Sunday, 29 December 2024

पर्वत पर जाने वाले ठोकर से नहीं रोया करते

 


पांवों में छाले है तो क्या हुआ चलना तो पडेगा 

जो मंजिल तक जाना है तो घर से निकलना तो पडेगा 

सोने जैसे जीवन को आलस में नहीं खोया करते 

पर्वत पर जाने वाले ठोकर से नहीं रोया करते 

बीच समंदर में मन को अब उलझाने से क्या होगा?

अर्द्ध पुष्पित फूल हो अब मुरझाने से क्या होगा ?

तस्वीर बदलकर आना है, तकदीर बदलकर लाना है 

जो विजयश्री को पाना है न करना कोई बहाना है 

जुनून सफलता का दौडे हर वक्त तुम्हारी सांसों में 

परिणामों की चिंता नहीं, न रहे कमी प्रयासों में

सारे दुःख हट जाते हैं, सब अंधियारें छट जाते है 

मेहनत के बलबूते पर पर्वत भी शीश झुकाते हैं

नित गिरना और संभलना है,ना हाथ बैठकर मलना है 

रोज ही चलते जाना है,जीवन का नाम ही चलना है 

तप-तपकर कुंदन बनना है,खुद को इतना तैयार करो

संघर्षों की एक नदी है, मजबूती से पार करो 

मजदूरी पर जाना मां की मजबूरी न बन जाए 

जो ख़्वाब संजोया था उसने, उससे दूरी न बन जाए 

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