आसमान में उड़ता-सा खुद को आजाद परिंदा रखो।
बाधाओं को चीरकर भी दूर क्षितिज तक जाना है
पर्वत के मस्तक चढकर अपना
परचम लहराना है
लाख हो कमजोरियां पर रोक नहीं पायेगी तुम्हें
ताने देने वाली दुनिया टोक
नहीं पायेगी तुम्हें
अंधियारी रातें तो क्या अब फिर से सवेरा आयेगा
जीवन का संघर्ष
आपका रंग कभी तो लायेगा
यही है उसूल ये जीवन जुड़ता और बिखरता है
तपने के पश्चात
सोना ज्यादा और निखरता है
इधर-उधर के आकर्षण से भटक नहीं जाना है कहीं
आसमान और धरती के बीच में लटक नहीं जाना है कहीं
ठान लीजिए, मान लीजिए
खुद को जरा पहचान लीजिए
रटने वाले तोते नहीं तुम समझदार इंसान बनो
एक दिन में असंभव है, दिन-प्रतिदिन महान बनो
उन्नति और प्रगति का अटल आपका प्रण रहे
भारत माँ की सेवा का जो सदा-सदा स्मरण रहे।
होगी जय-जयकार तुम्हारे कदम सफलता चूमेगी
सपने संजोए बैठी है,मां बहुत खुशी से झूमेगी
मजदूरी करना पिता की मजबूरी न बन जाए
हर पल साथ दिया जिसने उससे दूरी न बन जाए
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