बात-बात पर झुक जाने की नीति भी अब बदल गई
भाईचारे से जीने की वह रीति भी अब बदल गई
खेतों से क्या मतलब है अब मेड ही सबको प्यारी है
दो इंच जमीन खातिर संघर्ष कोर्ट में जारी है
अपराधों की मानों एक पहर आ रही है अब
बर्बाद जवानी करने की एक लहर आ रही है अब
मामा, मामी, जयंती को खाकर थूक रहे हैं सब
पंद्रह-बीस के युवा सिगरेट जाकर फूंक रहे हैं अब
एक सवाल खुद से भी है कि मुझको ऐतराज कैसा है
करना है जो करके रहेंगे, उनका अपना पैसा है
संस्कृति को भूलकर हम इतना कैसे मौन हुए
संतान पिता से पूछ रही है आप हमारे कौन हुए
धन, दौलत और शक्ति का प्रदर्शन अब भी जारी है
कहां से कल चले थे हम कहां जाने की तैयारी है
दूसरों के गृह क्लेश से इतना मजा क्यों आ रहा है
अपनों को सबक सिखाना है यह भी वकील बता रहा है
फेसबुक पर लाइव आकर मर्यादा सब भूल रहे हैं
रिश्ते, नाते, सगे-संबंधी बीच सफर में झूल रहें है
निश्छल मुस्कान देने वाले तानों में क्यों बदल रहे हैं
जो सुरक्षा करते थे वही हैवानों में क्यों बदल रहें है
बैठे-बैठे क्या होगा, कुछ तो हमको भी करना होगा
अब भी चुपचाप रहे यूं ही तो यह संस्कारों का मरना होगा
थोड़ा दूसरे बदलेंगे थोड़ा खुद को बदलना होगा
आपस में सबका हाथ पकड़कर दूर क्षितिज तक चलना होगा
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