शिक्षा परिदर्शन परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस के शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों द्वारा संचालित ब्लॉग है , जिसमें शैक्षिक नवाचार , शैक्षिक समस्या , शिक्षण विधियों - प्रविधियों की उपयोगिता पर सभी अपने विचार साझा करते हैं ।
Sunday, 24 September 2017
Friday, 22 September 2017
Sources of education
Thursday, 21 September 2017
शिक्षा की पद्धति में परिवर्तन की आवश्यकता
Saturday, 16 September 2017
Modernisation of Education
Modernisation is a process of socio-cultural transformation.It is a thorough going process of change involving values, norms, institutions and structures. According to sociological perspective, education does not arise in response of individual needs but it arises out of the needs of the society of. which the individual is a member.Its main function is to transmit the cultural heritage to the new generations. The diffusion of scientific and technical knowledge by modern educational institutions can help in the creation of skilled man power to play the occupational role demanded by industrial economy.Thus education can be an important means of modernization. All modernizing societies tend to emphasize on the universalization of education and the modernized societies have already attained it.The impact of modernization can be seen in the schools also. Modern schools are fully equipped with technical sound devices that help children develop their expertise in a more lucid manner. Effective facilities provide barrier free access for individuals with disabilities, are free from health and environmental hazards, offer adequate space for students and teachers, and are equipped with appropriate technology for classroom and instructional use.
Wednesday, 13 September 2017
Education: A Base and a Building
Education is a medium which discriminates between humans and animals. Either it is formal or informal education, it is a tool which distinguishes between humans and other creatures. Before having a small discussion on 'Education', we need to know its meaning first.
Education simply means to come or get out with our internal powers. Education means all those activities that help in achieving the best out of us with proper positive behaviouristic changes. Education has many types on many basis such as on the basis of formality: Formal, Informal and Non-formal, its regularity: Regular and Irregular, its connectedness with pupils:Direct and Indirect etc.
Education is both a base and a building over it for the society. In basic form, it helps in accomplishing the basic needs and as a building it gives the society upper level and respectful lives. A society that develops the entire world with the knowledge and experience of its members. As we know that a building can not exist without any base, similarly until the basic needs are accomplished of the society, one can not expect from that society to make some significant contribution to the global development.
Tuesday, 5 September 2017
Teachers' Day Special Blog
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*निवर्तयत्यन्यजनं - प्रमादतः*
*स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।*
*गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम्*
*शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥*
*भावार्थ👉*
*जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध कराते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं । शिक्षक दिवस पर सभी गुरूजनों को शत शत प्रणाम व आपको परिवार ,सगे सम्बधियों तथा मित्रमंडली सहित शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
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*ज्ञानतिमिरान्धस्य*
*ज्ञानाञ्जनशलाकया ।*
*चक्षुरुन्मीलितं येन*
*तस्मै श्रीगुरवे नम : ॥*
*अर्थात्👉*
उस महान गुरु को अभिवादन, जिसने अज्ञान के अंधकार से अंधी हुई आँखों को ज्ञान की काजल-तीली से खोल दिया।
