय करवाता है अर्थात् इसकी वैधता अधिक होती है यह संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया से वास्तविक रूप में जुड़ा रहता है।
4- यह छात्रों के पूरे शैक्षिक सत्र में उपस्थिति, उसका निष्पादन ,आचरण, पाठ्यक्रम संबंधी क्रियाकलाप ,रुचि तथा लग्न आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है।
5- इसमें पक्षपात व व्यक्तिगत पहचान का भाव निहित होता है।
6- यह वस्तुनिष्ठ की बजाय व्यक्तिनिष्ठ अधिक होता है।
7- यह सतत् तथा व्यापक होता है।
8- यह पूर्व निर्धारित समय सारणी के बिना भी आयोजित किया जा सकता है।

बाह्य मूल्यांकन
1- इस में मूल्यांकनकर्ता   बाहरी व्यक्ति होता है जो शिक्षण प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं होता है।
2- यह अपेक्षाकृत खर्चीली प्रक्रिया है।
3- यह छात्र की वास्तविकता से अपेक्षाकृत कम संबंध रखता है क्योंकि यह एक निश्चित समय अवधि में लिए गए परीक्षण से संबंधित होता है । संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया से इसका संबंध कमजोर जान पड़ता है।
4- यह  निश्चित समय अवधि में कुछेक प्रश्न पत्रों के माध्यम से ली गई परीक्षाओं के द्वारा छात्रों का आकलन करता है।
5- इसमें पक्षपात व व्यक्तिगत पहचान की अपेक्षाकृत  क्षीण संभावना पाई जाती है।
6- इसमें अपेक्षाकृत अधिक वस्तुनिष्ठता निहित होती है।
7- इसमें सतत् व व्यापक होने के गुण का अभाव पाया जाता है।
8- यह पूर्व निर्धारित समय सारणी के अनुसार ही आयोजित किया जाता है।

Friday, 25 January 2019

आधुनिक युग में भारत की प्रमुख चुनौतियां (The challenges for India in modern age)

नमस्कार ब्लागर परिवार

सांप्रदायिकता की आग में वतन यह जल रहा है
भ्रष्टाचार का अंधेरा हाथ यह मल रहा है।
कोई हिंदू की कहता हैं ,कोई मुस्लिम की गाता हैं
सांप्रदायिकता का यह चक्रव्यूह मुझे नहीं भाता है।
कोई सवर्ण कह रहा है, कोई दलित की अलाप रहा हैं
ऊंच-नीच का यह हो कैसा प्रलाप रहा है।
अधिकारियों को लोग चाँदी के जूते मार रहे हैं
माँ भारती पर ये हो कैसे प्रहार रहे हैं।
राजा हो या रंक सबके ध्येय में पैसा है
भाई भाई को मार रहा है यह प्रलोभन कैसा है?
बच्चों को झोंक दिया कारखानों में
काला रंग भर दिया उनके अरमानों में।
मां भारती के प्रति अब वो प्यार नहीं रहा
या यूं कहो कि देश प्रेम का अब वो त्योहार नहीं रहा।
जनसंख्या की वृद्धि में मानों प्रकाश की चाल है
आज माँ भारती के प्रांगण का हाल बेहाल है।
धर्मसंकट का युग आज आ गया है
लगता है फिर से दुर्योधन राज आ गया है।
राजनेता देश की प्रतिष्ठा से जुआ खेल रहे हैं
गरीब बेचारे पापड़ बेल रहे हैं।
राम जैसे  राजा नहीं रहे, हनुमान जैसे कर्मचारी नहीं रहे
राजा विक्रम जैसे  न्यायाधीश  नहीं रहे, भीष्म जैसे ब्रह्मचारी नहीं रहे।
सैनिक बेचारे कश्मीर में ठिठुर रहे हैं
लेकिन हम भारतीय तो आपस में ही लड़कर मर रहे हैं।
फूट डालकर राज करने वाली आज की राजनीति है
यह सब पंक्तियां माँ भारती की आपबीती है।



