Sunday, 13 December 2020

भारत में मीडिया की वर्तमान माली हालत

 नमस्कार दोस्तों एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है आप सभी का हमारे ब्लॉग शिक्षा परिदर्शन पर

आज हम आपको हमारी इस कविता के माध्यम से वर्तमान में भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया की हालत के बारे में बयां करने जा रहे हैं

सुनियोजित कोलाहल को वाद विवाद का नाम जो देते 

स्टूडियो में नेताजी को लड़ने का यह काम जो देते 

अमीरों के कुत्ते भी मर जाए तो बीस मिनट दिखाते हैं 

गरीब की हत्या भी हो जाए तो रेत में सिर छुपाते हैं 

सत्ता की अन्याय पर तो होता कोई बवाल नहीं 

शोषित का सिर पचाते हैं और शोषक से कोई सवाल नहीं

वस्तुनिष्ठता त्यागकर दलाल बने बैठे हैं ये 

रक्षक की भूमिका थी और काल बने बैठे हैं ये 

बाड़ खेत को खा रही, लोकतंत्र है मझधार में

पत्रकार,प्रवक्ता बन गए, सत्ता के गलियारों के प्यार में 

युवाओं के हाथ कट गए और अर्थव्यवस्था बीमार 

जिनको आलोचक होना था वे अब शासन के यार है 

पुलवामा की जांच का सवाल अब तक उठा न पाए 

सत्ता में बैठे तथाकथित हरिश्चंद्रों के बयान अभी तक झूठा न पाए 

शिक्षा से लेना देना नहीं, सांप्रदायिकता का माहौल है

जनता के मुद्दों पर भी ये करते टाल मटोल हैं 

धर्म और वर्ण के तिल का ये ताड़ बनाकर देते हैं 

भाईचारे के स्थलों को उजाड़ बनाकर देते हैं

जनता पर गर्म तेल छिड़ककर नेताजी से घी पायेगा

यही चिंता सता रही तिपहिया लोकतंत्र कैसे जी पाएगा 


धन्यवाद

जय हिंद,जय भारत







 













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