'' Students portfolio file" means file which is used to keep student's photo, his written work, project work, mind maps, painting different activities and their written records. It may be a simple file contains with many pages, photos and other paper like materials. "student portfolio file" can be prepared under teacher's guidance where teacher is a facilitator and he/ she guides the student how to make the portfolio and how to maintain it.
Generally many schools maintain paper based student portfolio as file but there are many digital tools available to keep the student portfolio online on a website or even on a blog. It is a smart idea for innovative school to use blogs for keeping online achievement record.
शिक्षा परिदर्शन परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस के शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों द्वारा संचालित ब्लॉग है , जिसमें शैक्षिक नवाचार , शैक्षिक समस्या , शिक्षण विधियों - प्रविधियों की उपयोगिता पर सभी अपने विचार साझा करते हैं ।
Wednesday, 7 March 2018
What is student portfolio file
Saturday, 10 February 2018
शिक्षा के उद्देश्य
उद्देश्य का अर्थ - :
उद्देश्य एक पूर्वदर्शित लक्ष्य है जो किसी क्रिया को संचालित करता है अथवा व्यवहार को प्रेरित करता है | यदि लक्ष्य निश्चित तथा स्पष्ट होता है तो व्यक्ति की दिशा उस समय तक उत्साहपूर्वक चलती रहती है, जब तक वह उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता | जैसे-जैसे लक्ष्यों के निकट आता जाता है जब व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है | इस लक्ष्य को प्राप्त करने को ही उद्देश्य की प्राप्ति कहतें हैं | संक्षेप में उद्देश्य की पूर्वदर्शित लक्ष्य है जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति प्रसन्नतापूर्वक उत्साह के साथ चिंतनशील रहते हुए क्रियाशील होता है |
उद्देश्य का महत्व - :
मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष तथा दैनिक जीवन की प्रत्येक क्रिया को सफल बनाने के उदेश्य का विशेष महत्व होता है | बिना उद्देश्य के हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकते | शिक्षा के क्षेत्र मे भी यही बात है | इसका मात्र एक कारण यह है की प्राकृतिक बालक तथा प्रगतिशील एवं विकसित समाज की आवश्यकताओं तथा आदर्शों के बीच एक गहरी खाई होती है इस खाई को पाटने के लिये केवल शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जो किसी उद्देश्य के अनुसार समाज के बदलती हुई आवश्यकताओं तथा आदर्शों को दृष्टि में रखते हुए बालक की मूल प्रवृत्तियों का विकास इस प्रकार से कर सकते हैं की व्यक्ति तथा समाज दोनों ही विकसित होते रहें | इस दृष्टि से नर्सरी, प्राईमरी , माध्यमिक तथा उच्च स्तरों एवं सामान्य व्यवसायिक एवं तकनीकी तथा प्रौढ़ , आदि सभी प्रकार की शिक्षा के उदेश्य अलग-अलग और स्पष्ट होना चाहिये।
उद्देश्य की आवश्यकता - :
जब व्यक्ति को किसी उद्देश्य का स्पष्ट ज्ञान होता है तो उसके मन में दृढ़ता तथा आत्मबल जागृत हो जाता है | इससे वह एकाग्र होकर अपने कार्यों को पुरे उत्साह से करने लगता है | यही नहीं, उदेश्य हमें शिक्षण-पद्धतियों के प्रयोग करने, साधनों का चयन करने, उचित पाठ्यक्रम की रचना करने तथा परिस्थितियों के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था करने में भी सहायता प्रदान करता है | इससे व्यक्ति तथा समाज दोनों विकास की ओर अग्रसर होते रहते हैं | जिस शिक्षा का कोई उद्देश्य नहीं होता वह व्यर्थ है | ऐसी उद्देश्यविहीन शिक्षा को प्राप्त करके बालकों में उदासीनता उत्पन्न की जाती है | परिणामस्वरूप उन्हें अपने किये हुए कार्यों में सफलता नहीं मिल पाती जिससे कार्य को आरम्भ करने से पूर्व बालक तथा शिक्षक दोनों को शिक्षा के उद्देश्य अथवा उद्देश्यों का स्पष्ट ज्ञान होना परम आवश्यक है | उद्देश्य के ज्ञान के बिना शिक्षक उस नाविक के समान होता है जिसे अपने लक्ष्य का ज्ञान नहीं तथा उसके विधार्थी उस पतवार-विहीन नौका का समान है जो समुद्र की लहरों के थपेड़े खाती हुई तट की ओर बढ़ती जा रही है।
Friday, 9 February 2018
अधिगम के लिए सीखना
अधिगम का अर्थ - प्रत्येक व्यक्ति अपने दैनिक दिनचर्या में कुछ ना कुछ नया अनुभव ग्रहण करता है इन अनुभवों से उसके व्यवहार में निरंतर बदलाव आता रहता है इस प्रकार दैनिक अनुभव के एकत्रीकरण और उनके उपयोग को सीखना कहते हैं समायोजन कि क्रिया के फलस्वरुप व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है इसे ही अधिगम यह सीखना कहा जाता है क्रो एंड क्रो के अनुसार- "अधिगम आदतों ,ज्ञान एवं व्यवहार को ग्रहण करता है " वुडवर्थ के अनुसार-" नवीन ज्ञान व प्रतिक्रियाओं को अर्जित करने की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं" अधिगम के प्रकार - 1 संवेदन गति अधिगम 2 गामक अधिगम 3 बौद्धिक अधिगम