यह मेरी मौलिक रचना हैं।
धन्यवाद
भवदीय
राजेन्द्र

Monday, 21 January 2019

Mock UNO, शिक्षा के क्षेत्र में एक नया प्रयोग, परिष्कार

नमस्कार ब्लागर परिवार
स्थान-परिष्कार कॉलेज आफ ग्लोबल एक्सीलेंस                   जयपुर,राजस्थान(भारत)
तिथि-21जनवरी 2019
कार्यक्रम का नाम-Mock UNO का आयोजन
आज परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस जयपुर में मॉक यूएनओ का आयोजन किया गया ।यह आयोजन राजनीतिक विज्ञान विभाग परिष्कार कॉलेज की ओर से किया गया। इसमें बी ए प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष के राजनीतिक विज्ञान के छात्रों ने तथा एकीकृत B.Ed प्रथम वर्ष के छात्रों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को यूएनओ की कार्यशैली से परिचित करवाना था। इस कार्यक्रम की में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ राजेश शर्मा जी (राजस्थान विश्वविद्यालय) ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।इस स्वर्णिम कार्यक्रम के अवसर पर परिष्कार कॉलेज के निदेशक डॉ राघव प्रकाश जी ने विद्यार्थियों से अपील की कि वह अपने आप को किसी गांव राज्य या भारत का नागरिक न मानकर अपने अंदर विश्व नागरिकता का विकास करें ।क्योंकि प्राचीन भारतीय संस्कृति का  वक्तव्य है "वसुधैव कुटुंबकम"  अर्था थे संपूर्ण पृथ्वी ही हमारा परिवार है ।उसमें न केवल मानव अपितु संपूर्ण प्राणी जीवन और वनस्पति जगत शामिल है ।इस कार्यक्रम में परिष्कार कॉलेज के छात्रों ने  लगभग 60 विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व करके वर्तमान में अपना कहर बरपा रही निम्न  पर्यावरणीय समस्याओं पर चर्चा की-
1- मरुस्थलीकरण
2- हरित गृह प्रभाव
3- संकटग्रस्त प्रजातियाँ
4- शस्त्रीकरण
5- समुद्री जल प्रदूषण
6-  वनों की कटाई
7- ओजोन क्षय
8- जैव विविधता
9- अम्लीय वर्षा
10- ग्लेशियरों का पिघलना
11- पेयजल समस्या
12- वैश्विक उष्णन
13- कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग

 इन समस्याओं पर विद्यार्थियों द्वारा वैश्विक दृष्टिकोण से चर्चा की गई ।तथा मैंने इस चर्चा के माध्यम से इन समस्याओं के निदान के बारे में जो कुछ निष्कर्ष निकाला वह निम्न प्रकार है-

पर्यावरणीय समस्याएं एक वैश्विक मुद्दा है जिनके लिए न केवल एक विशिष्ट राष्ट्र या समाज का विशिष्ट तबका जिम्मेवार है अपितु इनके लिए संपूर्ण मानवीय समुदाय जिम्मेवार है ।पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान विभिन्न राष्ट्रों द्वारा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप द्वारा कदापि संभव नहीं हो सकता । इसके लिए सभी को अपनी भूमिका का कर्तव्यनिष्ठता
 पूर्वक  निर्वहन करना होगा पर्यावरणीय समस्याओं का शीघ्र अतिशीघ्र समाधान निकालना अत्यावश्यक है। अन्यथा मानवता काल के गाल में समा सकती है। हमको पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए एकीकृत मिशन भाव से काम करना होगा क्योंकि कभी भी अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है ।लेकिन एक व्यक्ति जो दूसरों से करवाना चाहता है उसकी शुरुआत वह खुद करें यह कहीं अधिक उपयुक्त वक्तव्य हैं।इनके समाधान के लिए विश्वस्तरीय  कार्यक्रम चलाए जावे तथा समूचा विश्व पृथ्वी को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हो



एक विद्यार्थी के रूप में इस कार्यक्रम में भाग लेकर मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूं ऐसे कार्यक्रम विश्वविद्यालय स्तर पर व्यापक रूप से चलाए जाने चाहिए इससे शिक्षा का सार्वभौमीकरण होता है तथा विद्यार्थी किताबी ज्ञान को अपनी वास्तविक जिंदगी से जोड़ पाने में संभव होते हैं वास्तव में यह परिष्कार कॉलेज का सराहनीय प्रयास है