सच में, एक सच्चे शिक्षक की महानता का शब्दों में वर्णन संभव नहीं है। शिक्षक के संदर्भ में चाणक्य द्वारा कहे गए शब्द निम्न प्रकार प्रस्तुत हैं-
एक योद्धा युद्ध जीतकर दिखा सकता है, किंतु एक शिक्षक साधारण जन को युद्ध जीतने के योग्य बना सकता है। युद्ध को जीतने के लिए चुनौती अच्छे योद्धाओं को ढूंढने में नहीं है, चुनौती है साधारण जन को युद्ध का कारण बताकर उन्हें असाधारण बनाना, जो शिक्षक ही कर सकता है। शिक्षक भाग्य निर्माता भी है।वही सिखाता है कि विचारों को वश में रखो तो वाणी बनेगी, वाणी को वश में रखो तो यही तुम्हारा कर्म बनेगी। कर्मों को वश में रखो, तो यही तुम्हारी आदत बनेगी। आदतों को भी वश में रखो तो, यही तुम्हारा चरित्र बनेगा। चरित्र को वश में रखो, यही तुम्हारा भाग्य बनेगा।
एेसा मार्गदर्शन देने का एकाधिकार ईश्वर ने केवल शिक्षक को ही दिया है।
अब हम वह शख्सियत जिनके कारण भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है, आदरणीय डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कथन को दोहराना चाहूँगा -
सच्चा टीचर वही है, जो हमें हमारे लिए सोचने में मदद करे, वह नहीं, जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंस दे, बल्कि वह जो आने वाले कल की चुनौतियों के लिए छात्र को तैयार करे। शिक्षक की पहचान इस बात से भी है कि वह ताउम्र सीखता रहे, इतना ही नहीं, छात्रों से सीखने में भी परहेज न करे।वहीं उसकी दी गई शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति के रूप में सामने आना चाहिए। एेसा व्यक्ति जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके।इतना ही नहीं यदि शिक्षा ही इस प्रकार से दी जाए तो समाज से अनेक बुराईयों को भी मिटाया जा सकता है।
एक सच्चे शिक्षक और इस ब्लॉग के संकल्पनाधारक श्री मोहित दीक्षित सर को ब्लॉग के समस्त लेखकों द्वारा समर्पित।
Sunday, 3 September 2017
शिक्षक की भूमिका
गुरु शिष्य की परंपरा भारतीय शिक्षा व्यवस्था की नींव रही है। प्राचीन गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में गुरु शिष्य के संबंध अत्यन्त प्रगाढ़ रहे हैं , परंतु धीरे धीरे इन संबंधों में वो गर्माहट , वो अपनापन कहीं खो गया है । ऐसे समय में शिक्षक की भूमिका बढ़ जाती हैं । शिक्षक को अपनी भूमिका में एक मित्र , एक मार्गदर्शक , एक प्रेरक , एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करनी चाहिए ।हर विद्यार्थी में अपार संभावनाएं छुपी हुई हैं उन संभावनों को प्रतिभाओ में बदलने का पवित्र कार्य शिक्षक का परम कर्तव्य है।शिक्षक के लिए जरूरी है कि वो अपने विद्यार्थियों में वो आत्मविश्वास जगाये की वो हर कार्य को करने के लिये तत्पर हो सके। रवींद्र नाथ ठाकुर जी ने शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा भी है कि शिक्षको को अपने विद्यार्थीयो को प्रभावित नही अपितु प्रकाशित करना चाहिए। शिक्षक और विद्यार्थीयो के मध्य का प्रगाढ़ वैश्वासिक संबंध ही शिक्षा को उसके वास्तविक लक्ष्य तक ले जा सकता है।
आदर्शवाद का सिद्धांत
*कुसुमं वर्णसम्पन्नं ,*
*गन्धहीनं न शोभते।*
*न शोभते क्रियाहीनं*
*मधुरं वचनं तथा ।।*
*भावार्थ👉*
जिस प्रकार से गंधहीन होने पर सुन्दर रंगो से संपन्न पुष्प शोभा नहीं देता, उसी प्रकार से अकर्मण्य व्यक्ति मधुरभाषी होते हुए भी शोभा नहीं पाता। अतः गुण व कर्म प्रधान होते हैं–रूप नहीं।
आइए, हम उपर्युक्त कथन के माध्यम से आदर्शवाद की अवधारणा को समझने का प्रयास करते हैं-
आदर्शवाद की धारणा इस कथन के संदर्भ में यह कहेगी कि केवल कर्म या प्रभाव का चिंतन करके सही का चयन किया जाए परंतु व्यवहार में हम वस्तु के गुण को काफी अहमियत देते हैं, इतना महत्त्व कि सर्वश्रेष्ठ वस्तु के भी कुरूप होने पर हम उसे नकार देंगे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आदर्शवाद और व्यावहारिकता बहुत सीमा तक एक-दूसरे के विपरीत हैं।
इसी अंतर के कारण प्रख्यात शब्दकोश Oxford Dictionary में आदर्शवाद के अंग्रेजी रूपांतरण Idealism का अर्थ Realism के विपरीत बताया गया है।
आदर्शवाद का अर्थ Perfection से लिया जाना यथोचित है। वास्तव में आदर्शवाद दर्शनशास्त्र की एक विचारधारा के रूप में जानी जाती है जो विचारशीलता को महत्त्व देती है। आदर्शवाद की प्रकृति भौतिकवादी न होकर आध्यात्मवादी है जिसके अंतर्गत यह शुद्ध विचारों की बात करते हुए ईश्वर की निरपेक्ष सत्ता तक की बात करता है।
आदर्शवाद के लिए प्रयुक्त किया जा सकने वाला शब्द विचारवाद है जो स्वत: इसकी विचारशील प्रकृति को स्पष्ट करता है।