आज मैं जिस विषय पर चर्चा करने जा रहा हूँ, वह अत्यधिक चिंतनीय है। हम सभी को इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। यह समस्या है- प्लास्टिक वेस्ट या कृत्रिम अपशिष्ट। जैसा कि हम सभी जानते हैं यह समस्या वर्तमान में अत्यंत ज्वलंत रूप धारण कर चुकी है। अतः इस समस्या का सही रूप से संबोधन वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता है। हम सभी को इस समस्या के कोई विशेष परिचय की आवश्यकता नहीं है, यह तो हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी बात है।
हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा दिनों दिन बढ़ती जा रही है। हम जानते हैं कि वर्तमान में आम प्रचलन में प्रयुक्त प्लास्टिक अनिम्नीकरणीय अर्थात नोन डिग्रेडेबल है। इसी सामान्य कचरे की तरह नहीं फेंका जाना चाहिए और ना ही जलाया जाना चाहिए, जबकि हम ऐसा ही करते हैं। चूँकि प्लास्टिक में विषैले प्रदूषक विद्यमान होते हैं, अतः इसके मृदा से सतत् संपर्क में रहने पर वहाँ उग रहे पेड़ पौधों की वृद्धि नकारात्मक रूप में प्रभावित होती है। जल में फेंक दिए जाने पर जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। साथ ही यदि जलाया जाए तो वायु प्रदूषण होता है। एक नए शोध के मुताबिक महासागरीय प्रदूषण के 90% के लिए अनिम्नीकरणीय प्लास्टिक जिम्मेदार है।
इतनी गंभीर समस्या होने के बावजूद भी हम इस समस्या के प्रति उदासीन रहते हैं, हम पर्यावरण को अपने से अलग करके देखते हैं, यही कारण है कि हमारे पर्यावरण और जिसके कारण अंततः हमें होने वाली क्षति के लिए मैं हमारे मनोवैज्ञानिक प्रदूषण को जिम्मेदार मानता हूं। हम सभी की सोच इतनी संकुचित हो चुकी है कि हमें कोई प्रभाव नहीं पड़ता, हम अपने स्तर पर प्रयास करना तो दूर की बात, इसके विपरीत पर्यावरण प्रदूषण में सहभागी बनते हैं। हम अक्सर यह सोचते हैं कि "अकेले मेरे बदलने से क्या बदलेगा" यदि यही सोच उन क्रांतिकारियों की होती, जिन्होंने हमें कड़े संघर्ष के बाद आजादी दिलाई तो शायद हम आजादी को आज इस रूप में ना जी रहे होते, और ना ही स्वाभिमान की भावना से भरे होते और हमारी जिंदगियाँ उन संघर्षों का सामना कर रही होती, जिनका प्रत्यक्षीकरण संभव नहीं है।
हमें अपनी मानसिकता को व्यापकीकृत करने की जरूरत है। हमें अपनी सोच के संकुचित दायरों का विस्तार प्रारंभ करने की जरूरत है। हमें जरूरत है कि हम अपनी सोच उन क्रांतिकारियों की तरह व्यापक करें जिन्होंने हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तनों के लिए अपनी जान की बाजियाँ लगा दीं।
मैं समझता हूँ कि एकदम से हम सभी प्रकार के प्लास्टिक का पूर्णरूपेण त्याग नहीं कर सकते, परंतु शायद हम इतना तो कर ही सकते हैं कि आज से घर में पॉलिथीन में सामान ना लायें। हमारा यह एक कदम एक कदम शुरुआत हो सकता है यदि और केवल यदि हम चाहे तो, उस सकारात्मक बदलाव का जो हमें निश्चित रूप से जीना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि हम इस क्षेत्र में अनुसंधान अपने स्तर पर करें अथवा हो रहे शोधों पर पैनी नजर बना कर शीघ्रातिशीघ्र बदलाव अपने आसपास के क्षेत्र में लाने का प्रयास करें, तो शायद हम अपने सपनों का जीवन जी पायें।
शिक्षा परिदर्शन परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस के शिक्षा विभाग के विद्यार्थियों द्वारा संचालित ब्लॉग है , जिसमें शैक्षिक नवाचार , शैक्षिक समस्या , शिक्षण विधियों - प्रविधियों की उपयोगिता पर सभी अपने विचार साझा करते हैं ।
Saturday, 2 February 2019
प्लास्टिक वेस्ट: जागरूकता की जरूरत
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Nice article
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