धन्यवाद
भवदीय
राजेन्द्र




Sunday, 20 January 2019

कभी तो सोच के देखो। Motivational Story

www.anilvishnoisanchorebloggerstory.in

एक व्यक्ति का घर शहर से दूर एक छोटे से गाँव में था। उसके घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। लेकिन फिर भी वो खुश नहीं रहता था। उसे लगता था की शहर की जिंदगी अच्छी है। इसलिए एक दिन उसने गाँव के घर को बेचकर शहर में घर लेने का फैसला किया। अगले ही दिन उसने शहर से अपने दोस्तों को बुलाया। जो रियल स्टेट में काम करता था।


उसने अपने दोस्त  से कहा – तुम मेरा ये गाँव का घर बिकवा दो, और मुझे शहर में एक अच्छा सा घर दिलवा दो। उसके दोस्त ने घर को देखा और कहा – तुम्हारा घर इतना सुन्दर है। तुम इसे क्यों बेचना चाहते हो। अगर तुम्हे पैसों की जरुरत है तो मैं तुम्हे कुछ पैसे से सकता हूँ। उस व्यक्ति ने कहा – नहीं नहीं मुझे पैसों की जरुरत नहीं है।
मैं इस घर को इसलिए बेचना चाहता हूँ। क्योकि ये घर गाँव से बहुत दूर है। यहां पर शहर की तरह पक्की सड़के भी नहीं है। यहाँ के रास्ते बहुत ही ऊबड़ खाबड़ है। यहाँ पर बहुत सारे पेड़ पौधे है। जब हवा चलती है तो पुरे घर में पत्ते फैल जाते है। ये गाँव पहाड़ो से घिरा हुआ है। अब तुम ही बताओ मैं शहर क्यों न जाऊ।
उसके दोस्त ने कहा – ठीक है। अगर तूने शहर जाने का सोच ही लिया है। तो में जल्दी ही तुम्हारे इस घर को बिकवा दूँगा। अगले ही दिन सुबह के समय वह व्यक्ति अखबार पढ़ रहा था। उसने अखबार में एक घर का विज्ञापन देखा। विज्ञापन में लिखा था।
शहर की भीड़ भाड़ से दूर, पहाड़ियों से घिरा हुआ, हरियाली से भरा हुआ, ताजी हवा युक्त एक सूंदर घर में बसाये अपने सपनो का घर। घर खरीदने के लिए निचे दिए गए नंबर पर संपर्क करे। उस व्यक्ति को विज्ञापन देखते ही घर पसंद आ गया। उसने उस घर को खरीदने का मन बनाया।
उसने जब उस नंबर पर फोन किया तो वो हैरान रह गया। क्योकि ये विज्ञापन उसी के घर का था। यह जानकार वह ख़ुशी से झूम उठा। उसने अपने दोस्त को फोन लगाया और कहा – मैं तो पहले से ही अपने पसंद के घर में रह रहा हूँ। इसलिए तुम मेरा घर किसी को मत बेचना। में यही रहुँगा

Moral--- दोस्तों इस Motivational Story से मैं आपको ये समझाना चाहता हूँ। की अधिकतर लोगों को अपने जीवन से शिकायत होती है। वे सोचते है की उनके जीवन में दुःख ही दुःख भरे पड़े है। ऐसे लोगों को दूसरे लोगों की जिंदगी बहुत ही अच्छी लगती है। लेकिन आप ऐसा कभी भी मत करना। कुछ भी करने से पहले एक बार अपनी जिंदगी को दोस्तो की नजरों से जरूर देखना। अगर आपने कभी भी अपनी जिंदगी को दूसरों की नजरों से देखा तो आप पाएंगे की आपकी जिंदगी दूसरों से बहुत ही अच्छी है। (कभी तो सोच के देखो। 

मैं आपका अपना अनिल बैनीवाल साँचोर

Friday, 18 January 2019

Motivational Quotes

हर छोटा बदलाव बड़ी कामयाबी का हिस्सा होता है।

बेरोजगारों की भीड़ वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली समस्याएं और कमियां

