Friday, 14 August 2020

भारतीय सेना और सैनिक परिवारों के प्रति हमारे कर्तव्य

यह पंक्तियां भारतीय सैनिक के दर्शन को बताती हैं

भारत की सेवा का अपना यह मजबूत इरादा है

शीश नहीं झुकने दूंगा यह मेरा पक्का वादा है 

सेना के प्रति मेरे मन में इज्जत खुद से ज्यादा है

 मातृभूमि की रक्षा करना ही मेरी मर्यादा है


यह पंक्तियां घर से जाते समय सैनिक द्वारा अपने परिवार के साथ किए गए संवाद को व्यक्त करती हैं

देश को जरूरत है मेरी मैं रणभूमि में जाता हूँ 

कायरता से दूर रहूंगा कसम आपकी खाता हूँ 

देश के प्यार के आगे हम यह भौतिक प्यार गिरा देंगे 

मौत राह में आ गई तो मौत को मार गिरा देंगे


यह पंक्तियां सैनिक के शहीद होने पर उसके संबंधियों की स्थिति के बारे में वर्णन करती हैं

देश का बेटा चला गया तब ही तो मातम छाया है 

आया तो परसों ही है पर संग में तिरंगा लाया है

देशभक्तों के मन में अब जोरदार दी दस्तक है

कर्तव्यपरायणता से देवलोक नतमस्तक हैं

 कहीं-कहीं बूढ़ी मां का इकलौता सहारा चला गया

सुनकर बेहोश हुई बहनें कि भाई हमारा चला गया 

हर नैन को नीर से युक्त किया,बने हुए इस हाल ने

बोले पिताजी गर्व का काम किया है मेरे लाल ने

 मेहंदी हाथों से ना छूटी और सुहाग किसी का चला गया

शादी से पहले ही जीवन का भाग किसी का चला गया


यह पंक्तियाँ भारत के सैनिक की महानता के बारे में बताती हैं 

इतने पर जिसका खून ना खोले वह इंसान नहीं होगा

बड़े से बड़ा अरबपति भी सेना से महान नहीं होगा

हार्मोन बदले उसके भी उसमें भी जवानी थी

इन सब भटकाओं से ऊपर वतन की सेवा ठानी थी


 यह पंक्तियां भारतीय सैनिकों के परिवारों के प्रति हमारे कर्तव्यों के बारे में बताती हैं

जिनका कोई नहीं रहा कभी कुशलक्षेम तो जाना करो

शहीद हुआ बेटा जिसका उस मां को तो पहचाना करो

रक्षक की संतानों को रक्षा का कंबल दिया करो

जब कोई विपत्ति आए तो तुम जाकर संभल दिया करो

रक्षाबंधन पर कलाई उस बहन को भी दिया करो

जो देश की रक्षा कर गए उनके परिवारों की तो रक्षा किया करो

सीमा से फौजी आए तो हाथ जोड़ अभिनंदन हो

ईश्वर की स्तुति संग अब शहीदों का भी वंदन हो

मनोरंजन की छोड़ किताबें शौर्य गाथा पढ़ा करो 

जो राजनीति शहादत पर करते आज दुकानें बंद हो

आज सुरक्षित देश है तो कल का भी प्रबंध हो


जय हिंद जय भारत जय भारतीय वीर जय भारतीय सेना







Tuesday, 11 August 2020

स्वतंत्रता दिवस स्पेशल

 यह कविता पूर्णतया मेरे द्वारा लिखित है इसमें भारत की गुलामी से लेकर आजादी तक के  कांटो से भरे मार्ग का साधारण शैली में वर्णन किया गया है तथा आजादी के बाद देश की मुख्य समस्याओं का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है 


