Sunday, 3 September 2017

आदर्शवाद का सिद्धांत


*कुसुमं  वर्णसम्पन्नं ,*
*गन्धहीनं न शोभते।*
*न शोभते क्रियाहीनं*
*मधुरं वचनं  तथा ।।*
*भावार्थ👉*
जिस प्रकार से गंधहीन होने पर सुन्दर रंगो से संपन्न पुष्प शोभा नहीं देता, उसी प्रकार से अकर्मण्य व्यक्ति मधुरभाषी होते हुए भी शोभा नहीं पाता। अतः गुण व कर्म प्रधान होते हैं–रूप नहीं।
आइए, हम उपर्युक्त कथन के माध्यम से आदर्शवाद की अवधारणा को समझने का प्रयास करते हैं-
आदर्शवाद की धारणा इस कथन के संदर्भ में यह कहेगी कि केवल कर्म या प्रभाव का चिंतन करके सही का चयन किया जाए परंतु व्यवहार में हम वस्तु के गुण को काफी अहमियत देते हैं, इतना महत्त्व कि सर्वश्रेष्ठ वस्तु के भी कुरूप होने पर हम उसे नकार देंगे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आदर्शवाद और व्यावहारिकता बहुत सीमा तक एक-दूसरे के विपरीत हैं।
इसी अंतर के कारण प्रख्यात शब्दकोश Oxford Dictionary में आदर्शवाद के अंग्रेजी रूपांतरण Idealism का अर्थ Realism के विपरीत बताया गया है।
आदर्शवाद का अर्थ Perfection से लिया जाना यथोचित है। वास्तव में आदर्शवाद दर्शनशास्त्र की एक विचारधारा के रूप में जानी जाती है जो विचारशीलता को महत्त्व देती है। आदर्शवाद की प्रकृति भौतिकवादी न होकर आध्यात्मवादी है जिसके अंतर्गत यह शुद्ध विचारों की बात करते हुए ईश्वर की निरपेक्ष सत्ता तक की बात करता है।
आदर्शवाद के लिए प्रयुक्त किया जा सकने वाला शब्द विचारवाद है जो स्वत: इसकी विचारशील प्रकृति को स्पष्ट करता है।

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