 नमस्कार 
   Blogger की दुनिया का अभिनंदन करता हूँ।

21वीं सदी में भले ही हम अपनी वैज्ञानिक प्रगति का हवाला देकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हों लेकिन आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली हमारे इस द्वम्भ प्रदर्शन की झूठी शान पर प्रश्न चिह्न लगाती है ।
आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली शिक्षित बेरोजगार तैयार कर रही है। नैतिक शिक्षा की शिक्षा का तो माना आज की भारतीय  शिक्षा से नाता ही नहीं है।आज देश में ऊँचे पदों पर आसीन अफसर भी रिश्वत प्रेमी बन चुके हैं।यह दर्शाता है कि शिक्षा प्रणाली की जड़ें अवश्य ही असुरक्षित हैं। तभी तो आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली का यह वृक्ष प्रतिस्पर्धा की आँधी  को झेलने में असमर्थ है।
आज के विद्यार्थी विषयवस्तु की केवल सैद्धांतिक समझ ही रखते हैं बाकी प्रायोगिक परीक्षाओं से उनका नाता अपेक्षाकृत कमजोर जान पड़ता है।
आज की शिक्षा प्रणाली प्रमाण पत्र प्राप्त करने का साधन मात्र बनकर रह गई है। आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली का गंतव्य सरकारी नौकरी प्राप्त करने का साधन मात्र बनकर रह गया है। आज भारत के शिक्षित युवक भी बेरोजगारों की भेड़चाल में शामिल होकर खाक छानते फिरते हैं।
वे अपराधियों की पंक्ति में खड़े होकर एक दूसरे की टाँग खींचते हैं।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की कमियाँ
1-भारत में शिक्षा विभाग तो हैं लेकिन वे सिर्फ परीक्षाओं के आयोजन पर ही ध्यान देते हैं। समय समय पर शिक्षा का विश्लेषण नहीं किया जाता है।

2-जब पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है तो इसमें कुछ चुनिंदा लोग ही शामिल होते हैं। यहाँ तक कि देशभर में शिक्षा के संवाहकों का काम करने वाले शिक्षकों को भी पाठ्यक्रम निर्माण में शामिल मुश्किल से ही किया जाता है।

3-हमारा पाठ्यक्रम शिक्षा के सैद्धांतिक पक्ष पर प्रायोगिक पक्ष की अपेक्षा अधिक प्रकाश डालता है।

4-हमारे अधिकांश शिक्षक विशेषतः राजकीय शिक्षण संस्थानों के शिक्षक अपनी भूमिका का निर्वहन कर्तव्यनिष्ठता पूर्वक नहीं करते।

5-शिक्षा को व्यावसायिक रूप दे दिया गया है।

    Blogger की दुनिया का धन्यवाद
     
     जय हिन्द जय भारत

Thursday, 17 January 2019

कुंभ मेला


कुंभ मेला भारत में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा मेला है और इसका अपना ही धार्मिक महत्व है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लोग इस मेले में शामिल होते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है. कुंभ मेले का आयोजन 4 तीर्थ स्थलों में होता है. ये स्थान हैं: उत्तराखंड में गंगा नदी पर हरिद्वार, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी पर उज्जैन, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी पर नासिक और उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज ।
कुंभ मेला दो शब्दों कुंभ और मेला से बना है. कुंभ नाम अमृत के अमर पात्र या कलश से लिया गया है जिसे देवता और राक्षसों ने प्राचीन वैदिक शास्त्रों में वर्णित पुराणों के रूप में वर्णित किया था. मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सभा' या 'मिलना'.
कुंभ मेलों के प्रकार
महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है.
पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता है.
अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है यानी हरिद्वार और प्रयागराज.

चार शहरों में से प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन, प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला सबसे पुराना है ।