Monday, 5 February 2018
शिक्षा का महत्व
मापन,मूल्यांकन तथा परीक्षा
किसी वस्तु में निहित किसी गुण की मात्रा को सूक्ष्मता से ज्ञात करना मापन है। मापन प्राय: एक विमीय व स्थायी होता है और यह मूल्यांकन या मूल्यकरण को आधार प्रदान करता है। मूल्याकंन एक व्यापक प्रत्यय है जो किसी वस्तु में निहित गुणों की मात्रा के आधार पर उसकी वांछनीयता की श्रेणी का निर्धारण करता है जो समय परिस्थिति तथा आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। परीक्षा का अर्थ है परि तथा इक्ष अर्थात चारों ओर से देखना। इसमें किसी क्षेत्र विशेष में छात्रों के ज्ञान के स्तर का पता लगाना। परीक्षाएं विषय वस्तु के सन्दर्भ में छात्रों के ज्ञान का स्तर मापती हैं। जबकि मूल्यांकन इसके अतिरिक्त ज्ञान की सार्थकता का निर्धारण करता है और इसका सम्बन्ध छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व से होता है। परीक्षाएं अल्पकालिक होती हैं जबकि मूल्यांकन एक सतत् प्रक्रिया है। परीक्षा के आधार पर छात्रों को विभिé विषयों में अंक प्रदान करना मापन है जबकि अंकों के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तश्तीय या सम्मानजनक श्रेणी प्रदान करना मूल्यांकन है। मूल्यकरण तथा मूल्यांकन दोनों ही मूल्य निर्धारण से सम्बन्धित हैं।
मापन और मूल्यांकन का महत्व
शैक्षिक नीतियों के निर्धारण में मापन व मूल्यांकन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करने में तथा उद्देश्य प्राप्ति की सीमा ज्ञात करने में यह स्पष्ट योगदान करता है।
मापन तथा मूल्यांकन शिक्षक की प्रभावशीलता इंगित करता है।
यह छात्रों को अध्ययन हेतु प्रोत्साहित करता है।
यह पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, सहायक सामग्री तथा मूल्यांकन विधि में सुधार हेतु आधार स्पष्ट करता है।
कक्षा शिक्षण को प्रभावशाली तथा जीवन्त बनाने हेतु यह अध्यापकों को निर्देशित करता है।
यह छात्रों को उनकी रूचियों तथा अभिक्षमताओं की पहचान कराकर शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करता है।
शिक्षा में चल रहे विभिन्न नवाचारों की उपयोगिता ज्ञात करने में तथा नवीन प्रविधियों की खोज में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Sunday, 4 February 2018
अभिप्रेरणा
Wednesday, 24 January 2018
Saturday, 20 January 2018
आज का युग और अहिंसा
" है कौन सी जगह आराम आज कल
कातिल जो घूमते हैं खुलेआम आजकल
सहमा हुआ है इस कदर से आम आदमी
कि डरते हैं सुबह -शाम को टहलने में आजकल "
21वी सदी का आरंभ मानवता की चीत्कार के साथ हुआ | यह चीत्कार दिनों दिन बढ़ती जा रही है यह हिंसा का प्रतिफलन है |इसे रोकने के प्रयास वैश्विक स्तर पर जितने किए जाते रहे हैं यह उतनी ही दिनों दिन वृद्धि करती जा रही है |पूरे विश्व में एकमात्र संस्कृति का मूल ही इसे रोकने में सफल हो सकता है और वह संस्कृति है जो गौतम बुद्ध ऋषभदेव से आरंभ होकर आधुनिक युग पुरुष गांधी द्वारा पुनर्जीवित बा प्रतिष्ठापित किए जाने के पश्चात आज अन्ना हजारे के रूप में उसके शेष कुछ पंक्तियों में मानव स्वयं को खड़ा कर पाने की कोशिश कर रही है यहां हम बात कर रहे हैं भारतीय संस्कृति की. |
वर्तमान समय में मानवता यदि कहीं सुरक्षित रह सकती है तो "वसुदेव कुटुंबकम "और "अहिंसा परमो धर्म "जैसे मंत्रों में |भगवान महावीर ने कहा था किसी भी मनुष्य पर हुकूमत मत करो उसे अपने आधार बनाकर मत रखो यह अहिंसा का मूलमंत्र है और यही मूल मंत्र इस दुनिया की हिंसकवृत्ति से रक्षा कर सकता है|
Friday, 19 January 2018
बाल मनोविज्ञान
बाल मनोविज्ञान मनोविज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें बालक के सभी आयामों का अध्ययन किया जाता है और बालक के विकास एवं अभिवृद्धि का विशेष रुप से अध्ययन होता है। विकास से तात्पर्य बालक के सामाजिक संवेगात्मक शारीरिक मानसिक आदि क्षेत्रों से है जबकि अभिवृद्धि से तात्पर्य केवल शारीरिक क्षेत्र की वृद्धि है जो परिपक्वता पाकर रुक जाती है परंतु विकास जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है विकास कई नियमों एवं सिद्धांतों के आधार पर होता है जिसमें निरंतरता वर्तुल गति निकट से दूर की ओर Adi बालक का विकास शैशवावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चलता रहता है शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था तथा बाल्यावस्था के बाद किशोरावस्था आती है हर अवस्था वृद्धि और विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखती है। शैशवावस्था में बालक कई महत्वपूर्ण अवस्था जैसे कि मोरो, रूटिंग, बेबीन्स्की आदि के दौर से गुजरता है।नवजात शिशु का भार 7.15 पौंड व लंबाई लगभग 19-20 इंच होती है।मस्तिष्क का भार 350 ग्राम एवं शारीर में हड्डियों की कुल संख्या 270 होती है। जन्म के समय बालक के दाँत नहीं होते है लेकिन शुरू के 7-8 में दूध के दाँत आना शुरू हो जाते हैं जो कुल 20 होते हैं।...........