                        भाग-1

शीर्षक: गुलामी से आजादी तक 


सोने की चिड़िया को उन व्यापारियों ने लूटा था

घर में भेदी बैठे थे भारत का कुनबा टूटा था 

अपनों के कर कमलों से ही अपनों को मरवाया था

आपस के ही बैर भाव से घमासान करवाया था

मेरठ से लेकर झांसी तक

दिल्ली से लेकर काशी तक

सन् सत्तावन में बिगुल बजा

भारत मां की आजादी का तब ही स्वर्णिम स्वप्न सजा 

स्वाभिमान था लाजवाब वे भारत मां की सेवी थी

झांसी वाली रानी जी तो साक्षात् ही देवी थी

कुछ अंगुलियां विकलांग थी बैठी कैसे जंग जीती जाती

सब ने साथ दिया होता यह धरती थपेड़े ना

खाती

मार्ले मिंटो अधिनियम ने धर्म नाम पर बांटा था

भारत की राहों में अब तक सबसे तीखा कांटा था

मानगढ़ से करुणामयी चित्कारें अब भी सता रही 

वनवासी को मारा था पहाड़ी रो रो कर बता रही

वंदन की उपजाऊ भूमि कैसे बंजर हो गई

सुसज्जित भारत माता एक अस्थिपंजर हो गई

जालिम जनरल डायर ने जलियांवाला में घाव किए

सोए शेरों के सिर फोड़े, खूनों से लथपथ पावं किए

व्याकुल मन तब रो उठे ह्रदय में गहरे तीर हुए

डायर से बदला चुकता किया यहां ऊधम सिंह से वीर हुए

वतन की खातिर फांसी खायी यह भगत सिंह का देश है

राजगुरु, सुखदेव जी भी हद से ज्यादा विशेष हैं

कथनी करनी में समानता से जगत में ऊंचा नाम किया 

देश की सेवा में बापू ने अपना पूरा काम किया 

सारी रस्में पूर्ण हुई अब नवजीवन की तैयारी थी 

थक गए अंग्रेज भी अब भारत छोड़ो की बारी थी

नाम न जिनका हुआ उजागर असंख्य बलिदान थे

कोने कोने में लड़ने वाले मेरे देश के वीर जवान थे

सांप्रदायिक विभाजन की कुरीति यहां छोड़ गए

चले गए फिर गोरे तो फिर भारत टुकड़ों में तोड़  गए

14 अगस्त की मध्य रात्रि हर आंख में आंसू थे

एक बार फिर से लड़ाया इतने रक्त पिपासु थे

वे (स्वतंत्रता सेनानी) कितने दिनों ना सोए थे

वे खून के आंसू रोए थे

उन वीरों ने धरती मां की जंजीरों को तोड़ा था 

टुकड़े-टुकड़े भारत को सरदार जी ने जोड़ा था

                         भाग-2


       शीर्षक:- व्यथा नवीन भारत की

नवयुवकों को काम नहीं

अन्नदाता को दाम नहीं

जादू शीतल सा लगता है युवा भारत के खून का

गला घोंट दिया जाता है गरीब के जुनून का

हत्या की कोई जांच न होती महीनों तक  और वर्ष तक

यौन शोषण पीड़ा देता हृदय के स्पर्श तक

देश को खोखला करने के कितने मजबूत इरादे हैं

आपस में कीच उछाल कर नेताजी करते वादे हैं

व्हाट्सएप के वीर लड़ाई स्टेटस पर लड़ते हैं

शौर्य गाथा कौन पढ़े मजाक वतन का पढ़ते हैं

फेसबुक पर नकली चेहरे समय गुजारने का जरिया

विपदाओं के बीच भारत कैसे पार करें दरिया



 74 वें स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित

 




 



Tuesday, 4 August 2020

क्या प्रशासन का हिस्सा बनने से पूर्व अंग्रेज बनना अनिवार्य है?

जैसा की सर्वविदित है कि संघ लोक सेवा आयोग भारत में प्रशासनिक अधिकारियों के चयन हेतु त्रिस्तरीय परीक्षा को संपन्न करवाता है। इसी क्रम में वर्ष 2019 की सिविल सर्विसेज भर्ती परीक्षा का अंतिम परिणाम 4 अगस्त 2020 को जारी किया गया जिसमें हिंदी माध्यम से चयनित विद्यार्थियों की संख्या गूलर के फूल के समान थी।
जैसा कि हम जानते हैं अधिकांश गरीब व मध्यम वर्गीय भारतीय बच्चे हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षित होते हैं तो फिर क्या गरीब का बच्चा जो हिंदी में शिक्षित हुआ है उसे जिले की कमान संभालने से वंचित सिर्फ इसलिए किया जाता रहेगा कि उसने तथाकथित सभ्य लोगों की भाषा अर्थात अंग्रेजी की तालीम नहीं ली है?
यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि यूपीएससी के इतिहास में आज तक किसी भी हिंदी माध्यम के विद्यार्थी को प्रथम स्थान हासिल नहीं हुआ।
प्रश्न 1: क्या यूपीएससी परीक्षा के दौरान प्रश्न पत्र का हिंदी अनुवाद करते समय तथा मूल्यांकन करते समय भाषाई आधार पर वस्तुनिष्ठता हेतु किए गए प्रबंध पर्याप्त हैं?
यदि हां तो फिर हर वर्ष प्रश्नपत्रों के हिंदी अनुवाद में ऐसी शब्दावली प्रयुक्त क्यों की जाती है जिसका अस्तित्व किताबों में कहीं भी नहीं मिलता?
क्या लाखों विद्यार्थी जो हिंदी माध्यम से तैयारी कर रहे हैं वे शैक्षिक रूप से इतने पिछड़े हैं कि कुल रिक्तियों पर  10% चयन भी उनमें से नहीं हो रहा है?
क्या भाषा होशियार होने का कोई प्रमाण है? यदि हां तो इसकी पुष्टि की जाए यदि नहीं तो फिर हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों के चयन में विषमताओं को स्पष्ट करें
महात्मा गांधी कहते थे" अंग्रेजी बालकों में मानसिक दासता पैदा करती है" 
दुर्भाग्य की बात तो यह है कि भारत को आजादी तो 1947 में ही मिल चुकी है लेकिन आज भी भारत की अपनी भाषा हिंदी और हिंदी भाषी लोग अंग्रेजी के उपनिवेश बने हुए हैं आज देश के बड़े दफ्तरों में जाकर हिंदी में बात करना अशिक्षित होने का पर्याय सा लगता है। 
लॉर्ड मैकाले ने कहा था कि भारत को हम सदा सदा के लिए मानसिक गुलाम बनाकर रखेंगे यह बात शत प्रतिशत चरितार्थ लग रही है। 

क्या आप सहमत हैं कि हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों की प्रतिभा को वास्तव में दबाया जा रहा है? 

धन्यवाद
जय हिंद जय भारत