Law of attraction vs Law of karma:- The secret

नमस्कार,
आजकल जब भी आप किसी भी व्यक्ति से law of attraction या फिर The secret book के बारे में सुनते या यह सुनते हैं कि इसके द्वारा आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं तो आपके जहन में कई प्रश्न आते होंगे जैसे कि -
क्या इसके द्वारा हम सच में जो चाहते है बो प्राप्त कर सकते है ।
और यदि यह सत्य है , कार्य करता है तो इसे किस प्रकार से उपयोग में ले।
या फिर आखिर ये law of attraction है क्या ।
तो आज का ब्लॉग आपके लिए ही है।
तो चलिए शुरू करते हैं।
What is the law of attraction :-
Rhonda Byrne नामक लेखक अपनी पुस्तक The secret में एक ऐसे रहस्य के बारे में दावा करते है जिसके द्वारा हम जो चाहते हैं वो प्राप्त कर सकते है बस इसके लिए हमें 3 चरणों का अनुसरण करना पड़ेगा ।
1 - Ask :- माँगो तुम जो प्राप्त करना चाहते हो कुदरत तुम्हे सब देगी।
2 - Belive :- विश्वास रखो जो तुमने माँगा है बो तुम्हें मिल ही जाएगा और उसके बारे में सोचते रहो की जैसे तुम्हे बो मिल ही गया है।
उदहारण के लिए तुम्हे ख़ुद का एक घर चाहिए । तो यह सोचते रहो की तुम्हे घर मिल गया है ओर तुमने उसमे रहना भी चालू कर दिया है।
law of attraction को मानने वाले विद्वानों का मानना है कि हमारे मस्तिष्क से सकारात्मक किरणे (positive Waves) निकलती रहतीं हैं और बैसी ही चीज़ों को आकर्षित करती हैं।
3 - Achieve:-  और जब आप इन दोंनो चरणों को पूरा कर लेंगे तो बो चीज़ तुम्हे मिल ही जाएगी।
■◆●●◆■
अब सबसे बड़ा सवाल आता है कि क्या यह सच में काम करता है।
यदि हम इसके कार्य करने या ना करने के बारे में बात करे तो हम एक असमंजस की स्थिती में आ खड़े होते हैं।
मेरे इस लॉ के बारे में कुछ व्यक्तिगत उदाहरणों के बारे बताऊ तो एक उदाहरण में आपके सामने रखता हूँ।
:- जब में 12वीं कक्षा में था तब हमारे हिंदी  के शिक्षक की दहशत पूरे विद्यालय में थी एक दिन की बात है उन्होंने हामिद का चिमटा नामक एक पाठ पूरा पढ़ा दिया और बोला की यदि किसी के कुछ समझ नही आया हो तो बता दो। तो पता नही मेरे एक दोस्त निखिल के मस्तिष्क ने ना जाने कौनसी positive Waves पकड़ी और हाथ ऊपर करके पूछा की sir ये हामिद कौन है।इसको सुनते ही sir ने बेचारे निखिल की जो क्लास ली बो उसके लिए नाकाबिले बर्दाश्त थी। और उसके मन में एक विचार आया कि sir अपनी कुर्शी से गिर जाए और उनकी टांग टूट जाये और बस वह पूरे दिन इसके बारे में  सोच सोच कर मन ही मन हंसता रहता यदि इस समय बात करे तो बो law of attraction को पूरी तरह से उपयोग में ले रहा था और एक दिन ऐसा आया कि खिड़की की तरफ से जोर से हवा चलना शुरू हो गयी सारे पेड़ जोर जोर से हिलने लग गए पर sir की कुर्शी थोड़ी सी भी नहीं हिली ।
अब निखिल ने सोचा कि ये कौनसी शक्ति है जो मेरी law of attraction की शक्ति से बड़ी है और उसने यह पूरी बात मुझे बताई तो हम सोचने लगे कि कौनसी शक्ति है ये और सोचते सोचते पता चला कि यह नारीशक्ति है अर्थात यह sir की wife की law of attraction की बो शक्ति है जो बो सालो से करवा चौथ के रूप में उपयोग में ले रही है।
तो हमने फिर सोचा की ये बस निखिल और मेरे law of attraction के बल पर नहीं होगा इसके लिए ज्यादा लोगो की जरूरत होगी और हमने इसमे और जो निखिल जैसे विचार रखते थे सबको लिया और श्रीमद्भागवत गीता में लिखे law of karma कर्म करो फल की चिंता मत करो को भी साथ में लिया और sir की कुर्शी की एक टांग तोड़ दी और उसे इस प्रकार रख दिया की बो टूटी हुई ना लगे और sir के आने का इंतजार करने लग गए और जैसे ही sir बैठने वाले थे उस्से पहले ही कुर्शी गिर गई और फिर sir ने निखिल और हम सबकी जो हालात की बो ........छोड़ो पुराने जख्मो को क्यों कुरेदें 
■उस दिन हमें सीख मिली की मंशा ठीक ना हो तो  कोई लॉ कार्य नही करता ।
◆◆यदि हम एक छोटे से उदाहरण को ओर ले कि यदि किसी भी बच्चे को कोई खिलौना चाहिए और उसके पिताजी उसके लिए मना करदे ओर बो बस इसके बारे मे ही सोचता रहे तो क्या उस्से बो खिलौना मिल जाएगा या वो अपनी पढ़ाई में भी मन नही लगा पाएगा ओर इसी बात की चिंता में रहेगा कि बो खिलौना  मिल जाये।
Law of karma vs law of attraction:-
यदि लॉ ऑफ कर्मा और लॉ ऑफ अट्रेक्शन दोनो मैं तुलना करें तो दोनों एक दूसरे के विपरीत है यदि हम लॉ ऑफ कर्मा की बात करे तो श्री कृष्ण ने कहा है कि :-
कर्म करो और फल की चिंता मत करो।
और लॉ ऑफ अट्रेक्शन कहता है कि:-
फल की चिंता करो और उसकी ही कल्पना में खोये रहो।
■अब बात करे तो की इन दोनों में से कौनसा लॉ कार्य करता है तो मेरे विचार में ये दोनों ही अपूर्ण हैं।
◆क्योंकि जिन परिस्तिथियों में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कर्म की बात कही उस समय बस कर्म प्रधान था क्योंकि बो कुरुक्षेत्र में अपने की स्वजनों से द्वंद करने जा रहे थे परंतु आज के प्रतियोगी युग मैं फल की चिंता ना करना मूर्खता होगी क्योंकि जब तक फल के बारे में नही चिंता करेंगे तब तक कैसे पता  चलेगा की हम जो कार्य कर रहे है बो सही दिशा में कर रहे है या इसमे सुधार की जरूरत है।
◆और लॉ ऑफ अट्रेक्शन की बात कर तो यह सिर्फ फल के निरर्थक सपनो मैं रहने की बात करता है यदि इसको उपयोग में लेके सफल भी होते है तो ये हमारी महत्वाकांक्षाओं को इतना बढ़ा देगा कि हमने जो प्राप्त उसके छीनने का डर और जो नही है उसके प्राप्त करने की चिंता में लाके फसा देगा।
यदि आप सच में सफलता चाहते हो तो वही करो जो आपका दिल चाहता है और उसे प्राप्त करने के लिये अपना शत प्रतिशत देदो ।
धन्यवाद ☺️
Anandit भव:

हिंदू मुस्लिम

अजीब महलूक है यारों,
जिसे हम इंसान कहते हैं।
आज एक बार फिर से
 हम अपने दिल का सच्चा बयान कहते हैं
 ना फर्क है किसी के लहू में,
ना ही हम अलग है एक दूसरे से मगर बस फर्क इतना है कि किसी को लोग हिंदू तो
किसी को मुसलमान कहते हैं।
जाती पाती के नाम पर इंसान ने बेच दिया जहां को
कुछ इसे कृपा, कुछ अल्लाह का फरमान कहते हैं।
हम तो सोच समझ कर भी नहीं समझ पाते यारों
कुछ ऐसी बातें यह नादान परिंदे बेजुबान कहते हैं।
 एक ही रिवाज,एक ही रस्म
बस कुछ अंदाजे बदल जाते हैं वरना है तो वहीं मेरे यारों
कुछ उसे उपवास तो कुछ उसे रमजान कहते हैं।
कुछ जाते हैं मंदिरों में,
कुछ मस्जिदों के रास्ते अपनाते हैं
पर मकसद तो सबका एक ही है जिसे लोग खुशी से फरियाद करते हैं।
वह एक ही हस्ती है जिसने ये जहां बनाया है
कुछ उसे सजदे में अल्लाह तो कुछ उसे झुककर भगवान कहते हैं
बस एक ही मंजिल है सबकी
बस लोगों के तराने बदलते रहते हैं
कुछ उसी जगह को स्वर्ग तो
 कुछ उसी जगह को जन्नत के दरबार कहते हैं।
 ना ही फर्क है तिनके का भी,
ना ही खून के रंग में फर्क है लेकिन यह बेवकूफी है या समझदारी
मुझे मालूम नहीं॰॰॰॰॰
मगर देखिए फिर भी
कुछ लोगों को लोग हिंदू और कुछ को मुसलमान कहते हैं
🇮🇳 जय हिंद  
वंदे मातरम्  
इंकलाब जिंदाबाद  
भारत माता की जय  
जय जवान जय किसान 🇮🇳

Why electron can't exist in nucleus

हाइजेनबर्ग ने इलेक्ट्रान की स्थिति पता करने के लिए एक समीकरण दी ,जो इस प्रकार है

∆x.∆p ≥ h÷4π

जहाँ  ∆x= इलेक्ट्रान की स्थिति मे अनिश्चितता या वह जगह जहाँ इलेक्ट्रान उपस्थित हो सकता है
       ∆p= इलेक्ट्रान का संवेग (M∆v)
        h= प्लान्क नियतांक 6.6×10^-34

यदि हम माने की इलेक्ट्रान नाभिक के अंदर स्थित है तो इलेक्ट्रान नाभिक के व्यास जितने छेत्रफल में ही स्थित हो सकता है
अतः ∆x.m∆v ≥ h÷4π

       ∆v≥ h÷4πM∆x.    
    
यहाँ इलेक्ट्रान के लिए
M= 9.1×10^-31kg
∆x=नाभिक का व्यास= 1×10^-15m

      ∆v≥ 6.6×10^-34÷{4×3.14×9.1×10^-31×10^-15}
     ∆v≥ 5.77×10^10m/s
अर्थात यदि इलेक्ट्रान नाभिक के अंदर जाता है तो वह
5.77×10^10m/s से गति करेगा जो कि प्रकाश की चाल (3×10^8) से भी ज्यादा है जो कि आपेक्षिकता के सिद्धांत से असंभव है इसी
कारण से इलेक्ट्रान नाभिक के अंदर उपस्थित नही रह सकता।

रक्तदान का महत्व

नमस्कार blogger की दुनिया का अभिनंदन करता हूँ।
रक्त एक प्राकृतिक ईंधन है। जो मानव रूपी रथ को संचालित करता है। जिस दिन यह संजीवनी हड़ताल कर दे उसके बाद मानव देह कंकाल को छोड़कर बाकी कुछ भी नहीं है।
आज दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, कुपोषण,आदि समस्याओं के कारण रक्त की महत्ती माँग हो रही है।
भारत प्राचीन समय से ही दाताओं की भूमि रही हैं। इसलिए आज हमें भी अपने पुरखों की इस गौरवशाली परंपरा को रक्त दान जैसे पुण्य कर्म के माध्यम से आगे बढ़ाना चाहिए। क्योंकि यदि आपके एक यूनिट रक्त से यदि किसी व्यक्ति की जीवन नौका डूबने से बच जाये तो आपके परोपकार का इससे शालीन परिचय क्या हो सकता है।
अतः रक्त दान हरेक युवा का कर्म और धर्म है बशर्ते कि वह रक्तदान करने के योग्य हो।
रक्तदान कराने में शिक्षा की भूमिका
शिक्षित व्यक्ति सेअंधविश्वास की बनावटी बेडियों से मुक्त होने की अपेक्षा की जा सकती है। कुछ लोगों की रक्तदान के बारे में मिथ्या धारणा है कि इससे व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर हो सकता है। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। अतः हमें समाज के शिक्षित नागरिक होने के नाते जागरूकता लाने के
अथक प्रयास करने चाहिए।

   " आओ हम एक घडे़ से जलपान करें
      उठो जागो भामाशाहों हम रक्तदान करें"

Blogger की दुनिया का धन्यवाद
         
                     जय हिन्द जय भारत


Brave childhood

                          "बलवान बचपन"
मान लीजिए कि एक छोटा बच्चा (लगभग 3-4 महीने का) एक लकड़ी के साँप से खेल रहा है। क्यूँकि वो बहुत छोटा है वह ये नहीं जानता कि मेरे लिए क्या बुरा है और क्या सही, तो वह उस लकड़ी के साँप को अपने मुँह में ले लेता है। उसकी यही प्रतिक्रिया तब भी होती जब उसके पास असलियत में कोई साँप होता। 
     हमें भी ठीक इसी तरह अपने अंदर के बच्चे को न मारते हुए हर परिस्थिति का बिलकुल निडर होकर सामना करना चाहिए।

Teacher

A teacher takes a hand, opens a mind, touches a heart.